Saturday, May 28, 2022

 " स्त्री की चाहत क्या है?? "      💞💞💞💞
  एक विद्वान को फाँसी लगने वाली थी। 
राजा ने कहा ~ तुम्हारी जान बख्श दूँगा,
    अगर ...  मेरे एक सवाल का 
                सही उत्तर बता दोगे। 
               प्रश्न था, कि ....
   स्त्री , आख़िर चाहती क्या है ?
विद्वान ने कहा ~ मोहलत मिले, तो 
       पता कर के बता सकता हूँ। 
  राजा ने एक साल की मोहलत दे दी,
        विद्वान बहुत घूमा, 
          बहुत लोगों से मिला,
                पर कहीं से भी 
    कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला.
      आखिर में किसी ने कहा ~
    दूर जंगल में एक भूतनी रहती है। 
        वो ज़रूर बता सकती है ...
          इस सवाल का जवाब। 
   विद्वान उस भूतनी के पास पहुँचा, 
     और अपना प्रश्न उसे बताया। 
          भूतनी ने कहा कि ...
      मैं एक शर्त पर बताउंगी,
    अगर तुम मुझसे शादी कर लो। 
 उसने सोचा, सही जवाब न पता चला 
  तो जान ... राजा के हाथ जानी ही है, 
    इसलिए शादी की सहमति दे दी। 
   शादी होने के बाद भूतनी ने कहा ~
    चूंकि तुमने मेरी बात मान ली है,
    तो मैंने तुम्हें खुश करने के लिए 
         फैसला किया है कि ...
       12 घन्टे ... मै भूतनी और 
 12 घन्टे खूबसूरत परी बनके रहूँगी। 
        अब तुम ये बताओ कि ...
    दिन में भूतनी रहूँ या रात को ?
            उसने सोचा ... 
      यदि वह दिन में भूतनी हुई,
           तो दिन नहीं कटेगा,
      रात में हुई तो रात नहीं कटेगी। 
अंत में उस विद्वान व्यक्ति ने कहा ~
       जब तुम्हारा दिल करे 
              परी बन जाना, 
  जब दिल करे ~ भूतनी बन जाना। 
       ये बात सुनकर भूतनी ने 
  प्रसन्न हो कर कहा, चूंकि तुमने मुझे 
   अपनी मर्ज़ी करने की छूट दे दी है, 
             तो मैं हमेशा ही 
        परी बन के रहा करूँगी। 
 और यही ~ तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। 
       🙆🏻‍♀️    सत्री हमेशा ....
    अपनी मर्जी का करना चाहती है। 
  यदि स्त्री को ....
   अपनी मर्ज़ी का करने देंगे, तो वो
👉🏽  परी बनी रहेगी, वर्ना भूतनी  👈🏽
             
     ◆  फैसला आप का  ◆ 
       ◆  ख़ुशी आपकी  ◆
   सभी विवाहित पुरुषों को समर्पित...🤐😷
        अब ईमानदारी से बताओ,
            किसके घर में परी है ?
 गुप्ता जी दोपहर को अपने बरामदे में बैठे थे कि तभी एक अलसेशियन नस्ल का हष्ट पुष्ट व बेहद थका थका सा एक कुत्ता वहाँ पहुंच गया .
कुत्ते के गले में एक पट्टा भी था. 
उसे देख गुप्ता जी ने मन ही मन सोचा ...जरूर किसी अच्छे घर का पालतू कुत्ता है. 
जब उन्होंने उसे पुचकारा तो वह उनके पास आ गया. फिर जब उन्होंने उस पर प्यार से हाँथ फिराया तो वो पूँछ हिलाता वहीं बैठ गया.
.
कुछ देर बाद जब गुप्ता जी उठकर घर के अंदर गए तो वह कुत्ता भी उनके पीछे पीछे हॉल में चला आया और खिड़की के पास अपने पैर फैलाकर बैठा और देखते देखते ही सो गया.
गुप्ता जी ने भी हॉल का दरवाज़ा बंद किया और सोफे पर आ बैठे. 
करीब एक घंटे सोने के बाद कुत्ता उठा और दरवाजे की तरफ गया तो उठकर गुप्ता जी ने दरवाज़ा खोल दिया. 
कुत्ता घर के बाहर निकला और चला गया.
.
अगले दिन उसी समय कुत्ता फिर आ गया. खिड़की के नीचे एक घंटा सोया और फिर चला गया.
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उसके बाद वो रोज आने लगा. आता, सोता और फिर चला जाता.
.
गुप्ता जी के मन में उत्सुकता दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही थी कि इतना शरीफ, समझदार, व्यवहार कुशल कुत्ता आखिर है किसका और प्रतिदिन कहाँ से आता है?
.
एक दिन गुप्ता जी ने उसके पट्टे में एक चिठ्ठी बाँध दी. जिसमें लिख दिया : आपका कुत्ता रोज मेरे घर आकर सोता है. ये आपको मालूम है क्या ?
.
अगले दिन जब वो प्यारा सा कुत्ता आया तो गुप्ता जी ने देखा कि उसके पट्टे में एक चिठ्ठी बँधी हुई है. 
उसे निकालकर उन्होंने पढ़ना शुरू किया.... जिसमें लिखा था : ये एक अच्छे घर का बहुत ही शांतिप्रिय कुत्ता है औऱ हमारे साथ ही रहता है लेकिन मेरी पत्नी की पूरे दिन की किटकिट, पिटपिट, चिकचिक, बड़बड़ के कारण वो सो नहीं पाता और रोज हमारे घर से कहीं चला जाता है.
अगर आप इजाजत दे दें तो मैं भी उसके साथ आ कर कुछ देर आपके घर सो सकता हूँ क्या ...??
 नाम का पंगा 🤣
जैसलमेर से बीकानेर बस रुट पर....
बीच में एक बड़ा सा गाँव है जिसका नाम है *नाचने*
 
वहाँ से बस आती है तो लोग कहते है कि 
*नाचने वाली बस आ गयी..*😎 
कंडक्टर भी बस रुकते ही चिल्लाता.. 
*नाचने वाली सवारियाँ उतर जाएं बस आगे जाएगी..*😎
इमरजेंसी में रॉ का एक नौजवान अधिकारी जैसलमेर आया 
रात बहुत हो चुकी थी,
वह सीधा थाने पहुँचा और ड्यूटी पर तैनात सिपाही से पूछा -
*थानेदार साहब कहाँ हैं ?*
सिपाही ने जवाब दिया थानेदार साहब *नाचने* गये हैं..😎
अफसर का माथा ठनका उसने पूछा डिप्टी साहब कहाँ हैं..?
सिपाही ने विनम्रता से जवाब दिया-
हुकुम 🙏🏻 *डिप्टी साहब भी नाचने* गये हैं..😎
अफसर को लगा सिपाही अफीम की पिन्नक में है, उसने एसपी के निवास पर फोन📞 किया।
एस.पी. साहब हैं ?
जवाब मिला *नाचने* गये हैं..!!
लेकिन *नाचने* कहाँ गए हैं, ये तो बताइए ?
बताया न *नाचने* गए हैं, सुबह तक आ जायेंगे।
कलेक्टर के घर फोन लगाया वहाँ भी यही जवाब मिला, साहब तो *नाचने* गये हैं..
अफसर का दिमाग खराब हो गया, ये हो क्या रहा है इस सीमावर्ती जिले में और वो भी इमरजेंसी में।
पास खड़ा मुंशी ध्यान से सुन रहा था तो वो बोला - हुकुम बात ऐसी है कि दिल्ली से आज कोई मिनिस्टर साहब *नाचने* आये हैं।
इसलिये सब अफसर लोग भी *नाचने* गये हैं..!!
x
 *हास्य कविता*
😀😀😀😀😀😀😀
अक्ल बाटने लगे विधाता,
             लंबी लगी कतारी ।
सभी आदमी खड़े हुए थे,
            कहीं नहीं थी नारी ।
सभी नारियाँ कहाँ रह गई,
          था ये अचरज भारी ।
पता चला ब्यूटी पार्लर में,
          पहुँच गई थी सारी।
मेकअप की थी गहन प्रक्रिया,
           एक एक पर भारी ।
बैठी थीं कुछ इंतजार में,
          कब आएगी बारी ।
उधर विधाता ने पुरूषों में,
         अक्ल बाँट दी सारी ।
ब्यूटी पार्लर से फुर्सत पाकर,
        जब पहुँची सब नारी ।
बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है,
        नहीं अक्ल अब बाकी ।
रोने लगी सभी महिलाएं ,
        नींद खुली ब्रह्मा की ।
पूछा कैसा शोर हो रहा है,
         ब्रह्मलोक के द्वारे ?
पता चला कि स्टॉक अक्ल का
         पुरुष ले गए सारे ।
ब्रह्मा जी ने कहा देवियों ,
          बहुत देर कर दी है ।
जितनी भी थी अक्ल वो मैंने,
          पुरुषों में भर दी है ।
लगी चीखने महिलाये ,
         ये कैसा न्याय तुम्हारा?
कुछ भी करो हमें तो चाहिए,
          आधा भाग हमारा ।
पुरुषो में शारीरिक बल है,
          हम ठहरी अबलाएं ।
अक्ल हमारे लिए जरुरी ,
         निज रक्षा कर पाएं ।
सोचकर दाढ़ी सहलाकर ,
         तब बोले ब्रह्मा जी ।
एक वरदान तुम्हे देता हूँ ,
         अब हो जाओ राजी ।
थोड़ी सी भी हँसी तुम्हारी ,
         रहे पुरुष पर भारी ।
कितना भी वह अक्लमंद हो,
         अक्ल जायेगी मारी ।
एक औरत ने तर्क दिया,
        मुश्किल बहुत होती है।
हंसने से ज्यादा महिलाये,
        जीवन भर रोती है ।
ब्रह्मा बोले यही कार्य तब,
        रोना भी कर देगा ।
औरत का रोना भी नर की,
        अक्ल हर लेगा ।
एक अधेड़ बोली बाबा,
       हंसना रोना नहीं आता ।
झगड़े में है सिद्धहस्त हम,
       खूब झगड़ना भाता ।
ब्रह्मा बोले चलो मान ली,
       यह भी बात तुम्हारी ।
झगड़े के आगे भी नर की,
       अक्ल जायेगी मारी ।
ब्रह्मा बोले सुनो ध्यान से,
       अंतिम वचन हमारा ।
तीन शस्त्र अब तुम्हे दिए,
       पूरा न्याय हमारा ।
इन अचूक शस्त्रों में भी,
       जो मानव नहीं फंसेगा ।निश्चित समझो, 
       उसका घर नहीं बसेगा ।
कहे कवि मित्र ध्यान से,
       सुन लो बात हमारी ।
बिना अक्ल के भी होती है,
       नर पर नारी भारी।
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 अभी कुछ दिन पहले की बात है, हमलोग एक रेस्टोरेंट में गए थे, मैं, मम्मी- पापा और मेरा छोटा भाई, एक तो हमारे यहाँ आर्डर करने के लिए मेन्यू नहीं देखा जाता है, एक ही फिक्स्ड रेस्टोरेंट है, वही बटर नान तवा रोटी, चिल्ली पनीर या फिर कढ़ाई पनीर आर्डर होता है तो उस दिन क्या हुआ कि ऑलमोस्ट आधी सब्ज़ी बच गयी , अब देखोे भाई judge मत करना पर हमारे यहाँ सब्जी बच जाती है तो हमलोग पैक करा लेते हैं कि कल दिन में गरम करके लंच में खा लेंगे (आपमें से भी कई लोग ऐसा करते ही होगे), मैंने बची हुई चिल्ली पैक करा ली और हमलोग जैसे ही उस रेस्टोरेंट से बाहर निकले, कुछ बच्चे, फटे कपड़े, नंगे पैर में वो जो पेन या गुब्बारा बेचते हैं ना दस रूपए वाले वो आ गए कि भईया कुछ खिला दो ।
मैंने वो सब्जी का पैकेट उन्हें दे दिया, एक पेन भी ले लिया पर पता है, ये सब देख के बहुत व्यथित हो जाता हूँ मैं कि क्या भविष्य होगा इनका, हाँ अब इस पोस्ट को पढ़ने वाले कुछ लोगों को ये भी लगेगा कि मुझे दरियादिली दिखा के उन बच्चों को अडॉप्ट कर लेना चाहिए था, मैं कर भी लेता अगर मेरे पास इतना सामर्थ्य होता है पर पता है ये मैं लिख क्यों रहा हूँ, मुझे लगता है इस चैनल पे मैक्सिमम लोग मेरी ही तरह मिडिल क्लास या लोअर मिडिल क्लास फैमिली से आते हैं जिनकी घर की दिवार से शायद चूना निकलता होगा पर पढ़ाई लिखाई से कभी compromise नहीं किया गया होगा । (ये चैनल है भी उन्ही के लिए जो अपने चैलेंजिंग जीवन के बाद थोड़ी देर यहां आकर अपना मनोरंजन कर ले)
आपलोग को लगता होगा कि बाबा क्या रोज पकाते रहते हैं कभी अपने सड़े गले चुटकुलों से, कभी इधर उधर के #पिंकू_ज्ञान से तो कभी इस बात से कि पढ़ लो, पढ़ लो.. पर मैं एक की चीज़ अपने तजुर्बे से बता रहा हूँ कि मैंने अपना और अपने घर का स्टैण्डर्ड बदलते हुए देखा है मेरी जॉब लगने के बाद, देखिये नौकरी तो आपको कोई ना कोई मिल ही जाएगी, पर अगर पसंद की नौकरी नहीं मिली ना तो दो चीज़ें होंगी, या तो आप पैसे की वजह से कुछ खरीद नहीं पाएंगे या अपने औधे की वजह से कुछ बोल नहीं पाएंगे और कल अगर ऐसा हो गया ना तो कसम से बहुत खलेगा आपको इसलिए अगर अभी भी मौका है तो waste मत करिये उसे, दूसरों के लिए सवेरा कल सुबह से होगा पर आपका अभी से होना चाहिए.... 
खुश रहिए खुश रखिए
जीवन में जो हासिल करने का सोचा है उसके लिए सच्ची लगन से प्रयासरत रहिए
और कभी कभी अपने इस #बाबा_बनारसी को भी याद कर लिया करिए
क्युकी यहा मैं अपने लिए नहीं आप सबके लिए ही आता हूं 😊🤘
(ऊपर लिखी नौकरी वाली बात महज काल्पनिक है मैं अब भी बेरोजगार हूं 

 !!!जिस किसी ने लिखा?क्या खूब लिखा?!!!

