Wednesday, October 22, 2014

जानिए गाय की किन दो चीजों में निवास
करती हैं देवी लक्ष्मी :
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हिंदू धर्म में गाय को बहुत ही पवित्र और शुभ
माना गया है। अनेक धर्म ग्रंथों में गाय को मोक्ष प्रदान करने
वाली बताया गया है। मान्यता है कि गाय में
देवी महालक्ष्मी का भी वास
होता है। इस संदर्भ में एक कथा महाभारत के अनुशासन पर्व में
पितामह भीष्म ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई है।
उसी के अनुसार, गाय के गोबर व मूत्र में
देवी लक्ष्मी का निवास बताया गया है।
यही कारण है कि गाय के गोबर और मूत्र को बहुत
ही पवित्र माना गया। यह पूरा प्रसंग इस प्रकार है-
पितामह भीष्म ने ये बताया था युधिष्ठिर को
एक समय की बात है, लक्ष्मी ने मनोहर
रूप धारण करके गायों के एक झुंड में प्रवेश किया, उनके सुंदर रूप
को देखकर गायों ने पूछा कि- देवी। आप कौन हैं? और
कहां से आई हैं। तुम पृथ्वी की अनुपम
सुंदरी जान पड़ती हो। सच-सच बताओ, तुम
कौन हो और कहां जाओगी?
तब लक्ष्मी ने कहा- गायों। तुम्हारा कल्याण हो, मैं
इस जगत में लक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध हूं।
सारा जगत मेरी कामना करता है। मैंने दैत्यों को छोड़ दिया,
इससे वे सदा के लिए नष्ट हो गए और मेरे ही आश्रय
में रहने के कारण इंद्र, सूर्य, चंद्रमा, विष्णु, वरूण
तथा अग्नि आदि देवता सदा आनंद भोग रहे हैं। जिनके
शरीर में मैं प्रवेश नहीं करती,
वे नष्ट हो जाते हैं। अब मैं तुम्हारे शरीर में निवास
करना चाहती हूं।
- देवी लक्ष्मी की यह बात
सुनकर गायों ने कहा- तुम बड़ी चंचला हो,
कहीं भी नहीं ठहरती।
इसके सिवा तुम्हारा बहुतों के साथ एक सा संबंध है, इसलिए
हमको तुम्हारी इच्छा नहीं है।
तुम्हारी जहां इच्छा हो चली जाओ। तुमने
हमसे बात की, इतने ही से हम अपने
को कृतार्थ मानती हैं।
गायों के ऐसा कहने पर लक्ष्मी ने कहा- तुम यह
क्या कहती हो, मैं दुर्लभ और सती हूं
फिर भी तुम मुझे स्वीकार
नहीं करती, इसका क्या कारण है। देवता,
दानव, मनुष्य आदि उग्र तपस्या करके
मेरी सेवा का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। अत: मुझे
स्वीकार करो। संसार में कोई मेरा अपमान
नहीं करता।
गायों ने कहा- हम तुम्हारा अपमान या अनादर
नहीं करतीं, केवल तुम्हारा त्याग कर
रही हैं और वह भी इसलिए
कि तुम्हारा चित्त चंचल है, तुम
कहीं भी जमकर
नहीं रहती। अब बहुत
बातचीत से कोई लाभ नहीं है, तुम
जहां जाना चाहती हो, चली जाओ।
लक्ष्मी ने कहा- गायों। तुम दूसरों को आदर देने
वाली हो, यदि तुम मुझे त्याग दोगी तो सारे
जगत में मेरा अनादर होने लगेगा, इसलिए मुझ पर कृपा करो। मैं तुमसे
सम्मान चाहती हूं, तुम लोग
सदा सबकी कल्याण करने वाली, पवित्र और
सौभाग्यवती हो। मुझे आज्ञा दो, मैं तुम्हारे
शरीर के किस भाग में निवास करूं?
गायों ने कहा- यशस्विनी। हमें तुम्हारा सम्मान अवश्य
करना चाहिए। अच्छा, तुम हमारे गोबर और मूत्र में निवास करो,
क्योंकि हमारी ये दोनों वस्तुएं परम पवित्र हैं।
लक्ष्मी ने कहा- धन्य भाग। जो तुम लोगों ने मुझ पर
अनुग्रह किया। मैं ऐसा ही करूंगी। मैं सदैव
तुम्हारे गोबर और मूत्र में निवास करूंगी।
सुखदायिनी गायों। तुमने मेरा मान रख लिया, अत:
तुम्हारा कल्याण हो

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