Saturday, September 13, 2014

वो क्षण जिनका मैनें उपयोग नहीं किया
वो क्षण जिनका मैनें संजोग नहीं किया
वो क्षण जिन्हें खो दिया
वो क्षण जिन्हें बंजर में बो दिया
वो सब मिल के मेरे खिलाफ़ खडे हो गये
और मेरा सपना सपना ही रह गया
इसी लिये शायद मेरा भविष्य अजन्मा ही रह गया



धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
फ़ासला नज़रों का धोखा भी हो सकता है
वो मिले या ना मिले हाथ बढा कर देखो



हम तो जी रहे थे उनका नाम लेकर,
वो गुज़रते थे हमारा सलाम लेकर,
कल वो कह गये भुला दो हुमको,
हमने पुछा कैसे!!!!
वो चले गये हाथो मे जाम देकर…



 मैं वक़ियात की ज़न्जीर का नहीं क़ायल,
मुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला न कहो|

ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी है "राहत",
हर एक तराशे हुये बुत को देवता न कहो|



आँसुओं और शराबों में गुजारी है हयात
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा
बिखरे-बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं

वो सागर ही क्या जिसका कोई साहिल ना हो,
वो चमन ही क्या जिसमे फूल ना हो,
वो आसमान ही क्या जिसमे तारे ना हो,
और वो जीवन ही क्या जिसमे दोस्त ना हो


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