*भारतीय पिता पुत्र की जोड़ी भी बड़ी कमाल की जोड़ी होती है।*

*दुनिया के किसी भी सम्बन्ध में,*

*अगर सबसे कम बोल-चाल है,*

*तो वो है पिता-पुत्र की जोड़ी में।*


*एक समय तक दोनों अंजान होते हैं,* 

*एक दूसरे के बढ़ते शरीरों की उम्र से, फिर धीरे से अहसास होता है,* 

*हमेशा के लिए बिछड़ने का।*


*जब लड़का,*

*अपनी जवानी पार कर,* 

*अगले पड़ाव पर चढ़ता है,*

*तो यहाँ,*

*इशारों से बाते होने लगती हैं,* 

*या फिर,* 

*इनके बीच मध्यस्थ का* *दायित्व निभाती है माँ*


*पिता अक्सर पुत्र की माँ से कहता है,जा,* *"उससे कह देना"*

*और,* 

*पुत्र अक्सर अपनी माँ से कहता है,*

*"पापा से पूछ लो ना"*


*इन्हीं दोनों धुरियों के बीच,*

*घूमती रहती है माँ।* 


*जब एक,* 

*कहीं होता है,*

*तो दूसरा,*

*वहां नहीं होने की,*

*कोशिश करता है,*


*शायद,*

*पिता-पुत्र नज़दीकी से डरते हैं।*

*जबकि,* 

*वो डर नज़दीकी का नहीं है,* 

*डर है,*

*उसके बाद बिछड़ने का।* 


*भारतीय पिता ने शायद ही किसी बेटे को,* 

*कभी कहा हो,* 

*कि बेटा,* 

*मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ*


*पिता के अनंत रौद्र का उत्तराधिकारी भी वही* *होता है,*

*क्योंकि,*

*पिता, हर पल ज़िन्दगी में,* 

*अपने बेटे को,*

*अभिमन्यु सा पाता है।*


*पिता समझता है,*

*कि इसे सम्भलना होगा*, 

*इसे मजबूत बनना* *होगा, ताकि*, 

*ज़िम्मेदारियो का बोझ,* 

*इसका वध न कर सके।*

*पिता सोचता है,*

*जब मैं चला जाऊँगा*, 

*इसकी माँ भी चली* *जाएगी,*

*बेटियाँ अपने घर चली जायेंगी,*

*तब, रह जाएगा सिर्फ ये,*

*जिसे, हर-दम, हर-कदम,* 

*परिवार के लिए,*

*आजीविका के लिए*,

*बहु के लिए,*

*अपने बच्चों के लिए,* 

*चुनौतियों से,*

*सामाजिक जटिलताओं से,* 

*लड़ना होगा।*


*पिता जानता है कि,* 

*हर बात,* 

*घर पर नहीं बताई जा सकती,*

*इसलिए इसे,* 

*खामोशी से ग़म छुपाने सीखने होंगें।*


*परिवार के विरुद्ध खड़ी,*

*हर विशालकाय मुसीबत को,* 

*अपने हौसले से,*

*छोटा करना होगा।*

*ना भी कर सके*

*तो ख़ुद का वध करना होगा।*

*इसलिए,* 

*वो कभी पुत्र-प्रेम प्रदर्शित नहीं करता,*


*पिता जानता है कि,*

*प्रेम कमज़ोर बनाता है।*

*फिर कई बार उसका प्रेम,* 

*झल्लाहट या गुस्सा बनकर,*

*निकलता है,* 


*वो गुस्सा अपने बेटे की कमियों के लिए नहीं होता,*

*वो झल्लाहट है,*

*जल्द निकलते समय के लिए,* 

*वो जानता है,* 

*उसकी मौजूदगी की,*

*अनिश्चितताओं को।*


*पिता चाहता है*, 

*कहीं ऐसा ना हो कि,* 

*इस अभिमन्यु का वध*, 

*मेरे द्वारा दी गई,* 

*कम शिक्षा के कारण हो जाये,*

*पिता चाहता है कि,*

*पुत्र जल्द से जल्द सीख ले,* 

*वो गलतियाँ करना बंद करे,*

*क्योंकि गलतियां सभी की माफ़ हैं,* 

*पर मुखिया की नहीं,*


*यहाँ मुखिया का वध सबसे पहले होता है।*


*फिर,* 

*वो समय आता है जबकि,* 

*पिता और बेटे दोनों को,* 

*अपनी बढ़ती उम्र का,* 

*एहसास होने लगता है,* 

*बेटा अब केवल बेटा नहीं, पिता भी बन चुका होता है,* 

*कड़ी कमज़ोर होने लगती है*।


*पिता की सीख देने की लालसा,* 

*और,* 

*बेटे का,* 

*उस भावना को नहीं समझ पाना*, 

*वो सौम्यता भी खो देता है,*

*यही वो समय होता है जब,* 

*बेटे को लगता है कि*, 

*उसका पिता ग़लत है*, 

*बस इसी समय को* *समझदारी से निकालना होता है,* 

*वरना होता कुछ नहीं है,*

*बस बढ़ती झुर्रियां और बूढ़ा होता शरीर*

*जल्द बीमारियों को घेर लेता है।* 

*फिर,* 

*सभी को बेटे का इंतज़ार करते हुए माँ तो दिखती है,* 

*पर,*

*पीछे रात भर से जागा, पिता नहीं दिखता,*

*पिता की उम्र और झुर्रियां,*

*और बढ़ती जाती है।*


*ये समय चक्र है,*

*जो बूढ़ा होता शरीर है बाप के रूप में उसे एक और बूढ़ा शरीर झांकता है आसमान से,* 

*जो इस बूढ़े होते शरीर का बाप है,*


*हे मेरे महान पिता..*

*मेरे गौरव,*

*मेरे आदर्श,* 

*मेरा संस्कार,* 

*मेरा स्वाभिमान,*

*मेरा अस्तित्व...*

 Top 4 Ways to Invest in Yourself


1. Set goals.  If you're not taking the time to set goals it's like driving in the dark with the headlights turned off. 


2. Honor your intuition. Valuing your intuition, by not allowing the thoughts, feelings or statements of others to take away from what you know to be true is very empowering. 


3. Invest time in your creativity. Creativity can be the catalyst in the manifestation of continual learning and lifelong activity. It allows us to be inspired, have fun and appreciate the beauty in the world.


4. Invest in building your confidence. People who know their value, have something to say and others will listen. You can invest in yourself by developing an understanding of the value that you possess and offer others. Learn to have the courage to speak your truth. The more you love yourself and own the value that you offer, the more confident you will become in sharing it with others.


 एक साहब सुबह अपने दफ्तर जा रहे थे..

कि 

रास्ते में ही उनका मोबाइल चोरी हो गया।


अब ट्रेजडी शुरू, 


दिन भर की व्यस्तता के बाद थके हारे जब साहब घर आए तो घर का दृश्य देखकर कांप गये।


घर में उसके सास और ससुर जी.. अपनी बेटी औऱ नाती नतिनी का सामान पैक कर उनका इंतजार कर रहे थे।


पत्नी और सास की आंखें रो रो कर लाल हो गई थीं। 


ससुर जी के चेहरे पर दामाद को नापसंद करने वाला खूँखार असुर  साफ साफ दिख रहा था।


"क्या मामला है....??


 और 


कहां लेकर जा रहे हैं मेरी पत्नी औऱ बच्चों को?? 


सब खैरियत तो है??" 

उन्होंने कुछ न समझने वाले अंदाज में डरते डरते प्रश्न किया तो ससुर जी ने उनकी बीवी का मोबाइल उनके सामने रख दिया...??


"मैं तुम्हें तलाक़ देता हूं"...


बीवी के मोबाइल पर उनके मोबाइल से मैसेज आया था।


मैसेज देख कर साहब ने राहत की सांस ली...

और बताया कि..


उनका मोबाइल तो सुबह ही चोरी हो गया था। 

उन्होंने सारी बात बताकर सबको अपने निर्दोष होने का यकीन दिलाया।


अब उनकी बीवी अपनी मां से लिपट कर रोने लगीं और ससुर जी शांत हो गये।


"लेकिन चोर ने मेरी बीवी को तलाक़ का मैसेज क्यों किया???"


इस कन्फ्यूजन में उन्होंने दूसरे फ़ोन से अपने मोवाईल पर नंबर डायल किया तो चोर ने फोन उठा लिया, 


साहब छूटते ही टूट पड़े उस चोर पर..... 

"ओए चोट्टे, कमीने हरामखोर इंसान! फोन चुराया सो चुराया! तूने मेरी बीवी को तलाक़ का मैसेज क्यों भेजा??" 


जूते मार-मारकर थोबड़ा सूजा दूँगा तेरा...??


चोर ने शांति से उनकी बात सुनी और कहने लगा...


"देखिये साहब! 

सुबह...जब से आपका फोन चुराया है... मेरी जिंदगी झंड हो गई है।

मुझे अब तक आपकी बीवी के हज़ारों मैसेज मिल चुके हैं....??


कहां हो??.... 


क्या कर रहे हो??.... 


कब आओगे??.... 


आते हुए पुदीना औऱ टमाटर ले आना??...

 

और हां 


गुप्ता स्वीट्स से गरम समोसे लेना मत भूलना..!!


जल्दी आना.... 

देखो नींबू भी खत्म हो गई है...तीन से ज़्यादा मत लेना।


एक औऱ काम करते आना... बाबू की चड्डी सुबह से नहीं मिल रही..पता नहीं कहाँ गुम हो गई.. नई ले लेना।


गुड़िया का मोजा भी फट गया है.. 

देख लेना।


अपनी ऑफिस की रश्मि से ज़्यादा हँस कर बातें मत करना...

चुड़ैल है वो..

सारा दिन चपड़-चपड़ करते रहती है...?


गुप्ता जी के चक्कर में ज्यादा सिगरेट मत पीना..??


औऱ शायद कुछ भूल रही हूँ...


याद आते ही मैसेज करूँगी..??


वगैरह वगैरह......


मैं पागल हो गया था साहब...


एक तो सुबह सुबह मेरी बोहनी ख़राब हो गई....ऊपर से दर्द से सिर फट रहा है...अधमरा सा हो गया हूं साहब...??


इसलिए मैंने मज़बूर होकर तलाक़ वाला मैसेज भेजा तब जाकर मेरी जान छूटी..

 में कभी भी शराब पीते हुए रिस्क नहीं लेता।

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मैं ऑफिस से शाम को घर पे आया तो बीवी खाना बना रही थी।


हाँ, मुझे रसोई से बर्तनों की आवाज़ आ रही है।


मैं छुपके से घर में घुस गया


काले रंग की अलमारी में से ये मैंने बोतल निकाली


शिवाजी महाराज फ़ोटो फ्रेम में से मुझे देख रहे हैं


पर अब भी किसी को कुछ पता नहीं लगा


क्योंकि मैं कभी रिस्क नहीं लेता।

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मैंने पुरानी सिंक के ऊपर वाली रैक से गिलास निकाला


और फटाक से एक पेग गटक लिया।


गिलास धोया, और उसे फिर से रैक पे रख दिया।


बेशक मैंने बोतल भी अलमारी में वापस रख दी


शिवाजी महाराज मुस्कुरा रहे हैं


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मैंने रसोई में झांका


बीवी आलू काट रही है।


किसी को कुछ पता नहीं चला के मैंने अभी अभी क्या किया


क्योंकि मैं कभी रिस्क नहीं लेता।

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मैं बीवी से पूछा: चोपड़ा की बेटी की शादी का कुछ हुआ ?


बीवी : नहीं जी, बड़ी ख़राब किस्मत है बेचारी की। अभी लड़का देख ही रहे हैं वो लोग उसके लिए।

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मैं फिर से बाहर आया, काली अलमारी की हलकी सी आवाज़ हुई


पर बोतल निकालते हुए मैंने बिल्कुल आवाज़ नहीं की


सिंक के ऊपर वाली पुरानी रैक से मैंने गिलास निकाला


लो जी फटाफट दो पेग और मार लिए

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बोतल धोयी और संभाल के सिंक में रख दी


और काले गिलास को अलमारी में भी रख दिया


पर किसी को अब भी हवा तक नहीं लगी के मैंने क्या किया


क्योंकि मैं कभी रिस्क नहीं लेता

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मैं बीवी से : फिर भी ! चोपड़ा की लड़की की अभी उम्र ही क्या है


बीवी: क्या बात कर रहे हो जी !!! 28 की हो गयी है…बूढ़ी घोड़ी की तरह दिखने लगी है।


मैं: (भूल ही गया कि उसकी उम्र तो 28 साल है) अच्छा अच्छा..

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मैंने फिर से मौका देख के काली अलमारी में से आलू निकाले


पर पता नहीं यार अलमारी की जगह कैसे अपने आप बदल गयी!


ये मैंने रैक से बोतल निकाली, सिंक में एक पेग बनाया और गटागट पी गया

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शिवाजी महाराज बड़ी जोर जोर से हँस रहे हैं


रैक को ये मैंने आलू में रक्खा, शिवाजी महाराज की फ़ोटो भी ढंग से धो दी और लो जी काली अलमारी में भी रख दी

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बीवी क्या कर रही है, हाँ ! वो सिंक चूल्हे पे चढ़ा रही है।


पर अब भी किसी को कुछ पता नहीं चला के मैंने क्या किया


क्योंकि! क्योंकि मैं कभी रिस्क नहीं लेता।

(ये हुचकि क्यों आ रही है, कौन याद किया मेरे को)

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मैं बीवी से: (गुस्सा होते हुए) तुमने चोपड़ा साहब को घोड़ा बोला? अगर तुमने दोबारा ऐसा बोला तो तुम्हारी ज़ुबान काट दूंगा…!


बीवी: हाँ बाबा बड़बड़ाओ मत ! शांति से बैठो तुम अब बाहर जाकर, इस समय वही ठीक है तुम्हारे लिए…

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मैंने आलू में से बोतल निकाली


काली अलमारी में गया और अपने पेग के मजे लिए


सिंक धोया और उसको रैक के ऊपर रख दिया


बीवी फ्रेम में से अब भी मुस्कुरा रही है

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शिवाजी महाराज खाना बनाने में बिजी हैं


पर अब भी किसी को कुछ नहीं पता मैंने क्या किया


क्योंकि मैं रिस्क लेता ही नहीं ना यार

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मैं बीवी से : (हँसते हुए) तो चोपड़ा घोड़े से शादी कर रहा है!!


बीवी: सुनो ! जाओ, तुम पहले अपने मुँह पे पानी के छपाके मारो…

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मैं फिर रसोई में गया और चुपचाप रैक पे बैठ गया


चूल्हा भी रखा है रैक पे


बाहर कमरे से बोतल की आवाज़ सी आई

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मैंने झाँका और देखा की बीवी सिंक में बैठी पेग के मजे ले रही है


पर अब तक किसी भी घोड़े को पता नहीं लगा के मैंने क्या किया


क्योंकि शिवाजी महाराज कभी रिस्क नहीं लेते

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चोपड़ा साला अब भी खाना बना रहा है


और मैं फ़ोटो में से अपनी बीवी को देख रहा हूँ और हँस रहा हूँ


क्योंकि! क्योंकि मैं कभी! क्योंकि मैं कभी क्या नहीं लेता यार??? हाँ !!! मैं कभी आलू नहीं लेता… शायद!


 "एक ही घर"


हम दो भाई एक ही मकान में रहते हैं, मैं पहली मंजिल पर और भैया निचली मंजिल पर। पता नही हम दोनों भाई कब एक दूसरे से दूर होते गए, एक ही मकान में रहकर भी ज्यादा बातें न करना, विवाद वाली बातों को तूल देना, यही सब चलता था। भैया ऑफिस के लिए जल्दी निकलते और घर भी जल्दी आते थे, जबकि मैं देर से निकलता और देर से लौटता था, इसलिए मेरी गाड़ी हमेशा उनकी गाड़ी के पीछे खड़ी होती थी। हर रोज सुबह गाड़ी हटाने के लिए उनका आवाज देना मुझे हमेशा अखरता, मुझे लगता कि मेरी नींद खराब हो रही है। कभी रात के वक्त उनका ये बोलना नागवार गुजरता कि बच्चों को फर्श पर कूदने से मना करो, नींद में खलल पड़ता है।

ऐसे ही गुजरते दिनों के बीच एक बार मैं बालकनी में बैठा था, कि मुझे नीचे से मकान का गेट खुलने की आवाज सुनाई दी, झांककर देखा, तो पाया कि नीचे कॉलोनी के युवाओं की टोली थी जो किसी त्यौहार का चंदा मांगने आई थी। नीचे भैया से चंदा लेकर वो लोग पहली मंजिल पर आने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ने लगे, तो भैया बोले," अरे उपर मत जाओ, उपर नीचे एक ही घर है"। युवाओं की टोली तो चली गई पर मेरे दिमाग में भैया कि बात गूँजने लगी, "उपर नीचे एक ही घर है"।

मैं शर्मिंदा महसूस करने लगा कि भैया में इतना बड़प्पन हैं, और मैं उनसे बैर रखता हूँ?

बात सौ दो सौ रूपयों के चंदे की नहीं बल्कि सोच की थी, और भैया अच्छी सोच में मुझसे कहीं आगे थे।

अगले दिन से मैने सुबह जल्दी उठकर गाड़ी बाहर करना शुरू कर दिया, बच्चों को हिदायत दी कि रात जल्दी सोया करें ताकि घर के बड़े चैन से सो सकें, क्योंकि "हमारा घर एक है"।

 अगर महिलायें गंजी हो जायें, तो बदसूरत लगती हैं...

अगर महिलाओं की मूँछें आ जायें, तो बदसूरत लगती हैं...

अगर महिलाओं के सिक्स पैक्स एब्स निकल आये, 

तो खराब लगती हैं......


और आप कहते है कि, महिलायें खूबसूरत हैं...???


अब पुरुष की बात करते है.... 

यानी लड़कों की... ,


अगर लड़के क्लीन शेव रहें, तो खूबसूरत लगते हैं... 

और दाढ़ी रखें, तब भी खूबसूरत लगते हैं....


अगर लड़के गंजे हो जाएं, तब भी ख़ूबसूरत लगते हैं...

बड़े बाल रख लें, तब भी खूबसूरत लगते है....

मीडियम बाल रखें, तब भी खूबसूरत लगते है...


अगर लड़कों के सिक्स पैक एब्स आ जाए, तो खूबसूरत.. 

और छरहरे हों, तो भी खूबसूरत...


यानि स्त्री की खूबसूरती एक मृगमरीचिका है...!

किसी जादूगर का इंद्रजाल है...!!


लेकिन पुरुष की खूबसूरती...... 

एक शाश्वस्त सत्य है...जो हर परिस्थिति में व्याप्त रहती है...


