!!!जिस किसी ने लिखा?क्या खूब लिखा?!!!
*भारतीय पिता पुत्र की जोड़ी भी बड़ी कमाल की जोड़ी होती है।*
*दुनिया के किसी भी सम्बन्ध में,*
*अगर सबसे कम बोल-चाल है,*
*तो वो है पिता-पुत्र की जोड़ी में।*
*एक समय तक दोनों अंजान होते हैं,*
*एक दूसरे के बढ़ते शरीरों की उम्र से, फिर धीरे से अहसास होता है,*
*हमेशा के लिए बिछड़ने का।*
*जब लड़का,*
*अपनी जवानी पार कर,*
*अगले पड़ाव पर चढ़ता है,*
*तो यहाँ,*
*इशारों से बाते होने लगती हैं,*
*या फिर,*
*इनके बीच मध्यस्थ का* *दायित्व निभाती है माँ*
*पिता अक्सर पुत्र की माँ से कहता है,जा,* *"उससे कह देना"*
*और,*
*पुत्र अक्सर अपनी माँ से कहता है,*
*"पापा से पूछ लो ना"*
*इन्हीं दोनों धुरियों के बीच,*
*घूमती रहती है माँ।*
*जब एक,*
*कहीं होता है,*
*तो दूसरा,*
*वहां नहीं होने की,*
*कोशिश करता है,*
*शायद,*
*पिता-पुत्र नज़दीकी से डरते हैं।*
*जबकि,*
*वो डर नज़दीकी का नहीं है,*
*डर है,*
*उसके बाद बिछड़ने का।*
*भारतीय पिता ने शायद ही किसी बेटे को,*
*कभी कहा हो,*
*कि बेटा,*
*मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ*
*पिता के अनंत रौद्र का उत्तराधिकारी भी वही* *होता है,*
*क्योंकि,*
*पिता, हर पल ज़िन्दगी में,*
*अपने बेटे को,*
*अभिमन्यु सा पाता है।*
*पिता समझता है,*
*कि इसे सम्भलना होगा*,
*इसे मजबूत बनना* *होगा, ताकि*,
*ज़िम्मेदारियो का बोझ,*
*इसका वध न कर सके।*
*पिता सोचता है,*
*जब मैं चला जाऊँगा*,
*इसकी माँ भी चली* *जाएगी,*
*बेटियाँ अपने घर चली जायेंगी,*
*तब, रह जाएगा सिर्फ ये,*
*जिसे, हर-दम, हर-कदम,*
*परिवार के लिए,*
*आजीविका के लिए*,
*बहु के लिए,*
*अपने बच्चों के लिए,*
*चुनौतियों से,*
*सामाजिक जटिलताओं से,*
*लड़ना होगा।*
*पिता जानता है कि,*
*हर बात,*
*घर पर नहीं बताई जा सकती,*
*इसलिए इसे,*
*खामोशी से ग़म छुपाने सीखने होंगें।*
*परिवार के विरुद्ध खड़ी,*
*हर विशालकाय मुसीबत को,*
*अपने हौसले से,*
*छोटा करना होगा।*
*ना भी कर सके*
*तो ख़ुद का वध करना होगा।*
*इसलिए,*
*वो कभी पुत्र-प्रेम प्रदर्शित नहीं करता,*
*पिता जानता है कि,*
*प्रेम कमज़ोर बनाता है।*
*फिर कई बार उसका प्रेम,*
*झल्लाहट या गुस्सा बनकर,*
*निकलता है,*
*वो गुस्सा अपने बेटे की कमियों के लिए नहीं होता,*
*वो झल्लाहट है,*
*जल्द निकलते समय के लिए,*
*वो जानता है,*
*उसकी मौजूदगी की,*
*अनिश्चितताओं को।*
*पिता चाहता है*,
*कहीं ऐसा ना हो कि,*
*इस अभिमन्यु का वध*,
*मेरे द्वारा दी गई,*
*कम शिक्षा के कारण हो जाये,*
*पिता चाहता है कि,*
*पुत्र जल्द से जल्द सीख ले,*
*वो गलतियाँ करना बंद करे,*
*क्योंकि गलतियां सभी की माफ़ हैं,*
*पर मुखिया की नहीं,*
*यहाँ मुखिया का वध सबसे पहले होता है।*
*फिर,*
*वो समय आता है जबकि,*
*पिता और बेटे दोनों को,*
*अपनी बढ़ती उम्र का,*
*एहसास होने लगता है,*
*बेटा अब केवल बेटा नहीं, पिता भी बन चुका होता है,*
*कड़ी कमज़ोर होने लगती है*।
*पिता की सीख देने की लालसा,*
*और,*
*बेटे का,*
*उस भावना को नहीं समझ पाना*,
*वो सौम्यता भी खो देता है,*
*यही वो समय होता है जब,*
*बेटे को लगता है कि*,
*उसका पिता ग़लत है*,
*बस इसी समय को* *समझदारी से निकालना होता है,*
*वरना होता कुछ नहीं है,*
*बस बढ़ती झुर्रियां और बूढ़ा होता शरीर*
*जल्द बीमारियों को घेर लेता है।*
*फिर,*
*सभी को बेटे का इंतज़ार करते हुए माँ तो दिखती है,*
*पर,*
*पीछे रात भर से जागा, पिता नहीं दिखता,*
*पिता की उम्र और झुर्रियां,*
*और बढ़ती जाती है।*
*ये समय चक्र है,*
*जो बूढ़ा होता शरीर है बाप के रूप में उसे एक और बूढ़ा शरीर झांकता है आसमान से,*
*जो इस बूढ़े होते शरीर का बाप है,*
*हे मेरे महान पिता..*
*मेरे गौरव,*
*मेरे आदर्श,*
*मेरा संस्कार,*
*मेरा स्वाभिमान,*
*मेरा अस्तित्व...*