" पेप्सी कविता "
पेप्सी बोली सुन कोका कोला !
भारत का इन्सान है बहुत भोला।
विदेश से मैं आयी हूँ,
साथ में मौत को लायी हूँ ।
लहर नहीं ज़हर हूँ मैं,
गुर्दों पर गिरता कहर हूँ मैं ।
मेरी पी.एच. दो पॉइन्ट सात,
मुझ में गिरकर गल जायें दाँत ।
जिंक आर्सेनीक लेड हूँ मैं,
काटे आतों को, वो ब्लेड हूँ मैं ।
हाँ दूध मुझसे सस्ता है,
फिर पीकर मुझको क्यों मरना है ।
540 करोड़ कमाती हूँ,
विदेश में ले जाती हूँ ।
मैं पहुँची हूँ आज वहाँ पर,
पीने को नहीं पानी जहाँ पर ।
छोड़ो नकल अब अकल से जीयो,
और जो कुछ पीना संभल के ही पीयो ।
बच्चों को यह कविता सुनाओ,
स्वदेशी अपनाओ, देश बचाओ ।
पेप्सी बोली सुन कोका कोला !
भारत का इन्सान है बहुत भोला।
विदेश से मैं आयी हूँ,
साथ में मौत को लायी हूँ ।
लहर नहीं ज़हर हूँ मैं,
गुर्दों पर गिरता कहर हूँ मैं ।
मेरी पी.एच. दो पॉइन्ट सात,
मुझ में गिरकर गल जायें दाँत ।
जिंक आर्सेनीक लेड हूँ मैं,
काटे आतों को, वो ब्लेड हूँ मैं ।
हाँ दूध मुझसे सस्ता है,
फिर पीकर मुझको क्यों मरना है ।
540 करोड़ कमाती हूँ,
विदेश में ले जाती हूँ ।
मैं पहुँची हूँ आज वहाँ पर,
पीने को नहीं पानी जहाँ पर ।
छोड़ो नकल अब अकल से जीयो,
और जो कुछ पीना संभल के ही पीयो ।
बच्चों को यह कविता सुनाओ,
स्वदेशी अपनाओ, देश बचाओ ।
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