*नोट - महिलाएँ धक्का-मुक्की ना करें..🙏

           कृपया लाइन लगाकर गुस्सा दिखाये,..!😂

 मोटापा कम करने का उपाय

😄😄😄

एक मोटे आदमी

ने न्यूज पेपर में विज्ञापन देखा ” एक सप्ताह में 5 किलो

वजन कम कीजिये। ” 💡⚖️⚖️


उसने उस विज्ञापन वाली कम्पनी में

फोन किया तो एक महिला ने जवाब दिया और कहा : ” कल

सुबह 6 बजे तैयार रहिए। ”


अगली सुबह उस मोटे ने दरवाजा खोला तो देखा कि एक

खूबसूरत युवती जागिंग

सूट और शूज पहने बाहर तैयार खड़ी है।😍😍


युवती बोली :- मुझे पकड़ो और मुझे किस कर लो ये कह कर

युवती दौड़ पड़ी।😘😘


मोटू भी पीछे दौड़ा मगर उसे पकड़ नहीं पाया।

पूरे हफ्ते रोज मोटू ने उसे पकड़ने का प्रयास किया लेकिन उस

युवती को पकड़ नही पाया। और उसका 5 किलो वजन कम

हो गया।🏃🏃🏃💃💃💃


फिर मोटू ने 10 किलो वजन कम करने वाले प्रोग्राम की

बात की।


अगली सुबह 6 बजे उसने दरवाजा खोला तो देखा कि: पहले

वाली से भी खूबसूरत

युवती जागिंग सूट और शूज में खड़ी है।🙀🙀🙀


 युवती बोली :- मुझे

पकड़ो और मुझे किस करलो और इस हफ्ते मोटू का 10 किलो

वजन घट गया। 😻😻


मोटू ने सोचा वाह क्या बढ़िया प्रोग्राम है। क्यूँ ना 25

किलो वाला प्रोग्राम आजमाया जाए। उसने 25 किलो वाले

प्रोग्राम के लिए फोन किया। तो महिला ने जवाब दिया और

कहा कि : 

” क्या आपका इरादा पक्का है.?” क्योंकि ये

प्रोग्राम थोड़ा कठिन है। ”


मोटू बोला :- ” हाँ। ” 😜😏😏


अगली सुबह 6 बजे मोटू ने दरवाजा खोला तो देखा कि

दरवाजे पर जागिंग सूट और शूज पहने एक काली भुजंग लड़की

खडी है …… 😵😵


लड़की बोली : मैंने तुम्हे पकड़ लिया तो मैं तुम्हें

किस करूँगी,  😚😚😚


बस तो फिर क्या अब तो भाग मिल्खा भाग…!!! 

 ⚜️⚜️⚜️

*कभी हम भी.. बहुत अमीर हुआ करते थे* 

*हमारे भी जहाज.. चला करते थे।*


*हवा में.. भी।*

*पानी में.. भी।*


*दो दुर्घटनाएं हुई।*

*सब कुछ.. ख़त्म हो गया।*


                *पहली दुर्घटना* 


जब क्लास में.. हवाई जहाज उड़ाया।

टीचर के सिर से.. टकराया।

स्कूल से.. निकलने की नौबत आ गई।

बहुत फजीहत हुई।

कसम दिलाई गई।

औऱ जहाज बनाना और.. उडाना सब छूट गया।


                 *दूसरी दुर्घटना*


बारिश के मौसम में, मां ने.. अठन्नी दी।

चाय के लिए.. दूध लाना था।कोई मेहमान आया था।

हमने अठन्नी.. गली की नाली में तैरते.. अपने जहाज में.. बिठा दी।

तैरते जहाज के साथ.. हम शान से.. चल रहे थे।

ठसक के साथ।

खुशी खुशी।

अचानक..

तेज बहाव् आया।

और..

जहाज.. डूब गया।


साथ में.. अठन्नी भी डूब गई।

ढूंढे से ना मिली।


मेहमान बिना चाय पीये चले गये।

फिर..

जमकर.. ठुकाई हुई।

घंटे भर.. मुर्गा बनाया गया।

औऱ हमारा.. पानी में जहाज तैराना भी.. बंद हो गया।


आज जब.. प्लेन औऱ क्रूज के सफर की बातें चलती हैं , 

तो.. उन दिनों की याद दिलाती हैं।


वो भी क्या जमाना था !


और..

आज के जमाने में..

मेरे बेटे ने...   

पंद्रह हजार का मोबाइल गुमाया तो..


मां बोली ~ कोई बात नहीं ! 

पापा..

*दूसरा दिला देंगे।*


हमें अठन्नी पर.. मिली सजा याद आ गई।


फिर भी आलम यह है कि.. 

आज भी.. हमारे सर.. 

मां-बाप के सामने.. 

अदब से झुकते हैं।


औऱ हमारे बच्चे.. 'यार पापा ! 

यार मम्मी !

कहकर.. बात करते हैं।

हम प्रगतिशील से.. 

प्रगतिवान हो गये हैं।


कोई लौटा दे.. मेरे बीते हुए दिन।।



 *मैं तो "पत्थर" हूँ; मेरे माता-पिता "शिल्पकार" है..*

*मेरी हर "तारीफ़" के वो ही असली "हक़दार हैं ।*🌹



लोग पूछते हैं कि दुनिया में इतनी पीड़ा क्यों है?...

❤️

दुनियां में इतनी पीड़ा इसलिए है क्योंकि इस दुनिया को ही प्रेमियों की हाय लग गयी है...




किसी ने कभी सोचा है उस प्रेमिका के बारे में, जिसे उसके प्रेमी से छीन अनजाने मर्द के साथ ब्याह दिया गया हो गाजे-बाजे और धूम-धड़ाके के साथ... जिस धूम-धड़ाके की आवाज में प्रेमिका की सिसकी भी घुट कर ही मर गई होगी...




कभी सोचा है जब उसे उसके प्रेमी की जगह कोई अनजान मर्द (जो शादी के बाद उसका स्वामी होता है) ने पहली बार छुआ होगा तो कितना वीभत्स महसूस किया होगा उसने...




या उस प्रेमी के बारे में कभी सोचा है जिससे ब्याही गयी होगी कोई अनजान औरत और वह खोजता होगा उसके चेहरे में अक्स अपनी प्रेयशी का... जब नहीं पाता होगा तब रह जाता होगा तड़प कर...




यह तड़प, यह सिसकी, यह वेदना कैद है इस दुनिया में तभी तो इतनी पीड़ा है!




अक्सर लोग जिससे प्रेम करते हैं उससे शादी नहीं हो पाती और जिससे शादी होती है उससे प्रेम कायम करने में समय लग जाता है... यह भी अजीब ही है, पर है तो सच ही!




अगर सौ अरेंज शादी की बात हो और थोड़ा बढ़ा-चढ़ा कर बोला जाय तो मुश्किल से 20-25 फीसदी जोड़े ही उस फुलफिलमेंट को, उस तृप्ति को, उस संतुष्टि को, उस खिलावट को, उस निखार को पाते हैं जो स्त्री पुरुष के मिलने पर होना चाहिए! 75-80 फीसदी इससे मरहूम ही रह जाते हैं... और जो इससे मरहूम रह गया उसके जीवन में शादी के कुछ दिनों तक पीड़ा रहेगी ही...




जहाँ तक शादी के बाद प्रेम कायम करने की बात है तो लोग मजबूरी में एडजस्ट कर ही लेते हैं!...

❤️

जिसने आपको चाहा उसे आप चाह न सके

जिसको आपने चाहा उसे आप पा न सके

ये मोहब्बत दिल टूटने का ही खेल है यारों

किसी का तोड़कर भी अपना ही बचा न सके💜







प्यार करो तो उसे शादी के बंधन तक जरूर ले कर जाओ

वरना प्यार तब तक मत करो जब तक किसी से शादी में बंध न जाओ

 शादी को सालभर होने को आया था मगर वो हमेशा अपनी पत्नी से कहता रहता की .... मेरी जिंदगी तो एक खुली किताब की तरह है …जो चाहे सो पढ़ लो...

पत्नी ने हैरानी से उसकी और देखा

तो वह बोला ... खुली किताब ... मेरी जिंदगी रंगीन रही है 

वो कभी बहाने से अपने कालेज में लड़कियों से छेड़छाड़ करने या उनके साथ किए गए फ्लर्ट के किस्से सुनाता  

एकबार तो उसने आलमारी से एक पुरानी डायरी निकालकर उसमें रखी एक फोटो दिखाकर कहा कि एक समय पर ये उसकी गर्लफ्रेंड रही थी देखो कितनी खूबसूरत है। उस जमाने में ऐसी और भी साथ पढ़ने वाली लड़कियां उसपर जान छिड़कती थी….

पत्नी सदैव उसकी बातों पर चुपचाप मुस्कुराती रहती कुछ कहती नहीं जैसे उसपर इन बातों का कोई असर ही नहीं होता था। इस चुप्पी और मुस्कुराहट को दिनबादिन देखते हुए एक दिन वो पत्नी से प्रश्न कर ही बैठा ...यार एक बात तो बताओ ... मैं तो हमेशा अपनी जिंदगी की किताब खोलकर तुम्हारे सामने रख देता हूं और तुम हो कि बस चुपचाप मुस्कुराती रहती हो कभी तुम भी तो अपनी जिंदगी की किताब खोलकर हमें उसके किस्से सुनाओ

चुप रहनेवाली पत्नी मुस्कुराती हुई अचानक गम्भीर हो गई और फिर अपने पति से बोली....

मैं तो तुम्हारे जीवन की रंगीन किताब सुनकर हमेशा मुस्कुराती रही हूं 

लेकिन सच कहो …. मेरी जिंदगी की किताब में भी यदि ऐसे ही कुछ पन्ने निकल गए तो क्या तुम भी ऐसे ही मुस्कुरा सकोगे 

उसने एकबार अपनी पत्नी की ओर देखा फिर शर्मिंदगी से उसका सिर झुक गया था

 एक 60 वर्षीय महिला ने अचानक ही मंदिर जाना छोड़कर स्विमिंग सीखने जाना शुरू कर दिया!!


किसी ने कारण पूछा तो महिला ने बताया कि:

अक्सर मेरे बेटे और बहू का झगड़ा होता रहता है,,

और बहू हमेशा पूछती रहती है कि अगर तुम्हारी माँ और मैं दोनो पानी में डूब रहे हों तो तुम पहले किसे बचाओगे??


मैं अपने बेटे को किसी धर्मसंकट में नही डालना चाहती इसीलिये मैंने स्विमिंग सीख ली।।


कुछ दिनों बाद फिर से पति-पत्नी के बीच झगड़ा हुआ और पत्नी ने फिर वही बात पूछी कि अगर तुम्हारी माँ और मैं डूब रहे होंगे तो तुम किसे पहले बचाओगे??


पति ने जवाब दिया 

मुझे पानी में उतरने की जरूरत ही नही पड़ेगी क्योंकि मेरी माँ ने स्विमिंग सीख ली है, 

वो तुम्हे बचा लेगी।।


पत्नी ने हार नही मानी 

और बोली नही-नही तुम्हे पानी में कूदकर हम दोनों में से किसी एक को तो बचाना ही पड़ेगा।।


पति ने जवाब दिया 

फिर तो पक्का तुम ही डूबोगी 


क्योंकि मुझे तो तैरना आता नही 

और मेरी माँ हम दोनों में से 100% मुझे ही बचायेगी!!

 हंसना मना है


प्रोफेसर जावेद की बेगम ने

परिन्दों की दुकान पर... 

एक तोता पसन्द किया... और 

उसका मूल्य पूछा...

 

💁🏻‍♂️🦜 दकानदार ने कहा... मोहतरमा... कीमत तो इसकी अधिक नहीं है...!


लेकिन!! 

यह अब तक तवायफों के कोठे पर रहा है...💃🏻🦜 


इसलिए!!! 

मेरी राय है कि... 

आप इसे रहने ही दें...

कोई और तोता ले लें...


🤔🦜 परोफेसर साहब की बेगम को वह तोता कुछ ज़्यादा ही भा गया था... 


कहने लगीं... 

भाई...! 

इसे भी तो पता चले... 

कि शरीफों के घर कैसे होते हैं...?


उन्होंने उस तोते और पिंजरे की कीमत अदा की... 

और 

पिंजरे में बंद उस तोते को लेकर घर आ गईं...


🏡 बगम साहिबा ने घर आकर...

तोते वाले उस पिंजरे को... 

ड्राइंग रूम में... 

एक उचित जगह लटका दिया...


तोते ने इधर उधर आंखें घुमाईं...

और बोला... 


🦜"वाह नया कोठा...! 

ये कोठा तो उस कोठे से और भी अच्छा है...!!

वाह...! पसंद आया...!! बहुत सुंदर है...!!! 


बेगम को अच्छा तो नहीं लग...! लेकिन वो ख़ामोश रहीं...!! 🤨


थोड़ी देर में उनकी दोनों बेटियां कालेज से लौट कर घर आईं...


🙎🏻‍♀️🙍🏻‍♀️ 🦜उन्हें देख कर... 

तोता बोला...

ओहो...! 

नई लड़कियां आईं हैं...!!

😠

बेगम को गुस्सा तो बहुत आया...! लेकिन...!! 

वो अपने गुस्से को पी गईं...!!! 


सोचा कि... 

एक-दो दिन में...

अपने तोते को सुधार लेंगी...


शाम को...

प्रोफेसर साहब...

अपने समय पर घर लौटे...


 👨🏻‍🔬🦜जसे ही उन्होंने... 

ड्राईंग रूम में कदम रखा... 

तोता हैरत से चीख़ उठा... 


अरे वाह! 

जावेद!! 

तूँ!!!... 

यहाँ भी आता है...?


😡🤬……और फिर... 

चिराग़ों में रौशनी न रही... 🙈


इस हादसे के बाद से...!

जावेद साहब घर से लापता हैं...!!

Friday, May 27, 2022

,,,,,अनपढ माँ,,,,


एक मध्यम वर्गीय परिवार के 

एक लड़के ने 10वीं की परीक्षा में 

90% अंक प्राप्त किए ....

पिता ने जब मार्कशीट देखकर 

खुशी-खुशी अपनी पत्नी को कहा ....

"सुनो.... 

आज खीर या मीठा दलिया बना लो ,

स्कूल की परीक्षा मे हमारे लाड़ले को 

90% अंक मिले है ..


मां किचन से दौड़ती हुई आई और बोली....सच.....मुझे

भी दिखाइए......

मेरे बच्चे की कामयाबी की पर्ची....

ये सुनते ही बीच लड़का फटाक से बोला...

..."क्या पापा.... 

किसे रिजल्ट दिखा रहे है... 

क्या वह पढ़-लिख सकती है  ?

वह तो अनपढ़ है ..."


अश्रुपुर्ण आँखों को पल्लू से पोंछती हुई मां चुपचाप दलिया बनाने चली गई....


लेकिन ये बात पिता ने सुनी भी और देखी भी...

फिर उन्होंने लड़के के कहे हुए वाक्यों में जोड़ा और कहा... 

"हां बेटा सच कहा तुमने.... 

बिल्कुल सच... 

जानता है जब तू गर्भ में था, 

तो उसे दूध बिल्कुल पसंद नहीं था !

तेरी मां ने तुझे स्वस्थ बनाने के लिए 

हर दिन नौ महीने तक दूध पिया ...

क्योंकि तेरी मां तो अनपढ़ थी ना इसलिए ...

तुझे सुबह सात बजे स्कूल जाना होता था, इसलिए वह सुबह पांच बजे उठकर 

तुम्हारा मनपसंद नाश्ता और 

डिब्बा बनाती थी.....

जानता है क्यों ....

क्योंकि वो अनपढ़ थी ना इसलिए....


जब तुम रात को पढ़ते-पढ़ते सो जाते थे, 

तो वह आकर तुम्हारी कॉपी व किताब 

बस्ते में भरकर, 

फिर तुम्हारे शरीर पर ओढ़नी से ढँक देती थी और उसके बाद ही सोती थी...

जानते हो क्यों ...

क्योकि अनपढ़ थी ना इसलिए.. ...


बचपन में तुम ज्यादातर समय बीमार रहते थे... तब वो रात- रात भर जागकर 

सुबह जल्दी उठती थी और काम पर 

लग जाती थी....जानते हो क्यों ....

क्योंकि वो अनपढ़ थी ना इसलिए...

 

तुम्हें, ब्रांडेड कपड़े लाने के लिये 

मेरे पीछे पड़ती थी, 

और खुद सालों तक एक ही साड़ी में रही....

क्योंकि वो सचमुच अनपढ़ थी ना...


बेटा .... पढ़े-लिखे लोग 

पहले अपना स्वार्थ और मतलब देखते हैं.. लेकिन तेरी मां ने आज तक कभी नहीं देखा

क्योंकि अनपढ़ है ना वो इसलिए....


वो खाना बनाकर और हमें परोसकर, 

कभी-कभी खुद खाना भूल जाती थी... 

इसलिए मैं गर्व से कहता हूं कि 

तुम्हारी माँ अनपढ़ है..."


यह सब सुनकर लड़का रोते रोते, 

और लिपटकर अपनी मां से बोला.... 

"मां...मुझे तो कागज पर 90% अंक ही मिले हैं लेकिन आप मेरे जीवन को 

100% बनाने वाली पहली शिक्षक हैं!

 मां....मुझे आज 90% अंक मिले हैं, 

फिर भी मैं अशिक्षित हूँ 

और आपके पास पीएचडी के ऊपर की 

उच्च डिग्री है ,

क्योंकि आज मैंने अपनी मां के अंदर छुपे 

रूप में, डॉक्टर, शिक्षक, वकील, 

ड्रेस डिजाइनर, बेस्ट कुक, 

इन सभी के दर्शन कर लिए... 

