Monday, July 20, 2015

किसी और के नाम से जब मेरी विदाई होगी
लगता हैं तब जा के तेरी यादों से रिहाई होगी।
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नाम मेरे नाम से किसी और का जब जुड़ेगा
सही मायने में अपनी मुकम्मल जुदाई होगी।
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तुझसे दूर होकर, अब मैं भी यही सोचती हूँ
मेरे बिना एक घड़ी भी तूने कैसे बिताई होगी।
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दस्तूर हैं इस दुनिया का, निभाना ही पड़ता हैं
किसी और की तूने भी अब माँग सजाई होगी।
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ये साथ तेरा मेरा तो कुछ पल के लिए ही था
इन हाथों की ये लकीरें उसने कैसी बनाई होगी।
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कीस्मत में जो लिखा था, वो तूने कर दिया मालिक
ऐसा कर के तेरी भी जरूर आँख भर आई होगी।

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