Friday, October 17, 2014

गलत फहमियों के सिलसिले इतने दिलचस्प है ,
हर ईंट सोचती है कि दीवार बस मुझसे
जिन्दा है ....!


 जब हौसला बना लिया ऊँची उड़ान का..
फिर देखना फ़िज़ूल है क़द आसमान का...!!


 ठोकरे खा कर भी ना संभले तो, मुसाफिर का नसीब वरना पत्थरों ने तो, अपना फ़र्ज़ निभा दिया।


 कोशिशें की समझदार बनने की..
लेकिन खुशियाँ बेवकूफियों से
ही मिली...!!

जनाब मत पूछिए हद हमारी गुस्ताखियों की----
---हम आईना ज़मीं पर रखकर आसमां कुचल दिया करते
हे---!!


मेरा यही अंदाज़ ज़माने को खलता है...
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यूँ जलता है।।।


जलील करके जिस फकीर को तूने  किया रुखसत..
वो भीख लेने नही ...
तुजे दुआऐं देने  आता था...!!




लोग कहते हैं कि तुम्हारी आस्तीन मे सांप हैं
यारों मैं क्या करूं मेरा वजूद ही चन्दन का है





बड़े नादाँन है वो लोग जो इस दौर में भी वफ़ा की उम्मीद रखते हैं,
यहाँ तो दुआ कबूल ना हो तो लोग भगवान बदल देते हैं!!

उमर की राह मे रास्ते बदल जाते हैं,
वक़्त की आँधी मे इंसान बदल जाते हैं,
सोचते हैं आपको इतना याद ना करें,
लेकिन आँख बंद करते ही इरादे बदल जाते हैं."

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