मुझे माफ कर दो मां...

मुझे माफ कर दो....."


मां ने तुरंत अपने बेटे को उठाकर 

सीने से लगाते हुए कहा.... 

"पगले रोते नही है !

आज तो खुशी का दिन है !

चल हंस ....."

और उसने उसे चूम लिया,,


❤️दनिया की सभी माँ को समर्पित❤️ 

Wednesday, May 25, 2022

 शस्त्र रखने वालों से सदैव सावधान- चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति से सदैव सावधान रहना चाहिए शस्त्र रखता है. क्रोध में ऐसे व्यक्ति कभी शस्त्र का प्रयोग कर सकते हैं, जिस कारण कभी कभी आसपास मौजूद लोगों को भी परेशानी उठानी पड़ सकती है.


लंबे नाखूनों वाले से दूरी बनाकर रखें- चाणक्य नीति कहती है कि जिसके लंबे नाखून होते हैं, उससे सदैव उचित दूरी बनाकर रखनी चाहिए. क्योंकि ये हमला कर कभी भी हानि पहुंचा सकते हैं.


क्रोध- चाणक्य नीति कहती है कि क्रोध करने से व्यक्ति की प्रतिभा नष्ट होती है. व्यक्ति को क्रोध नहीं करना चाहिए. क्रोध में व्यक्ति अच्छे और बुरे का अंतर भूल जाता है.


अहंकार- चाणक्य नीति कहती है कि अहंकार व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु है, अहंकार करने वाले व्यक्ति को सम्मान नहीं मिलता है. करीबी लोग भी दूरी बना लेते हैं. 


लोभ- चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति को लोभ नहीं करना चाहिए. लोभ करने वाला व्यक्ति कभी संतुष्ठ नहीं होता है. जिस कारण उसका चित्त परेशान रहता है.


अनुशासन- चाणक्य नीति अनुशासन के महत्व को बताती है. सफलता प्राप्त करने के लिए सबसे पहले अनुशासन के महत्व को जानना चाहिए. अनुशासन की भावना व्यक्ति को समय अहमियत को भी बताती है.


आलस- चाणक्य नीति कहती है आलस का त्याग किए बिना जीवन में सफलता नहीं मिलती है, इससे दूर ही रहना चाहिए. आलस व्यक्ति की कुशलता का नाश करती है.


असत्य- चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने के लिए कभी भी झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए. असत्य बोलने वालों को कभी सम्मान नहीं मिलता है.


परिश्रम- चाणक्य नीति कहती है कि जो व्यक्ति सदैव परिश्रम करने के लिए तैयार रहता है, उसके लिए कोई भी लक्ष्य और सफलता दूर नहीं है.


धोखा- चाणक्य नीति कहती है कि कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए. धोखा देना सबसे बुरी आदतों में से एक है. ऐसे लोगों को आगे चलकर परेशानी का सामना करना पड़ता है.


⇣⇣ कितना_जरुरी_है_लक्ष्य_बनाना ⇣⇣👌

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एक बार एक आदमी सड़क पर सुबह सुबह दौड़ (Jogging) लगा रहा था, अचानक एक चौराहे पर जाकर वो रुक गया उस चौराहे पे चार सड़कें थीं जो अलग-अलग रास्ते पे जाती थीं। एक बूढ़े व्यक्ति से उस आदमी ने पूछा – सर ये रास्ता कहाँ जाता है ? तो बूढ़े व्यक्ति ने पूछा- आपको कहाँ जाना है? आदमी – पता नहीं,

 बूढ़ा व्यक्ति – तो कोई भी रास्ता चुन लो क्या फर्क पड़ता है । वो आदमी उसकी बात को सुनकर निःशब्द सा रह गया, कितनी सच्चाई छिपी थी उस बूढ़े व्यक्ति की बातों में। सही ही तो कहा जब हमारी कोई मंजिल ही नहीं है तो जीवन भर भटकते ही रहना है।


✶ जीवन में बिना लक्ष्य के काम करने वाले लोग हमेशा सफलता से दूर रह जाते हैं जबकि सच तो ये है कि इस तरह के लोग कभी सोचते ही नहीं कि उन्हें क्या करना है? हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में किये गए सर्वे की मानें तो जो छात्र अपना लक्ष्य बना कर चलते हैं वो बहुत जल्दी अपनी मंजिल को प्राप्त कर लेते हैं क्यूंकि उनकी उन्हें पता है कि उन्हें किस रास्ते पर जाना है।


✶ अगर सफलता एक पौधा है तो लक्ष्य ऑक्सीजन है, आज हम इस पोस्ट में बात करेंगे कि लक्ष्य कितना महत्वपूर्ण है? कितना जरुरी है लक्ष्य बनाना ?


1.➨  लक्ष्य एकाग्र बनाता है – अगर हमने अपने लक्ष्य का निर्धारण कर लिया है तो हमारा दिमाग दूसरी बातों में नहीं भटकेगा क्यूंकि हमें पता है कि हमें किस रास्ते पर जाना है? सोचिये अगर आपको धनुष बाण दे दिया जाये और आपको कोई लक्ष्य ना बताया जाये कि तीर कहाँ चलना है तो आप क्या करेंगे, कुछ नहीं तो बिना लक्ष्य के किया हुआ काम व्यर्थ ही रहता है। कभी देखा है की एक कांच का टुकड़ा धूप में किस तरह कागज को जला देता है वो एकाग्रता से ही सम्भव है।


2.➨  आपकी प्रगति का मापक है लक्ष्य- सोचिये की आपको एक 500 पेज की किताब लिखनी है, अब आप रोज कुछ पेज लिखते हैं तो आपको पता होता है कि मैं कितने पेज लिख चूका हूँ या कितने पेज लिखने बाकि हैं। इसी तरह लक्ष्य बनाकर आप अपनी प्रगति (Progress) को माप (measure) सकते हैं और आप जान पाएंगे कि आप अपनी मंजिल के कितने करीब पहुंच चुके हैं। बिना लक्ष्य के नाही आप ये जान पाएंगे कि आपने कितना progress किया है और नाही ये जान पाएंगे कि आप मंजिल से कितनी दूर हैं?


3.➨  लक्ष्य अविचलित रखेगा- लक्ष्य बनाने से हम मानसिक रूप से बंध से जाते हैं जिसकी वजह से हम फालतू की चीज़ों पर ध्यान नहीं देते और पूरा समय अपने काम को देते हैं। सोचिये आपका कोई मित्र विदेश से जा रहा हो और वो 9:00 PM पे आपसे मिलने आ रहा हो और आप 8 :30 PM पे अपने ऑफिस से निकले और अगर स्टेशन जाने में 25 -30 मिनट लगते हों तो आप जल्दी से स्टेशन की तरफ जायेंगे सोचिये क्या आप रास्ते में कहीं किसी काम के लिए रुकेंगे? नहीं, क्यूंकि आपको पता है कि मुझे अपनी मंजिल पे जाने में कितना समय लगेगा। तो लक्ष्य बनाने से आपकी सोच पूरी तरह निर्धारित हो जाएगी और आप भटकेंगे नहीं।


4.➨ लक्ष्य आपको प्रेरित करेगा – जब भी कोई व्यक्ति सफल होता हैं, अपनी मंजिल को पाता है तो एक लक्ष्य ही होता है जो उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। आपका लक्ष्य आपका सपना आपको उमंग और ऊर्जा से भरपूर रखता है।


︶︿︶ तो मित्रों बिना लक्ष्य के आप कितनी भी मेहनत कर लो सब व्यर्थ ही रहेगा जब आप अपनी पूरी energy किसी एक point एक लक्ष्य पर लगाओगे तो निश्चय ही सफलता आपके कदम .

Sunday, February 13, 2022

 *भगवान का साथ*



एक बुजुर्ग दरिया के किनारे पर जा रहे थे। एक जगह देखा कि दरिया की सतह से एक कछुआ निकला और पानी के किनारे पर आ गया। 


उसी किनारे से एक बड़े ही जहरीले बिच्छु ने दरिया के अन्दर छलांग लगाई और कछुए की पीठ पर सवार हो गया। कछुए ने तैरना शुरू कर दिया। वह बुजुर्ग बड़े हैरान हुए।


उन्होंने उस कछुए का पीछा करने की ठान ली। इसलिए दरिया में तैर कर उस कछुए का पीछा किया। 


वह कछुआ दरिया के दूसरे किनारे पर जाकर रूक गया। और बिच्छू उसकी पीठ से छलांग लगाकर दूसरे किनारे पर चढ़ गया और आगे चलना शुरू कर दिया। 


वह बुजुर्ग भी उसके पीछे चलते रहे। आगे जाकर देखा कि जिस तरफ बिच्छू जा रहा था उसके रास्ते में एक भगवान् का भक्त ध्यान साधना में आँखे बन्द कर भगवान् की भक्ति कर रहा था।


उस बुजुर्ग ने सोचा कि अगर यह बिच्छू उस भक्त को काटना चाहेगा तो मैं करीब पहुँचने से पहले ही उसे अपनी लाठी से मार डालूँगा। 


लेकिन वह कुछ कदम आगे बढे ही थे कि उन्होंने देखा दूसरी तरफ से एक काला जहरीला साँप तेजी से उस भक्त को डसने के लिए आगे बढ़ रहा था। इतने में बिच्छू भी वहाँ पहुँच गया।


उस बिच्छू ने उसी समय सांप डंक के ऊपर डंक मार दिया, जिसकी वजह से बिच्छू का जहर सांप के जिस्म में दाखिल हो गया और वह सांप वहीं अचेत हो कर गिर पड़ा था। इसके बाद वह बिच्छू अपने रास्ते पर वापस चला गया।


थोड़ी देर बाद जब वह भक्त उठा, तब उस बुजुर्ग ने उसे बताया कि भगवान् ने उसकी रक्षा के लिए कैसे उस कछुवे को दरिया के किनारे लाया, फिर कैसे उस बिच्छु को कछुए की पीठ पर बैठा कर साँप से तेरी रक्षा के लिए भेजा।


 वह भक्त उस अचेत पड़े सांप को देखकर हैरान रह गया। उसकी आँखों से आँसू निकल आए, और वह आँखें बन्द कर प्रभु को याद कर उनका धन्यवाद करने लगा,


 तभी ""प्रभु"" ने अपने उस भक्त से कहा, जब वो बुजुर्ग जो तुम्हे जानता तक नही, वो तुम्हारी जान बचाने के लिए लाठी उठा सकता है। और फिर तू तो मेरी भक्ति में लगा हुआ था तो फिर तुझे बचाने के लिये मेरी लाठी तो हमेशा से ही तैयार रहती है...!


 जय श्री राम

  स्वयं का करें मूल्यांकन


एक व्यक्तिने सन्तसे पूछा : जीवनका मूल्य क्या है ?

सन्तने उसे एक पत्थर दिया और कहा, “जाओ और इस पत्थरका मूल्य पता करके आओ; परन्तु ध्यान रखना, इसे विक्रय नहीं करना है । वह व्यक्ति उस पत्थरको फल विक्रय करनेवालेके पास लेकर गया और बोला, “इसका मूल्य क्या है ?”

फल बेचनेवाला व्यक्ति उस चमकते हुए पत्थरको देखकर बोला, “१२ सन्तरे ले जाओ और इसे मुझे दे दो ।”

आगे एक तरकारीवालेने उस चमकीले पत्थरको देखा और कहा, “एक बोरी आलू ले जाओ और इस पत्थरको मेरे पास छोड जाओ ।”


वह व्यक्ति आगे एक सोना बेचनेवालेके पास गया और उसे पत्थर दिखाया । सुनार उस चमकीले पत्थरको देखकर बोला, “मुझे ५० लाखमें बेच दो ।”

उसने मना कर दिया, तो सुनार बोला, “२ करोड रुपयोंमें दे दो या तुम स्वयं ही बता दो कि इसका मूल्य क्या है, जो तुम मांगोगे वह दूंगा ।”

उस व्यक्तिने सुनारसे कहा, “मेरे गुरुने इसे विक्रय करनेसे मना किया है ।”


आगे वह व्यक्ति हीरे बेचनेवाले एक जौहरीके पास गया और उसे वह पत्थर दिखाया । 

जौहरीने जब उस बहुमूल्य रत्नको देखा, तो पहले उसने रत्नके पास एक लाल वस्त्र बिछाया, तत्पश्चात उस बहुमूल्य रत्नकी परिक्रमा लगाई, माथा टेका ।

तब जौहरी बोला, “कहांसे लाया है ये बहुमूल्य रत्न ? सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, सम्पूर्ण विश्वको बेचकर भी इसका मूल्य नहीं लगाया जा सकता, ये तो अनमोल है ।“


वह व्यक्ति विस्मित होकर सीधे सन्तके पास आया । अपनी आपबीती बताई और बोला, “अब बताएं भगवान, मानवीय जीवनका मूल्य क्या है ?"

सन्त बोले, “सन्तरेवालेको दिखाया, उसने इसका मूल्य १२ सन्तरेके समान बताया । तरकारीवालेके पास गया, उसने इसका मूल्य एक बोरी आलू बताया । आगे सुनारने इसका मूल्य २ कोटि रुपये' बताया और जौहरीने इसे 'बहुमूल्य' बताया ।  


अब ऐसा ही मानवीय मूल्यका भी है । तू निस्सन्देह हीरा है; परन्तु, सामनेवाला तेरा मूल्य, अपने स्तर, अपने ज्ञान, अपने सामर्थ्यसे लगाएगा ।

घबराओ मत ! संसारमें तुम्हारा अभिज्ञान करनेवाले भी मिल जाएंगे ।”

 भगवान बुद्ध के प्रमुख उपदेश*


*♦️ 1. वर्तमान का ध्यान रखो*


मनुष्य को कभी भी अपने बीते हुए कल में नहीं उलझना चाहिए और ना ही भविष्य के स्वप्न बुनने चाहिए। मनुष्य को अपने वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए।


♦️ *2. क्रोध से मात्र हानि है*


क्रोध से किसी और का नहीं, बल्कि स्वयं मनुष्य की ही हानि होती है। क्रोधित होने का अर्थ है कि जलता हुआ कोयला हाथ में लेकर किसी और पर फेंकना, जो सबसे पहले स्वयं आपको ही जलाएगा।


♦️ *3. हजार विजय से पूर्व स्वयं पर विजय है आवश्यक*


मनुष्य को किसी भी युद्ध में विजय प्राप्त करने से पूर्व स्वयं पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। जब तक मनुष्य ऐसा नहीं करता है, तब तक सारी विजय व्यर्थ ही मानी जाएंगी।


♦️ *4. सुखद संघर्ष है मूलमंत्र*


किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने वाली यात्रा बहुत आवश्यक होती है। मनुष्य को अपना लक्ष्य मिले या न मिले, लेकिन लक्ष्य प्राप्ति के लिए की जाने वाली यात्रा अच्छी होना चाहिए। इसका अनुभव जीवन भर हमारे साथ रहता है।


♦️ *5. बांटने से कम नहीं होती प्रसन्नता*


प्रसन्नता उस रोशनी के समान है, जिसे आप जितना दूसरों को देंगे, वो उतना ही और बढ़ेगी। जैसे कि एक जलता हुआ दीप, हजार दीप जलाकर रोशनी फैला सकता है, लेकिन इससे उसकी रोशनी पर कोई प्रभाव नहीं होगा, वैसे ही प्रसन्नता बांटने से बढ़ती हैं।

  

*🙏🏼बुद्ध पूर्णिमा की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!*

 साधना क्या है..🤔


पत्थर पर यदि बहुत पानी एकदम से डाल दिया जाए तो पत्थर केवल भीगेगा।


फिर पानी बह जाएगा और पत्थर सूख जाएगा। 


किन्तु वह पानी यदि बूंद-बूंद पत्थर पर एक ही जगह पर गिरता रहेगा, तो पत्थर में छेद होगा और कुछ दिनों बाद पत्थर टूट भी जाएगा।


इसी प्रकार निश्चित स्थान पर नाम स्मरण की साधना की जाएगी तो उसका परिणाम अधिक होता है ।


चक्की में दो पाटे होते हैं। 


उनमें यदि एक स्थिर रहकर, दूसरा घूमता रहे तो अनाज पिस जाता है और आटा बाहर आ जाता है। 


यदि दोनों पाटे एक साथ घूमते रहेंगे तो अनाज नहीं पिसेगा और परिश्रम व्यर्थ होगा।


इसी प्रकार मनुष्य में भी दो पाटे हैं - 


एक मन और दूसरा शरीर। 


उसमें मन स्थिर पाटा है और शरीर घूमने वाला पाटा है। 


अपने मन को भगवान के प्रति स्थिर किया जाए और शरीर से गृहस्थी के कार्य किए जाएं। 


प्रारब्ध रूपी खूँटा शरीर रूपी पाटे में बैठकर उसे घूमाता है और घूमाता रहेगा, 


लेकिन मन रूपी पाटे को सिर्फ भगवान के प्रति स्थिर रखना है। 


देह को तो प्रारब्ध पर छोड़ दिया जाए और मन को नाम-सुमिरन में विलीन कर दिया जाए - 


यही नाम साधना है।

 ज्ञान वाणी ।। 


प्रेरक प्रसंग


!! सोच बदलो, जिंदगी बदल जायेगी !!

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एक गाँव में सूखा पड़ने की वजह से गाँव के सभी लोग बहुत परेशान थे, उनकी फसलें खराब हो रही थी, बच्चे भूखे-प्यासे मर रहे थे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था की इस समस्या का समाधान कैसे निकाला जाय। उसी गाँव में एक विद्वान महात्मा रहते थे। गाँव वालो ने निर्णय लिया उनके पास जाकर इस समस्या का समाधान माँगने के लिये, सब लोग महात्मा के पास गये और उन्हें अपनी सारी परेशानी विस्तार से बतायी, महात्मा ने कहा कि आप सब मुझे एक हफ्ते का समय दीजिये मैं आपको कुछ समाधान ढूँढ कर बताता हूँ।


गाँव वालों ने कहा ठीक है और महात्मा के पास से चले गये। एक हफ्ते बीत गये लेकिन साधु महात्मा कोई भी हल ढूँढ न सके और उन्होंने गाँव वालों से कहा कि अब तो आप सबकी मदद केवल ऊपर बैठा वो भगवान ही कर सकता है। अब सब भगवान की पूजा करने लगे भगवान को खुश करने के लिये, और भगवान ने उन सबकी सुन ली और उन्होंने गाँव में अपना एक दूत भेजा। गाँव में पहुँचकर दूत ने सभी गाँव वालो से कहा कि “आज रात को अगर तुम सब एक-एक लोटा दूध गाँव के पास वाले उस कुएं में बिना देखे डालोगे तो कल से तुम्हारे गाँव में घनघोर बारिश होगी और तुम्हारी सारी परेशानी दूर हो जायेगी।” इतना कहकर वो दूत वहां से चला गया।


गाँव वाले बहुत खुश हुए और सब लोग उस कुएं में दूध डालने के लिये तैयार हो गये लेकिन उसी गाँव में एक कंजूस इंसान रहता था उसने सोचा कि सब लोग तो दूध डालेगें ही अगर मैं दूध की जगह एक लोटा पानी डाल देता हूँ तो किसको पता चलने वाला है। रात को अंधेरे में कुएं में दूध डालने के बाद सारे गाँव वाले सुबह उठकर बारिश के होने का इंतेजार करने लगे लेकिन मौसम वैसा का वैसा ही दिख रहा था और बारिश के होने की थोड़ी भी संभावना नहीं दिख रही थी। 


देर तक बारिश का इंतजार करने के बाद सब लोग उस कुएं के पास गये और जब उस कुएं में देखा तो कुआं पानी से भरा हुआ था और उस कुएं में दूध की एक बूंद भी नहीं थी। सब लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे और समझ गये कि बारिश अभी तक क्यों नहीं हुई। और वो इसलिये क्योंकि उस कंजूस व्यक्ति की तरह सारे गाँव वालों ने भी यही सोचा था कि सब लोग तो दूध डालेगें ही, मेरे एक लोटा पानी डाल देने से क्या फर्क पड़ने वाला है। और इसी चक्कर में किसी ने भी कुवे में दूध का एक बूँद भी नहीं डाला और कुवे को पानी से भर दिया।


संदेश - हो सकता है यह कथा संपूर्ण काल्पनिक हो परंतु इसी तरह की गलती आज कल हम अपने वास्तविक जीवन में भी करते रहते हैं, हम सब सोचते है कि हमारे एक के कुछ करने से क्या होने वाला है लेकिन हम ये भूल जाते है कि “बूंद-बूंद से सागर बनता है।“


अगर आप अपने देश, समाज, घर में कुछ बदलाव लाना चाहते हैं, कुछ बेहतर करना चाहते हैं तो खुद को बदलिये और बेहतर बनाईये बाकी सब अपने आप हो जायेगा जायेगा।

 ज्ञान वाणी। 


एक बार किसी रेलवे प्लैटफॉर्म पर जब गाड़ी रुकी तो एक लड़का पानी बेचता हुआ निकला। ट्रेन में बैठे एक सेठ ने उसे आवाज दी,ऐ लड़के इधर आ।


लड़का दौड़कर आया।


उसने पानी का गिलास भरकर सेठ की ओर बढ़ाया तो सेठ ने पूछा, कितने पैसे में? 


लड़के ने कहा - पच्चीस पैसे।


सेठ ने उससे कहा कि पंदह पैसे में देगा क्या?


यह सुनकर लड़का हल्की मुस्कान दबाए पानी वापस घड़े में उड़ेलता हुआ आगे बढ़ गया।


उसी डिब्बे में एक महात्मा बैठे थे, जिन्होंने यह नजारा देखा था कि लड़का मुस्करा कर मौन रहा।


जरूर कोई रहस्य उसके मन में होगा।

महात्मा नीचे उतरकर उस लड़के के पीछे- पीछे गए।


बोले : ऐ लड़के ठहर जरा, यह तो बता तू हंसा क्यों?


वह लड़का बोला, 


महाराज, मुझे हंसी इसलिए आई कि सेठजी को प्यास तो लगी ही नहीं थी। वे तो केवल पानी के गिलास का रेट पूछ रहे थे। 


महात्मा ने पूछा -


लड़के, तुझे ऐसा क्यों लगा कि सेठजी को प्यास लगी ही नहीं थी।


लड़के ने जवाब दिया -


महाराज, जिसे वाकई प्यास लगी हो वह कभी रेट नहीं पूछता। 


वह तो गिलास लेकर पहले पानी पीता है। फिर बाद में पूछेगा कि कितने पैसे देने हैं? 


पहले कीमत पूछने का अर्थ हुआ कि प्यास लगी ही नहीं है।


ठीक इसी प्रकार जिन्हें ईश्वर और जीवन में कुछ पाने की तमन्ना होती है, वे वाद-विवाद में नहीं पड़ते। पर जिनकी प्यास सच्ची नहीं होती,वे ही वाद-विवाद में पड़े रहते हैं। वे साधना के पथ पर आगे नहीं बढ़ते।


अगर भगवान नहीं है तो उसका ज़िक्र क्यो??


और अगर भगवान है तो फिर फिक्र क्यों ???


" मंज़िलों से गुमराह भी ,कर देते हैं कुछ लोग ।।

हर किसी से रास्ता पूछना अच्छा नहीं होता..


अगर कोई पूछे जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया ...


तो बेशक कहना...


जो कुछ खोया वो मेरी नादानी थी

और जो भी पाया वो प्रभु/गुरु की मेहरबानी थी!  


जन्म अपने हाथ में नहीं ;

मरना अपने हाथ में नहीं ;

पर जीवन को अपने तरीके से जीना अपने हाथ में होता है ; मस्ती करो मुस्कुराते रहो ;

सबके दिलों में जगह बनाते रहो ।I

जीवन का 'आरंभ' अपने रोने से होता हैं और जीवन का 'अंत' दूसरों के रोने से, इस "आरंभ और अंत" के बीच का समय भरपूर हास्य भरा हो। बस यही सच्चा जीवन है..


संदेश -निस्वार्थ भाव से कर्म करें और फल ईश्वर पर छोड़ दें।

 

आत्मा जब शरीर छोड़ कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चल कर साथ नहीं देता, जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।


एक व्यक्ति था। उसके तीन मित्र थे। एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था। दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता। तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब-तब मिलता था।

एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि उस व्यक्ति को अदालत में जाना था किसी कार्यवश और किसी को गवाह बनाकर।


अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला :- "मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?


वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।


उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था। आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इनकार कर दिया।


अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है। फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।


दूसरे मित्र ने कहा - मेरी एक शर्त है कि में सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊंगा , अंदर तक नहीं | वह बोला - बाहर के लिए तो मैं ही बहुत हूं मुझे तो अंदर के लिए गवाह चाहिए |


 फिर वह थक हार कर अपने तीसरा मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था , और अपनी समस्या सुनाई |


 तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरंत उसके साथ चल दिया | अब आप सोच रहे होंगे कि वह तीन मित्र कौन है...? 



        कथा का सार:—

 जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते हैं | सबसे पहला मित्र है हमारा अपना " शरीर " हम जहां भी जायेगे , शरीर रूपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है | एक पल एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता |


 दूसरों मित्र है शरीर के " संबंधी " जैसे : माता-पिता , भाई-बहन , चाचा चाची इत्यादि जिनके साथ रहते हैं , जो सुबह - दोपहर - शाम मिलते हैं |

 

 और तीसरा मित्र है :- हमारे " कर्म " जो सदा ही साथ जाते हैं |


 अब आप सोचिये की आत्मा ज़ब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है , उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चल कर साथ नहीं देता , जैसे की उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया |


दूसरा मित्र - संबंधी श्मशान घाट तक यानि अदालत के दरवाजे तक राम नाम सत्य है कहते हुए जाते है | तथा वहा से फिर वापस लोट जाते है |


और तीसरा मित्र आपके कर्म है | कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे | अगर हमारे कर्म हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा | 


अगर हमअच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत मे जाने की जरूरत नहीं होंगी | धर्मराज भी हमारे लिये स्वर्ग के दरवाजे खोल देंगे |               


सदा जपते रहिए

हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

 


भला आदमी


एक बार एक धनी पुरुष ने एक मंदिर बनवाया | मंदिर में भगवान की पूजा करने के लिए एक पुजारी | मंदिर के खर्च के लिए बहुत सी भूमि, खेत और बगीचे मंदिर के नाम लगाएं | उन्होंने ऐसा प्रबंध किया था कि जो मंदिरों में भूखे, दीन दुखी या साधु-संतों आवे, वे वहां दो-चार दिन ठहर सके और उनको भोजन के लिए भगवान का प्रसाद मंदिर से मिल जाया करे | अब उन्हें एक ऐसे मनुष्य की आवश्यकता हुई जो मंदिर की संपत्ति का प्रबंध करें और मंदिर के सब कामों को ठीक-ठीक चलाता रहे !


बहुत से लोग उस धनी पुरुष के पास आए | वे लोग जानते थे कि यदि मंदिर की व्यवस्था का काम मिल जाए तो वेतन अच्छा मिलेगा | लेकिन उस धनी पुरुष ने सबको लौटा दिया | वह सब से कहता था – ‘ मुझे एक भला आदमी चाहिए, मैं उसको अपने आप छाट लूंगा |’


बहुत से लोग मन ही मन में उस धनी पुरुष को गालियां देते थे | बहुत लोग उसे मूर्ख या पागल बतलाते थे | लेकिन वह धनी पुरुष किसी की बात पर ध्यान नहीं देता था | जब मंदिर के पट खुलते थे और लोग भगवान के दर्शन के लिए आने लगते थे तब वह धनी पुरुष अपने मकान की छत पर बैठकर मंदिर में आने वाले लोगों को चुपचाप देखता रहता था |


एक दिन में एक मनुष्य मंदिर में दर्शन करने आया | उसके कपड़े मैले और फटे हुए थे वह बहुत पढ़ा लिखा भी नहीं जान पड़ता था | जब वह भगवान का दर्शन करके जाने लगा तब धनीपुर उसने अपने पास बुलाया और कहा – ‘ क्या आप इस मंदिर की व्यवस्था संभालने का काम करेंगे ?’

वह मनुष्य बड़े आश्चर्य में पड़ गया | उसने कहा – ‘मैं तो बहुत पढ़ा लिखा नहीं हूं मैं इतने बड़े मंदिर का प्रबंध कैसे कर सकूंगा ?’


धनी पुरुष ने कहा – ‘मुझे बहुत विद्वान नहीं चाहिए मैं तो एक भले आदमी को मंदिर का प्रबंधक बनाना चाहता हूं |’


उस मनुष्य ने कहा – ‘आपने इतने मनुष्य में मुझे ही क्यों भला आदमी माना |’


धनी पुरुष बोला – ‘मैं जानता हूं कि आप भले आदमी हैं | मंदिर के रास्ते में एक ईंट का टुकड़ा गड़ा रह गया था और उसका एक कौना ऊपर निकला था मैं उधर से बहुत दिनों से देख रहा था कि उस मंदिर के टुकड़े की नोक से लोगों को ठोकर लगती थी लोग गिरते थे लुढ़कते थे और उठ कर चलते थे | आपको उस टुकड़े से ठोकर नहीं लगी किंतु आपने उसे देख कर ही उखाड़ देने का यतन किया मैं देख रहा था कि आप मेरे मजदूर से फावड़ा मांगकर ले गए और उस टुकड़े को खोदकर आपने वहां की भूमि भी बराबर कर दी |’


उस मनुष्य ने कहा – “यह तो कोई बात नहीं है रास्ते में पड़े कांटे, कंकड़ और पत्थर लगने योग्य पत्थर, ईटों को हटा देना तो प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है |’


धनी पुरुष ने कहा – ‘अपने कर्तव्यों को जानने और पालन करने वाले लोग ही भले आदमी होते हैं |’


वह मनुष्य मंदिर का प्रबंधक बन गया उसने मंदिर का बड़ा सुंदर प्रबंध किया |


"मित्रों:- इस कहानी का सार अथवा यही है कि –“हर मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए |”

 1950 के दशक में हावर्ड यूनिवर्सिटी के विख्यात साइंटिस्ट कर्ट ने चूहों पर एक अजीबोगरीब शोध किया था


कर्ट ने एक जार को पानी से भर दिया और उसमें एक चूहे को फेंक दिया


पानी से भरे जार में गिरते ही चूहा हड़बड़ाने लगा


जार से बाहर निकलने के लिये ज़ोर लगाने लगा


चंद मिनट फड़फड़ाने के पश्चात चूहे ने हथियार डाल दिये और वह उस जार में डूब गया


कर्ट ने उस समय अपने शोध में थोड़ा सा बदलाव किया


उन्होंने एक चूहे को पानी से भरे जार में डाला, चूहा जार से बाहर आने के लिये ज़ोर लगाने लगा, जिस समय चूहे ने ज़ोर लगाना बन्द कर दिया और वह डूबने को था उसी समय कर्ड ने उस चूहे को मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया


कर्ट ने चूहे को ठीक उसी क्षण जार से बाहर निकाल लिया जब वह डूबने की कगार पर था, चूहे को बाहर निकाल कर कर्ट ने उसे सहलाया


कुछ समय तक उसे जार से दूर रखा और फिर एक दम से उसे पुनः जार में फेंक दिया


पानी से भरे जार में दोबारा फेंके गये चूहे ने फिर जार से बाहर निकलने की जद्दोजेहद शुरू कर दी लेकिन पानी में पुनः फेंके जाने के पश्चात उस चूहे में कुछ ऐसे बदलाव देखने को मिले जिन्हें देख कर स्वयं कर्ट भी हैरान रह गये


कर्ट सोच रहे थे के चूहा बमुश्किल 15 - 20 मिनट संघर्ष करेगा और फिर उसकी शारीरिक क्षमता जवाब दे देगी और वह जार में डूब जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ


चूहा जार में तैरता रहा, जीवन बचाने के लिये सँघर्ष करता रहा


60 घँटे, जी हाँ 60 घँटे तक चूहा पानी के जार में अपने जीवन को बचाने के लिये सँघर्ष करता रहा


कर्ट यह देख कर आश्चर्यचकित रह गये


जो चूहा 15 मिनट में परिस्थितियों के समक्ष हथियार डाल चुका था वही चूहा 60 घँटे से परिस्थितियों से जूझ रहा था और हार मानने को तैयार नहीं था


कर्ट ने अपने इस शोध को एक नाम दिया और वह नाम था "The HOPE Experiment"


Hope यानि आशा


कर्ट ने शोध का निष्कर्ष बताते हुये कहा के जब चूहे को पहली बार जार में फेंका गया वह डूबने की कगार पर पहुंच गया


उसी समय उसे मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया गया, उसे नवजीवन प्रदान किया गया


उस समय चूहे के मन मस्तिष्क में "आशा" का संचार हो गया, उसे महसूस हुआ के एक हाथ है जो विकटतम परिस्थिति से उसे निकाल सकता है


जब पुनः उसे जार में फेंका गया तो चूहा 60 घँटे तक सँघर्ष करता रहा, वजह था वह हाथ, वजह थी वह आशा, वजह थी वह उम्मीद


इस परीक्षा की घड़ी में उम्मीद बनाये रखिये


सँघर्षरत रहिये, सांसे टूटने मत दीजिये, मन को हारने मत दीजिये


जिसने हाथ ने हमें इस जार में फेंका है वो ही हाथ हमें इससे बाहर भी निकाल लेगा


उस हाथ पर विश्वास रखिये

Monday, April 26, 2021

 *!!   सुंदर  हाथ   !!*

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बहुत समय पहले की बात है कुछ महिलाएं एक नदी के तट पर बैठी थी। वे सभी धनवान होने के साथ-साथ अत्यंत सुंदर भी थी। वे नदी के शीतल एवं स्वच्छ जल में अपने हाथ - पैर धो रही थी तथा पानी में अपनी परछाई देख-देख कर अपने सौंदर्य पर स्वयं ही मुग्ध हो रही थी। तभी उनमें से एक ने अपने हाथों की प्रशंसा करते हुए कहा, देखो, मेरे हाथ कितने सुंदर हैं। लेकिन दूसरी महिला ने दावा किया कि उसके हाथ ज्यादा खूबसूरत हैं, तीसरी महिला ने भी यही दावा दोहराया। उनमें इस पर बहस छिड़ गई तभी एक बुजुर्ग लाठी टेकती हुई वहाँ से निकली उसके कपड़े मैले- कुचैले थे। वह देखने से ही अत्यंत निर्धन लग रही थी उन महिलाओं ने उसे देखते ही कहा, “व्यर्थ की तकरार छोड़ो, इस बुढ़िया से पूछते हैं कि हममें से किसके हाथ सबसे अधिक सुँदर है।" उन्होंने बुजुर्ग महिला को पुकारा, “ए बुढ़िया, जरा इधर आकर ये तो बता कि हममें से किसके हाथ सबसे अधिक सुँदर है। बुजुर्ग महिला किसी तरह लाठी टेकती हुई उनके पास पहुंची और बोली - "मैं बहुत भूखी-प्यासी हूँ, पहले मुझे कुछ खाने को दो, चैन पड़ने पर ही कुछ बता पाऊँगी।" 

वे सब महिलाएं हँस पड़ी और एक स्वर में बोलीं, "चल भाग, हमारे पास कोई खाना- वाना नहीं है। ये भला हमारी सुँदरता को क्या पहचानेगी।"


वहीं थोड़ी ही दूरी पर एक मजदूर महिला बैठी थी। वह देखने में सामान्य लेकिन मेहनती और विनम्र थी। उसने बुजुर्ग को अपने पास बुलाकर प्रेम से बैठाया और अपनी पोटली खोलकर अपने खाने में से आधा खाना उसे दे दिया। फिर नदी से लाकर ठंडा पानी पिलाया, उस महिला ने उसके हाथ-पैर धोए और अपनी फटी धोती से पौंछकर साफ कर दिए। इससे बुजुर्ग महिला को बड़ा आराम मिला। जाते समय वह बुजुर्ग महिला उन सुँदर महिलाओं के पास जाकर बोली, "सुँदर हाथ उन्हीं के होते हैं, जो अच्छे कर्म करें तथा जरूरतमंदों की सेवा करें। अच्छे कार्यों से ही हाथों का सौंदर्य बढ़ता है, मात्र शरीर व आभूषणों से नहीं...।।"


  !! *देखने का नजरिया* !!
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एक दिन एक अमीर व्यक्ति अपने बेटे को एक गाँव की यात्रा पर ले गया | वह अपने बेटे को यह बताना चाहता था वे कितने अमीर और भाग्यशाली है जबकि गाँवों के लोग कितने गरीब है | उन्होंने कुछ दिन एक गरीब के खेत पर बिताए और फिर अपने घर वापस लौट गए | घर लौटते वक्त रास्ते में उस अमीर व्यक्ति ने अपने बेटे को पूछा – “तुमने देखा लोग कितने गरीब है और वे कैसा जीवन जीते है?? बेटे ने कहा – “हां मैंने देखा। “हमारे पास एक कुता है और उनके पास चार है”।
“हमारे पास एक छोटा सा स्वीमिंग पूल है और उनके पास एक पूरी नदी है” “हमारे पास रात को जलाने के लिए विदेशों से मंगाई हुई कुछ महँगी लालटेन है और उनके पास रात को चमकने वाले अरबों तारें है” “हम अपना खाना बाज़ार से खरीदते है जबकि वे अपना खाना खुद अपने खेत में उगाते है। हमारा एक छोटा सा परिवार है जिसमें पांच लोग है, जबकि उनका पूरा गाँव, उनका परिवार है।
“हमारे पास खुली हवा में घूमने के लिए एक छोटा सा गार्डन है और उनके पास पूरी धरती है जो कभी समाप्त नहीं होती” “हमारी रक्षा करने के लिए हमारे घर के चारों तरफ बड़ी बड़ी दीवारें है और उनकी रक्षा करने के लिए उनके पास अच्छे-अच्छे दोस्त है” अपने बेटे की बाते सुनकर अमीर व्यक्ति कुछ बोल नहीं पा रहा था | बेटे ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा – “धन्यवाद पिताजी, मुझे यह बताने के लिए की हम कितने गरीब है।
*शिक्षा*:-
उपर्युक्त कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि व्यक्ति जैसा सोचता हैं, उसे सब कुछ वैसा ही नजर आता हैं। सब अपने देखने के नजरिये पर ही निर्भर करता हैं।

 *आज का प्रेरक प्रसंग👇👇👇*


             *!! दान का महत्व !!*

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एक बहुत प्रसिद्ध संत थे जिन्होंने समाज कल्याण के लिए एक मिशन शुरू किया। जिसे आगे बढ़ाने के लिए उन्हें तन मन धन तीनों की ही आवश्यक्ता थी। इस कार्य में उनके शिष्यों ने तन मन से भाग लिया और इन कार्यकर्ताओं ने धन के लिए दानियों को खोजना शुरू किया।

एक दिन, एक शिष्य कलकत्ता पहुँचा। जहाँ उसने एक दानवीर सेठ का नाम सुना। यह जान कर उस शिष्य ने सोचा कि इन्हें गुरूजी से मिलवाना उचित होगा, हो सकता है यह हमारे समाज कल्याण के कार्य में दान दे।

इस कारण शिष्य सेठ जी को गुरु जी से मिलवाने ले गए। गुरूजी से मिल कर सेठ जी ने कहा – हे महंत जी आपके इस समाज कल्याण में, मैं अपना योगदान देना चाहता हूँ पर मेरी एक मंशा है जो आपको स्वीकार करनी होगी। आपके इस कार्य के लिए मैं भवन निर्माण करवाना चाहता हूँ और प्रत्येक कमरे के आगे मैं अपने परिजनों का नाम लिखवाना चाहता हूँ । इस हेतु मैं दान की राशि एवं नामों की सूचि संग लाया हूँ और यह कह कर सेठ जी दान गुरु जी के सामने रखते हैं।


गुरु जी थोड़े तीखे स्वर में दान वापस लौटा देते हैं और अपने शिष्य को डाटते हुए कहते हैं कि- हे अज्ञानी! तुम किसे साथ ले आये हो, ये तो अपनों के नाम का कब्रिस्तान बनाना चाहते हैं। इन्हें तो दान और मेरे मिशन दोनों का ही महत्व समझ नहीं आया।

यह देख सेठ जी हैरान थे क्यूंकि उन्हें इस तरह से दान लौटा देने वाले संत नहीं मिले थे। इस घटना से सेठ जी को दान का महत्व समझ आया। कुछ दिनों बाद आश्रम आकार उन्होंने श्रध्दा पूर्वक विनय किया और निस्वार्थ भाव दान किया तब उन्हें जो आतंरिक सुख प्राप्त हुआ वो कभी पहले किसी भी दान से नहीं हुआ था।


*सीख/शिक्षा:-*

दान का स्वरूप दिखावा नहीं होता। जब तक निःस्वार्थ भाव से दान नहीं दिया जाता तब तक वह स्वीकार्य नहीं होता और दानी को आत्म शांति अनुभव नहीं होती। किसी की मदद करके भूल जाना ही दानी की पहचान है जो इस कार्य को उपकार मानता है, असल में वो दानी नहीं हैं ना उसे दान का अर्थ पता हैं।
   !! *गुलामी की सीख* !!
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दास प्रथा के दिनों में एक मालिक के पास अनेकों गुलाम हुआ करते थे। उन्हीं में से एक था लुक़मान। लुक़मान था तो सिर्फ एक गुलाम लेकिन वह बड़ा ही चतुर और बुद्धिमान था। उसकी ख्याति दूर दराज़ के इलाकों में फैलने लगी थी। एक दिन इस बात की खबर उसके मालिक को लगी, मालिक ने लुक़मान को बुलाया और कहा- सुनते हैं, कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की परीक्षा लेना चाहता हूँ। 
अगर तुम इम्तिहान में पास हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी। अच्छा जाओ, एक मरे हुए बकरे को काटो और उसका जो हिस्सा बढ़िया हो, उसे ले आओ। लुक़मान ने आदेश का पालन किया और मरे हुए बकरे की जीभ लाकर मालिक के सामने रख दी। कारण पूछने पर कि जीभ ही क्यों लाया ! लुक़मान ने कहा- अगर शरीर में जीभ अच्छी हो तो सब कुछ अच्छा-ही-अच्छा होता है। मालिक ने आदेश देते हुए कहा- “अच्छा! इसे उठा ले जाओ और अब बकरे का जो हिस्सा बुरा हो उसे ले आओ।”
लुक़मान बाहर गया, लेकिन थोड़ी ही देर में उसने उसी जीभ को लाकर मालिक के सामने फिर रख दिया। फिर से कारण पूछने पर लुक़मान ने कहा- “अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं तो सब बुरा-ही-बुरा है। “उसने आगे कहते हुए कहा- “मालिक! वाणी तो सभी के पास जन्मजात होती है, परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है…क्या बोलें? कैसे शब्द बोलें, कब बोलें। इस एक कला को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है और दूसरी बात से झगड़ा होता है। 
कड़वी बातों ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किये हैं। इस जीभ ने ही दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाये हैं। जीभ तीन इंच का वो हथियार है जिससे कोई छः फिट के आदमी को भी मार सकता है तो कोई मरते हुए इंसान में भी प्राण फूंक सकता है । संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को ही मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और दुरूपयोग से स्वर्ग भी नरक में परिणत हो सकता है। 
भारत के विनाशकारी महाभारत का युद्ध वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम था। “मालिक, लुक़मान की बुद्धिमानी और चतुराई भरी बातों को सुनकर बहुत खुश हुए ; आज उनके गुलाम ने उन्हें एक बहुत बड़ी सीख दी थी और उन्होंने उसे आजाद कर दिया।

*शिक्षा*:-
मित्रों, मधुर वाणी एक वरदान है जो हमें लोकप्रिय बनाती है वहीँ कर्कश या तीखी बोली हमें अपयश दिलाती है और हमारी प्रतिष्ठा को कम करती है। आपकी वाणी कैसी है ? यदि वो तीखी है या सामान्य भी है तो उसे मीठा बनाने का प्रयास करिये। आपकी वाणी आपके व्यत्कित्व का प्रतिबिम्ब है, उसे अच्छा होना ही चाहिए।

 *!! सुंदरता !!*

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एक कौआ सोचने लगा कि पंछियों में मैं सबसे ज्यादा कुरूप हूँ। न तो मेरी आवाज ही अच्छी है, न ही मेरे पंख सुंदर हैं। मैं काला-कलूटा हूँ। ऐसा सोचने से उसके अंदर हीनभावना भरने लगी और वह दुखी रहने लगा। एक दिन एक बगुले ने उसे उदास देखा तो उसकी उदासी का कारण पूछा। कौवे ने कहा – तुम कितने सुंदर हो, गोरे-चिट्टे हो, मैं तो बिल्कुल स्याह वर्ण का हूँ। मेरा तो जीना ही बेकार है। बगुला बोला – दोस्त मैं कहाँ सुंदर हूँ। मैं जब तोते को देखता हूँ, तो यही सोचता हूँ कि मेरे पास हरे पंख और लाल चोंच क्यों नहीं है। अब कौए में सुन्दरता को जानने की उत्सुकता बढ़ी। 


वह तोते के पास गया। बोला – तुम इतने सुन्दर हो, तुम तो बहुत खुश होते होगे ? तोता बोला- खुश तो था लेकिन जब मैंने मोर को देखा, तब से बहुत दुखी हूँ, क्योंकि वह बहुत सुन्दर होता है। कौआ मोर को ढूंढने लगा, लेकिन जंगल में कहीं मोर नहीं मिला। जंगल के पक्षियों ने बताया कि सारे मोर चिड़ियाघर वाले पकड़ कर ले गये हैं। कौआ चिड़ियाघर गया, वहाँ एक पिंजरे में बंद मोर से जब उसकी सुंदरता की बात की, तो मोर रोने लगा। और बोला – शुक्र मनाओ कि तुम सुंदर नहीं हो, तभी आजादी से घूम रहे हो वरना मेरी तरह किसी पिंजरे में बंद होते।



शिक्षा :-

दूसरों से तूलना करके दुखी होना बुद्धिमानी नहीं है। असली सुन्दरता हमारे अच्छे कार्यों से आती है।

        *🌼 माता-पिता की सुंदरता 🌼*

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एक बार गणेशजी ने भगवान शिवजी से कहा,

पिताजी ! आप यह चिताभस्म लगाकर, मुण्डमाला धारणकर अच्छे नहीं लगते, मेरी माता गौरी अपूर्व सुंदरी और आप उनके साथ इस भयंकर रूप में !

पिताजी आप एक बार कृपा करके अपने सुंदर रूप में माता के सम्मुख आएं, जिससे हम आपका असली स्वरूप देख सकें !


भगवान शिवजी ने गणेशजी की बात मान ली !

कुछ समय बाद जब शिवजी स्नान करके लौटे तो उनके शरीर पर भस्म नहीं थी , बिखरी जटाएं सँवरी हुई, मुण्डमाला उतरी हुई थी !


सभी देवता, यक्ष, गंधर्व, शिवगण उन्हें अपलक देखते रह गये, वो ऐसा रूप था कि मोहिनी अवतार रूप भी फीका पड़ जाये !

भगवान शिव ने अपना यह रूप कभी प्रकट नहीं किया था ! शिवजी का ऐसा अतुलनीय रूप कि करोड़ों कामदेव को भी मलिन कर रहा था !


गणेशजी अपने पिता की इस मनमोहक छवि को देखकर स्तब्ध रह गए और मस्तक झुकाकर बोले -

मुझे क्षमा करें पिताजी, परन्तु अब आप अपने पूर्व स्वरूप को धारण कर लीजिए !


भगवान शिव ने पूछा - क्यों पुत्र अभी तो तुमने ही मुझे इस रूप में देखने की इच्छा प्रकट की थी, अब पुनः पूर्व स्वरूप में आने की बात क्यों ?

गणेशजी ने मस्तक झुकाये हुए ही कहा - क्षमा करें पिताश्री मेरी माता से सुंदर कोई और दिखे मैं ऐसा कदापि नहीं चाहता !

और शिवजी मुस्कुराते हुए अपने पुराने स्वरूप में लौट आये !


अर्थात् इस प्रसंग का सार-

*आज भी ऐसा ही होता है पिता रुद्र रूप में रहता है क्योंकि उसके ऊपर परिवार की जिम्मेदारियों, अपने परिवार का रक्षण, उनके मान सम्मान का ख्याल रखना होता है; तो थोड़ा कठोर रहता है और माँ सौम्य, प्यार, लाड़, स्नेह, उनसे बातचीत करके प्यार देकर उस कठोरता का बैलेंस बनाती है, इसलिए सुंदर होता है माँ का स्वरूप। पिता के ऊपर से भी जिम्मेदारियों का बोझ हट जाए तो वो भी बहुत सुंदर दिखता है।*

    *!! हंस और दुष्टों की संगति !!*

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पुराने समय की बात है। एक राज्य में एक राजा था। किसी कारण से वह अन्य गाँव में जाना चाहता था। एक दिन वह धनुष-बाण सहित पैदल ही चल पड़ा। चलते-चलते राजा थक गया। अत: वह बीच रास्ते में ही एक विशाल पेड़ के नीचे बैठ गया। राजा अपने धनुष-बाण बगल में रखकर, चद्दर ओढ़कर सो गया। थोड़ी ही देर में उसे गहरी नींद लग गई। उसी पेड़ की खाली डाली पर एक कौआ बैठा था। उसने नीचे सोए हुए राजा पर बीट कर दी। बीट से राजा की चादर गंदी हो गई थी। राजा खर्राटे ले रहा था। 


उसे पता नहीं चला कि उसकी चादर खराब हो गई है। कुछ समय के पश्चात कौआ वहाँ से उड़कर चला गया और थोड़ी ही देर में एक हंस उड़ता हुआ आया। हंस उसी डाली पर और उसी जगह पर बैठा, जहाँ पहले वह कौआ बैठा हुआ था अब अचानक राजा की नींद खुली। उठते ही जब उसने अपनी चादर देखी तो वह बीट से गंदी हो चुकी थी। राजा स्वभाव से बड़ा क्रोधी था। उसकी नजर ऊपर वाली डाली पर गई, जहाँ हंस बैठा हुआ था। राजा ने समझा कि यह सब इसी हंस की ओछी हरकत है। इसी ने मेरी चादर गंदी की है।


क्रोधी राजा ने आव देखा न ताव, ऊपर बैठे हंस को अपना तीखा बाण चलाकर, उसे घायल कर दिया। हंस बेचारा घायल होकर नीचे गिर पड़ा और तड़पने लगा। वह तड़पते हुए राजा से कहने लगा-


'अहं काको हतो राजन्!

हंसाऽहंनिर्मला जल:।

दुष्ट स्थान प्रभावेन,

जातो जन्म निरर्थक।।'


अर्थात हे राजन्! मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया, तुमने मुझे अपने तीखे बाणों का निशाना बनाया है? मैं तो निर्मल जल में रहने वाला प्राणी हूँ? ईश्वर की कैसी लीला है। सिर्फ एक बार कौए जैसे दुष्ट प्राणी की जगह पर बैठने मात्र से ही व्यर्थ में मेरे प्राण चले जा रहे हैं, फिर दुष्टों के साथ सदा रहने वालों का क्या हाल होता होगा? हंस ने प्राण छोड़ने से पूर्व कहा - 'हे राजन्! दुष्टों की संगति नहीं करना। क्योंकि उनकी संगति का फल भी ऐसा ही होता है।' राजा को अपने किए अपराध का बोध हो गया। वह अब पश्चाताप करने लगा।


शिक्षा:-

उपर्युक्त कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि हमें दुष्टों की संगति में रहने से बचना चाहिये, क्योंकि दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों की संगति का फल भी उनके जैसा ही होता हैं। साथ ही हमें किसी भी काम को करने से पहले अच्छे से सोच-समझ लेना चाहिए। बिना सोचे-विचारे कुछ भी काम नहीं करना चाहिए।

  *!! जीवन का सच !!*
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एक दिन एक प्रोफ़ेसर अपनी क्लास में आते ही बोले, “चलिए, Surprise Test के लिए तैयार हो जाइये। सभी स्टूडेंट्स घबरा गए…कुछ किताबों के पन्ने पलटने लगे तो कुछ सर के दिए नोट्स जल्दी-जल्दी पढने लगे। “ये सब कुछ काम नहीं आएगा….”, प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले, “ मैं Question Paper आप सबके सामने रख रहा हूँ, जब सारे पेपर बँट जायें तभी आप उसे पलट कर देखिएगा।” पेपर बाँट दिए गए। “ठीक है! अब आप पेपर देख सकते हैं!”, प्रोफेसर ने निर्देश दिया। अगले ही क्षण सभी Question Paper को निहार रहे थे, पर ये क्या इसमें तो कोई प्रश्न ही नहीं था!
था तो सिर्फ वाइट पेपर पर एक ब्लैक स्पॉट! ये क्या सर, इसमें तो कोई Question ही नहीं है?, एक छात्र खड़ा होकर बोला। प्रोफ़ेसर बोले, “जो कुछ भी है आपके सामने है, आपको बस इसी को एक्सप्लेन करना है… और इस काम के लिए आपके पास सिर्फ 10 मिनट हैं…चलिए शुरू हो जाइए…”स्टूडेंट्स के पास कोई चारा नहीं था…वे अपने-अपने Answers लिखने लगे। समय ख़त्म हुआ, प्रोफेसर ने Answer Sheets Collect कीं और बारी-बारी से उन्हें पढने लगे। लगभग सभी ने ब्लैक स्पॉट को अपनी-अपनी तरह से समझाने की कोशिश की थी लेकिन किसी ने भी उस स्पॉट के चारों ओर मौजूद White Space के बारे में बात नहीं की थी। 
प्रोफ़ेसर गंभीर होते हुए बोले, “इस टेस्ट का आपके Academics से कोई लेना-देना नहीं है और न ही मैं इसके कोई मार्क्स देने वाला हूँ…. इस टेस्ट के पीछे मेरा एक ही मकसद है….मैं आपको जीवन का सच बताना चाहता हूँ…देखिये…इस पूरे पेपर का 99% हिस्सा सफ़ेद है, लेकिन आप में से किसी ने भी इसके बारे में नहीं लिखा और अपना 100% Answer सिर्फ उस एक चीज को Explain करने में लगा दिया जो मात्र 1% है और यही बात हमारे Life में भी देखने को मिलती है ।

शिक्षा:-
समस्याएँ, हमारे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा होती हैं, लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इन्ही पर लगा देते हैं…कोई दिन रात अपने Looks को लेकर परेशान रहता है तो कोई अपने करियर को लेकर चिंता में डूबा रहता है तो कोई और बस पैसों का रोना रोता रहता है। क्यों नहीं हम अपनी Blessings को Count करके खुश होते हैं… क्यों नहीं हम पेट भर खाने के लिए भगवान को थैंक्स कहते हैं…क्यों नहीं हम अपनी प्यारी सी फॅमिली के लिए शुक्रगुजार होते है।
क्यों नहीं हम लाइफ की उन 99% चीजों की तरफ ध्यान देते हैं, जो सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं। तो चलिए आज से हम Life की Problems को ज़रुरत से ज्यादा Seriously लेना छोडें और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को Enjoy करना सीखें यही जीवन का सच है….तभी हम ज़िन्दगी को सही मायने में जी पायेंगे….।
  *!! खुशियां !!*
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एक औरत बहुत महँगे कपड़े में अपने मनोचिकित्सक के पास गई.
वह बोली, "डॉ साहब ! मुझे लगता है कि मेरा पूरा जीवन बेकार है, उसका कोई अर्थ नहीं है। क्या आप मेरी खुशियाँ ढूँढने में मदद करेंगें?"
मनोचिकित्सक ने एक बूढ़ी औरत को बुलाया जो वहाँ साफ़-सफाई का काम करती थी और उस अमीर औरत से बोला - "मैं इस बूढी औरत से तुम्हें यह बताने के लिए कहूँगा कि कैसे उसने अपने जीवन में खुशियाँ ढूँढी। मैं चाहता हूँ कि आप उसे ध्यान से सुनें।"
तब उस बूढ़ी औरत ने अपना झाड़ू नीचे रखा, कुर्सी पर बैठ गई और बताने लगी - "मेरे पति की मलेरिया से मृत्यु हो गई और उसके 3 महीने बाद ही मेरे बेटे की भी सड़क हादसे में मौत हो गई। 
मेरे पास कोई नहीं था। मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा था। मैं सो नहीं पाती थी, खा नहीं पाती थी, मैंने मुस्कुराना बंद कर दिया था।"
मैं स्वयं के जीवन को समाप्त करने की तरकीबें सोचने लगी थी। 
तब एक दिन,एक छोटा बिल्ली का बच्चा मेरे पीछे लग गया जब मैं काम से घर आ रही थी। बाहर बहुत ठंड थी इसलिए मैंने उस बच्चे को अंदर आने दिया। उस बिल्ली के बच्चे के लिए थोड़े से दूध का इंतजाम किया और वह सारी प्लेट सफाचट कर गया। फिर वह मेरे पैरों से लिपट गया और चाटने लगा।"
"उस दिन बहुत महीनों बाद मैं मुस्कुराई। तब मैंने सोचा यदि इस बिल्ली के बच्चे की सहायता करने से मुझे ख़ुशी मिल सकती है, तो हो सकता है कि दूसरों के लिए कुछ करके मुझे और भी ख़ुशी मिले। 
इसलिए अगले दिन मैं अपने पड़ोसी, जो कि बीमार था,के लिए कुछ बिस्किट्स बना कर ले गई।"
"हर दिन मैं कुछ नया और कुछ ऐसा करती थी जिससे दूसरों को ख़ुशी मिले और उन्हें खुश देख कर मुझे ख़ुशी मिलती थी।"
"आज,मैंने खुशियाँ ढूँढी हैं, दूसरों को ख़ुशी देकर।"
यह सुन कर वह अमीर औरत रोने लगी। 
उसके पास वह सब था जो वह पैसे से खरीद सकती थी। लेकिन उसने वह चीज खो दी थी जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती।
*शिक्षा:-*
मित्रों! हमारा जीवन इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने खुश हैं अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी वजह से कितने लोग खुश हैं।

     *!! संयम का महत्व !!*



_कहने को तो संयम बहुत ही छोटा-सा शब्द है पर समझने को बहुत ही बड़ा है। आज मैं आपको एक छोटी सी घटना का उल्लेख कर रहा हूँ; जो समझ गया, समझो जीवन का गूढ़ रहस्य समझ गया और जो न समझ सका उसे ईश्वर ही सद्बुद्धि दें।_


एक देवरानी और जेठानी में किसी बात पर जोरदार बहस हुई और दोनो में बात इतनी बढ़ गई कि दोनों ने एक दूसरे का मुँह तक न देखने की कसम खा ली और अपने-अपने कमरे में जा कर दरवाजा बंद कर लिया। परंतु थोड़ी देर बाद जेठानी के कमरे के दरवाजे पर खट-खट हुई। जेठानी तनिक ऊँची आवाज में बोली कौन है, बाहर से आवाज आई दीदी मैं ! जेठानी ने जोर से दरवाजा खोला और बोली अभी तो बड़ी कसमें खा कर गई थी। अब यहाँ क्यों आई हो ?


देवरानी ने कहा दीदी सोच कर तो वही गई थी, परंतु माँ की कही एक बात याद आ गई कि जब कभी किसी से कुछ कहा सुनी हो जाए तो उसकी अच्छाइयों को याद करो और मैंने भी वही किया और मुझे आपका दिया हुआ प्यार ही प्यार याद आया और मैं आपके लिए चाय ले कर आ गई।


बस फिर क्या था दोनों रोते रोते, एक दूसरे के गले लग गईं और साथ बैठ कर चाय पीने लगीं। जीवन मे क्रोध को क्रोध से नहीं जीता जा सकता, बोध से जीता जा सकता है। अग्नि अग्नि से नहीं बुझती जल से बुझती है।


*शिक्षा:-*

*समझदार व्यक्ति बड़ी से बड़ी बिगड़ती स्थितियों को दो शब्द प्रेम के बोलकर संभाल लेते हैं। हर स्थिति में संयम और बड़ा दिल रखना ही श्रेष्ठ है।*


     *!!  ईमानदार वीर बालक  !!*



रमेश बहुत ही प्यारा बालक था। वह कक्षा दूसरी में पढ़ता। रमेश विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस का राष्ट्रीय त्यौहार मनाया जाने वाला था। रमेश  बहुत उत्साहित था इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए। रमेश को उसकी कक्षा अध्यापिका ने स्वतंत्रता दिवस की परेड में भाग लेने के लिए बोला था। उसके हर्ष का कोई ठिकाना नहीं था, वह खुशी-खुशी इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तैयारियां करने लगा।

स्वतंत्रता दिवस की होने वाली परेड में सभी साथियों के साथ पूर्व अभ्यास निरंतर करता रहा और अत्यंत उत्साह से भरा हुआ था। परेड वाले दिन जब वह स्कूल के लिए तैयार होने लगा तो रमेश ने अपने दादा जी को खोजा। दादाजी रमेश के साथ निरंतर विद्यालय जाया करते थे उसे पहुँचाने।

किंतु दादाजी नहीं मिले  मां से पूछा तो माँ ने बताया दादाजी गांव गए हैं।

वहां दादी की तबीयत खराब है , और हॉस्पिटल में है।

पिताजी भी गए हुए हैं , अब मैं तुम्हें स्कूल पहुंचा कर गांव निकलूंगी।

रमेश ने यह बात सुनी तो बहुत दुखी हुआ और वह स्वयं भी दादी के पास जाने के लिए जिद करने लगा।

इस पर उसकी मां रमेश  को अपने साथ लेकर गांव चली गई।

जब वह कुछ दिन बाद विद्यालय पहुंचा वहां, प्रधानाचार्य ने उन सभी बालकों को बुलाया जिन्होंने परेड में भाग नहीं लिया था।  इस पर रमेश का नाम नहीं पुकारा गया , बाकी सभी विद्यार्थियों को उनके अभिभावक को लाने के लिए कहा गया। रमेश ने सोचा कि मेरा नाम प्रधानाचार्य ने नहीं बोला लगता है वह भूल गए होंगे। रमेश  प्रधानाचार्य के ऑफिस में गया और उसने प्रधानाचार्य से कहा कि ‘ मैं भी उस दिन परेड में नहीं आया था।

मगर आपने मेरा नाम नहीं लिया क्या मुझे भी अपने माता-पिता को बुलाकर लाना है ? ‘

रमेश के इस सरल स्वभाव को देखकर प्रधानाचार्य खुशी हुए और उन्होंने रमेश से बताया कि तुम्हारे माता-पिता ने फोन करके तुम्हारे स्कूल ना आने का कारण मुझे पहले ही बता दिया था।

तुम्हारी इमानदारी से मुझे खुशी हुई।

तुम अच्छे से पढ़ाई करो और अगली बार परेड में निश्चित रूप से भाग लेना।


*शिक्षा–*

*सदैव सत्य बोलना चाहिए और सत्य का साथ देना चाहिए। व्यक्ति का स्वभाव ही उस व्यक्ति का परिचय है।*

 


          !! *एक चुप सौ सुख* !!

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*जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे*


एक मछली मार कांटा डाले तालाब के किनारे बैठा था। काफी समय बाद भी कोई मछली कांटे में नहीं फँसी, ना ही कोई हलचल हुई तो वह सोचने लगा... कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने कांटा गलत जगह डाला है, यहाँ कोई मछली ही न हो! उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके कांटे के आसपास तो बहुत-सी मछलियाँ थीं। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी मछलियाँ होने के बाद भी कोई मछली फँसी क्यों नहीं! एक राहगीर ने जब यह नजारा देखा तो उससे कहा: लगता है भैया, यहाँ पर मछली मारने बहुत दिनों बाद आए हो! अब इस तालाब की मछलियाँ कांटे में नहीं फँसती। 


मछली मार ने हैरत से पूछा: क्यों, ऐसा क्या है यहाँ? राहगीर बोला: पिछले दिनों तालाब के किनारे एक बहुत बड़े संत ठहरे थे।उन्होने यहाँ मौन की महत्ता पर प्रवचन दिया था। उनकी वाणी में इतना तेज था कि जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ भी बड़े ध्यान से सुनतीं। यह उनके प्रवचनों का ही असर है कि उसके बाद जब भी कोई इन्हें फँसाने के लिए कांटा डालकर बैठता है तो ये मौन धारण कर लेती हैं। जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं तो कांटे में फँसेगी कैसे? इसलिए बेहतर यहीं होगा कि आप कहीं और जाकर कांटा डालो।



*शिक्षा*

*एक चुप सौ सुख*: परमात्मा ने हर इंसान को दो आँख, दो कान, दो नासिका, हर इन्द्रिय दो-2 ही प्रदान किया है। पर जिह्वा एक ही दी.. क्या कारण रहा होगा ? क्योंकि यह एक ही अनेकों भयंकर परिस्थितियाँ पैदा करने के लिये पर्याप्त है। संत ने कितनी सही बात कही कि जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे? अगर इन्द्रिय पर संयम करना चाहते हैं तो.. इस जिह्वा पर नियंत्रण कर लेवें बाकी सब इन्द्रियां स्वयं नियंत्रित रहेंगी। यह बात हमें भी अपने जीवन में उतार लेनी चाहिए।

 *!! समस्या का सामना ही समाधान !!*

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एक बार बनारस में स्वामी विवेकनन्द जी मां दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे कि तभी वहां मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया. वे उनसे प्रसाद छिनने लगे वे उनके नज़दीक आने लगे और डराने भी लगे. स्वामी जी बहुत भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए दौड़ कर भागने लगे. वो बन्दर तो मानो पीछे ही पड़ गए और वे भी उन्हें पीछे पीछे दौड़ाने लगे।


पास खड़े एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रहे थे, उन्होनें स्वामी जी को रोका और कहा, “रुको! डरो मत, उनका सामना करो.” वृद्ध सन्यासी की ये बात सुनकर स्वामी जी तुरंत पलटे और बंदरों के तरफ बढऩे लगे. उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उनके ऐसा करते ही सभी बन्दर तुरंत भाग गए. उन्होनें वृद्ध सन्यासी को इस सलाह के लिए बहुत धन्यवाद किया।



शिक्षा:-

इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में इसका जिक्र भी किया और कहा, “यदि तुम कभी किसी समस्या से भयभीत हो, तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो.” वाकई, यदि हम भी अपने जीवन में आये समस्याओं का सामना करें और उससे भागें नहीं तो बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जायेगा!

 *!! शिक्षा ही सफलता का रहस्य हैं !!*

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एक बार एक 15 साल का लड़का था जिसका पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था उसके बड़े बड़े सपने थे मै आगे चलकर करोड़पति बनूंगा, एक बड़ा बिजनेस खड़ा करूंगा। एक दिन अपने पापा से कहता है कि पापा जी मेरा पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता है और कहता है कि में पढ़ाई कर कुछ नहीं कर सकता मेरे बड़े बड़े सपने है, मै अमीर बनना चाहता हूं जो सिर्फ पढ़ाई कर के ही संभव नहीं है। उस लड़के के पापा कहते हैं बेटा तेरी बात बिल्कुल सही है जब मै छोटा था।


तब मेरा भी मन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लगता था लेकिन उससे मेने एक बात सीखी है वह मै तेरे को बताना चाहता हूं जिससे शायद तुझे कुछ सीखने को मिले और वह अपने बच्चे का हाथ पकड़ कर अपने घर से बाहर ले गया। उसने एक बड़ी बिल्डिंग बताई और कहा यह हवा में तो नहीं बन रही है ना क्या तू इस बिल्डिंग को हवा में बना सकता है इसको जमीन पर ही बना सकते हैं। और बनाने के लिए पहले नीम खोदना पड़ेगा। 


तभी जाकर एक बड़ी बिल्डिंग का निर्माण हो पाएगा। ठीक उसी प्रकार तू अमीर बनना चाहता है, जीवन में सफल होना चाहता है उसके लिए तुझे पहले नीम खोदना पड़ेगा और वह नीम है तेरी एजुकेशन, बिना एजुकेशन के कुछ भी संभव नहीं है। यह बात उस बच्चे को अच्छी तरह समझ आ गई है और वह मन लगाकर इतनी पढ़ाई करने लगा कि आगे चलकर वह बहुत बड़ा बिजनेसमैन बना और जीवन में एक कामयाब इंसान बना, उसने अपने सभी सपने पूरे कर लिए।



शिक्षा:-

दोस्तों! यह Motivational Story  हर उस स्टूडेंट्स को प्रेरणा देती हैं जिनका पड़ने में मन लगता है जो बिल्कुल भी पड़ना नहीं चाहते हैं उनको एक बात अवश्य ध्यान में रखना चाहिए जीवन में बिना एजुकेशन के कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हैं एजुकेशन ही हर सफलता का रहस्य है।

     *!! अंहकार की सजा !!*


एक बहुत ही घना जंगल था। उस जंगल में एक आम और एक पीपल  का भी पेड़ था। एक बार मधुमक्‍खी का झुण्‍ड उस जंगल में रहने आया, लेकिन उन मधुमक्‍खी के झुण्‍ड को रहने के लिए एक घना पेड़ चाहिए था। 
रानी मधुमक्‍खी की नजर एक पीपल के पेड़ पर पड़ी तो रानी मधुमक्‍खी ने पीपल के पेड़ से कहा, हे पीपल भाई, क्‍या मैं आपके इस घने पेड़ की एक शाखा पर अपने परिवार का छत्‍ता बना लुं?
पीपल को कोई परेशान करे यह पीपल को पसंद नही था। अंहकार के कारण पीपल ने रानी मधुमक्‍खी से गुस्‍से में कहा, हटो यहाँ से, जाकर कहीं और अपना छत्‍ता बनालो। मुझे परेशान मत करो।
पीपल की बात सुन कर पास ही खडे आम के पेड़ ने कहा, पीपल भाई बना लेने दो छत्‍ता। ये तुम्‍हारी शाखाओं में सुरक्षित रहेंगी। 
पीपल ने आम से कहा, तुम अपना काम करो, इतनी ही चिन्‍ता है तो तुम ही अपनी शाखा पर छत्‍ता बनाने के लिए क्‍यों नही कह देते?
इस बात से आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी रानी से कहा, हे रानी मक्‍खी, अगर तुम चाहो तो तुम मेरी शाखा पर अपना छत्‍ता बना लो।
इस पर रानी मधुमक्‍खी ने आम के पेड़ का आभार व्‍यक्‍त किया और अपना छत्‍ता आम के पेड़ पर बना लिया।
समय बीतता गया और कुछ दिनों बाद जंगल में कुछ लकडहारे आए उन लोग को आम का पेड़ दिखाई दिया और वे आपस में बात करने लगे कि इस आम के पेड़ को काट कर लकड़िया ले  लिया जाये।
वे लोग अपने औजार लेकर आम के पेड़ को काटने चले तभी एक व्‍यक्ति ने ऊपर की और देखा तो उसने दूसरे से कहा, नहीं, इसे मत काटो। इस पेड़ पर तो मधुमक्‍खी का छत्‍ता है, कहीं ये उड गई तो हमारा बचना मुश्किल हो जायेगा।
उसी समय एक आदमी ने कहा क्‍यों न हम लोग ये पीपल का पेड़ ही काट लिया जाए इसमें हमें ज्‍यादा लकड़िया भी मिल जायेगी और हमें कोई खतरा भी नहीं होगा।
वे लोग मिल कर पीपल के पेड़ को काटने लगे। पीपल का पेड़ दर्द के कारण जोर-जोर से चिल्‍लाने लगा, बचाओ-बचाओ-बचाओ….
आम को पीपल की चिल्‍लाने की आवाज आई, तो उसने देखा कि कुछ लोग मिल कर उसे काट रहे हैं।
आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी से कहा, हमें पीपल के प्राण बचाने चाहिए….. आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी से पीपल के पेड़ के प्राण बचाने का आग्रह किया तो मधुमक्‍खी ने उन लोगो पर हमला कर दिया, और वे लोग अपनी जान बचा कर जंगल से भाग गए।
पीपल के पेड़ ने मधुमक्‍खीयो को धन्‍यवाद दिया और अपने आचरण के लिए क्षमा मांगी।
तब मधुमक्‍खीयो ने कहा, धन्‍यवाद हमें नहीं, आम के पेड़ को दो जिन्‍होने आपकी जान बचाई है, क्‍योंकि हमें तो इन्‍होंने कहा था कि अगर कोई बुरा करता है तो इसका मतलब यह नही है कि हम भी वैसा ही करें।
अब पीपल को अपने किये पर पछतावा हो रहा था और उसका अंहकार भी टूट चुका था। पीपल के पेड़ को उसके अंहकार की सजा भी मिल चुकी थी।
*शिक्षा:-*
हमें कभी अंहकार नहीं करना चाहिए। जितना हो सके, लोगों के काम ही आना चाहिए, जिससे वक्‍त पड़ने पर तुम भी किसी से मदद मांग सको। जब हम किसी की मदद करेंगे तब ही कोई हमारी भी मदद करेगा।
   *!! हर व्यक्ति का महत्व !!*
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एक बार एक विद्यालय में परीक्षा चल रही थी। सभी बच्चे अपनी तरफ से पूरी तैयारी करके आये थे। कक्षा का सबसे ज्यादा पढ़ने वाला और होशियार लड़का अपने पेपर की तैयारी को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त था। उसको सभी प्रश्नों के उत्तर आते थे लेकिन जब उसने अंतिम प्रशन देखा तो वह चिन्तित हो गया। सबसे अंतिम प्रशन में पूछा गया था कि “विद्यालय में ऐसा कौन व्यक्ति है जो हमेशा सबसे पहले आता है? वह जो भी है, उसका नाम बताइए।”
परीक्षा दे रहे सभी बच्चों के ध्यान में एक महिला आ रही थी। वही महिला जो सबसे पहले स्कूल में आकर स्कूल की साफ सफाई करती। पतली, सावलें रंग की और लम्बे कद की उस महिला की उम्र करीब 50 वर्ष के आसपास थी। ये चेहरा वहां परीक्षा दे रहे सभी बच्चों के आगे घूम रहा था। लेकिन उस महिला का नाम कोई नहीं जानता था। इस सवाल के जवाब के रूप में कुछ बच्चों ने उसका रंग-रूप लिखा तो कुछ ने इस सवाल को ही छोड़ दिया। 
परीक्षा समाप्त हुई और सभी बच्चों ने अपने अध्यापक से सवाल किया कि “इस महिला का हमारी पढ़ाई से क्या सम्बन्ध है। इस सवाल का अध्यापक जी ने बहुत ही सुन्दर जवाब दिया “ये सवाल हमने इसलिए पूछा था कि आपको यह अहसास हो जाये कि आपके आसपास ऐसे कई लोग हैं जो महत्वपूर्ण कामों में लगे हुए है और आप उन्हें जानते तक नहीं। इसका मतलब आप जागरूक नहीं है।”
*शिक्षा:-*
हमारे आसपास की हर चीज, व्यक्ति का विशेष महत्व होता है, वह खास होता है। किसी को भी नजरअंदाज नहीं करें।

 *!! देखने का नजरिया !!* 

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एक दिन एक अमीर व्यक्ति अपने बेटे को एक गाँव की यात्रा पर ले गया | वह अपने बेटे को यह बताना चाहता था वे कितने अमीर और भाग्यशाली है जबकि गाँवों के लोग कितने गरीब है | उन्होंने कुछ दिन एक गरीब के खेत पर बिताए और फिर अपने घर वापस लौट गए | घर लौटते वक्त रास्ते में उस अमीर व्यक्ति ने अपने बेटे को पूछा – “तुमने देखा लोग कितने गरीब है और वे कैसा जीवन जीते है? बेटे ने कहा – “हां मैंने देखा। “हमारे पास एक कुता है और उनके पास चार है”।


“हमारे पास एक छोटा सा स्वीमिंग पूल है और उनके पास एक पूरी नदी है” “हमारे पास रात को जलाने के लिए विदेशों से मंगाई हुई कुछ महँगी लालटेन है और उनके पास रात को चमकने वाले अरबों तारें है” “हम अपना खाना बाज़ार से खरीदते है जबकि वे अपना खाना खुद अपने खेत में उगाते है। हमारा एक छोटा सा परिवार है जिसमें पांच लोग है, जबकि उनका पूरा गाँव, उनका परिवार है।


“हमारे पास खुली हवा में घूमने के लिए एक छोटा सा गार्डन है और उनके पास पूरी धरती है जो कभी समाप्त नहीं होती” “हमारी रक्षा करने के लिए हमारे घर के चारों तरफ बड़ी बड़ी दीवारें है और उनकी रक्षा करने के लिए उनके पास अच्छे-अच्छे दोस्त है” अपने बेटे की बाते सुनकर अमीर व्यक्ति कुछ बोल नहीं पा रहा था | बेटे ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा – “धन्यवाद पिताजी, मुझे यह बताने के लिए की हम कितने गरीब है।


*शिक्षा*:-

उपर्युक्त कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि व्यक्ति जैसा सोचता हैं, उसे सब कुछ वैसा ही नजर आता हैं। सब अपने देखने के नजरिये पर ही निर्भर करता हैं।

 


*भविष्य में ज्यादा अच्छा पाने के लालच* 

*में वर्तमान के अवसर नहीं छोड़ना चाहिए*

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एक प्रचलित कथा के अनुसार पुराने समय में एक व्यक्ति को जीवन में लगातार असफलताएं मिल रही थीं। वह दुखी था। मानसिक तनाव की वजह से उसका मन अशांत हो गया था। वह कम मेहनत में ज्यादा बड़ा लाभ पाना चाहता था। एक दिन उसके क्षेत्र में प्रसिद्ध संत आए। संत के पास गांव के लोग अपनी-अपनी समस्या लेकर पहुंच रहे थे। वह दुखी व्यक्ति भी संत के पास गया। व्यक्ति ने संत से कहा कि गुरुदेव मैं कम समय में सबसे आगे पहुंचना चाहता हूं, मैं नीचे शुरू नहीं करना चाहता।


मुझे कोई ऐसा मार्ग बताएं जिससे मैं जल्दी ही मेरे लक्ष्य तक पहुंच सकूं। व्यक्ति की बात सुनकर संत ने कहा कि ठीक है मैं तुम्हें मार्ग बता दूंगा, लेकिन इससे पहले तुम्हें मेरा एक काम करना होगा। व्यक्ति ने कहा कि ठीक है, बताइए मुझे क्या करना है? संत बोले कि मेरे बाग में से सबसे सुंदर फूल तोड़कर ले आओ, लेकिन ध्यान रखना एक बार आगे निकल जाओ तो पीछे पलट कर फूल नहीं तोड़ना है। व्यक्ति संत की आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार हो गया। 


उसने कहा कि मैं अभी फूल ले आता हूं, ये तो छोटा सा काम है। वह व्यक्ति संत के बाग में गया तो उसे पहला ही फूल बहुत सुंदर लगा, लेकिन उसने सोचा कि आगे इससे भी सुंदर फूल मिलेंगे। लड़का आगे बढ़ने लगा। उसे बाग में एक से बढ़कर एक सुंदर फूल दिख रहे थे, लेकिन वह सबसे अच्छा फूल देखने के लिए आगे बढ़ता रहा। जब वह बाग के अंत में पहुंचा तो वहां सिर्फ मुरझाए हुए और बेजान फूल थे। ये देखकर व्यक्ति निराश हो गया। 


संत की शर्त के अनुसार पर पीछे पलट नहीं सकता था। उसने मुरझाए फूल नहीं तोड़े और खाली हाथ ही संत के पास पहुंच गया। संत ने व्यक्ति से पूछा कि तुम फूल लेकर नहीं आए? व्यक्ति ने जवाब दिया कि महाराज में बाग में फूल तो बहुत अच्छे-अच्छे थे, लेकिन मैं सबसे सुंदर फूल लेकर आना चाहता था। इसीलिए अच्छे फूलों को छोड़कर आगे बढ़ता रहा। बाग के अंत में तो सभी फूल मुरझाए हुए थे, इस वजह से मैं खाली हाथ आ गया।



*शिक्षा*:-

मित्रों! हमारे जीवन में भी ऐसा ही होता है। इसीलिए जैसे ही कोई अच्छा अवसर मिले, उसका उपयोग कर लेना चाहिए। ज्यादा अच्छे अवसर के चक्कर में हाथ आए अवसर को नहीं छोड़ना चाहिए। वरना अंत में खाली हाथ लौटना पड़ता है। किसी भी काम में सफलता के लिए मेहनत तो करनी ही पड़ती है। कम समय में ज्यादा सफलता पाने का मोह में कई बार हम अच्छे अवसर छोड़ देते हैं और बाद में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

 


                   *!! धैर्यशील शिष्य !!*

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एक बार कि बात है, एक गुरू अपने कुछ शिष्यों के साथ पैदल ही यात्रा पर थे। वे चलते-चलते किसी गांव में पहुंच गए। ये गांव काफी बड़ा था, वहां घूमते हुए उन्हें काफी देर हो गयी थी। गुरू जी थक चुके थे और उन्हें बहुत प्यास लगी थी, तो उन्होनें अपने एक शिष्य से कहा कि हम इसी गांव में कुछ देर रूकते हैं, तुम मेरे लिए पानी ले आओ। जब शिष्य गांव के अंदर थोड़ा घुमा तो उसने देखा कि वहां एक नदी थी, जिसमें कई लोग कपड़े धो रहे थे, तो कई लोग नहा रहे थे और इसी वजह से नदी का पानी बहुत ही गंदा सा दिख रहा था।

शिष्य को लगा कि ऐसा गंदा पानी गुरू जी के स्वास्थ्य को खराब कर सकता है, उन्हें ये पानी नहीं पिलाया जा सकता। इसलिए शिष्य बिना पानी लिए ही वापस लौट आया और नदी के गंदे पानी की सारी बात गुरू जी को बता दी। इसके बाद गुरू जी ने किसी दूसरे शिष्य को पानी लाने के लिए भेजा। कुछ देर बाद वह शिष्य पानी साथ लेकर लौटा।

गुरू जी ने इस दूसरे शिष्य से पूछा कि नदी का पानी तो गंदा था फिर तुम ये पानी कैसे लाए? शिष्य बोला की गुरू जी, नदी का पानी वास्तव में बहुत ही गंदा था। लेकिन लोगों के नदी से चले जाने के बाद मैंने कुछ देर इंतजार किया और कुछ देर बाद नदी में मिट्टी नीचे बैठ गई और साफ पानी ऊपर आ गया। उसके बाद मैं उसी नदी से आपके लिए पानी भरकर ले आया।

गुरू जी, ये सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और बाकी शिष्यों को भी सीख दी कि हमारा जीवन भी इसी नदी के पानी की तरह है। जीवन में कई बार दुख और समस्याएं आती है तो जीवन रूपी पानी गंदा लगने लगता है। लेकिन थोड़े इंतजार और सब्र के बाद ये दुःख और समस्याएं नीचे दब जाती है और अच्छा समय ऊपर आ जाता है।

कुछ लोग पहले वाले शिष्य की तरह दुःख और समस्याओं को देख कर घबरा जाते हैं और मुसीबत देखकर वापस लौट आते हैं। ऐसे लोग जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाते वहीं दूसरी ओर कुछ लोग जो धैर्यशील होते हैं, इंतजार करते हैं कि कुछ समय बाद गंदगी रूपी समस्याएं और दुःख खत्म हो जाएंगे, वे ही सफल होते हैं।