Friday, July 31, 2015

हाउस वाइफ का दुःख
हाउस वाइफ ही जाने
आज ससुर तो कल
सास बीमार
ससुर को डाक्टर के
पास ले जाना है
सास को बैद जी को
दिखाना है
मंदिर से लेकर
अस्पताल तक साथ
निभाना है
पति का सिर दुःख रहा
सिर पर बाम लगाना है
बेटा खांस रहा है
शरीर गर्म हो रहा है
उसे हल्दी मिला दूध
पिलाना है
चिडचिडा हो रहा है
इसलिए पास भी
बैठना है
स्कूल जाकर छुट्टी के लिए
कहना है
गैस ख़त्म हो गयी
कब आयेगी पता नहीं
तब तक पड़ोसी से
मांग कर काम चलाना है
काम वाली बाई आज
आयी नहीं
पर खाना तो बनाना है
बर्तनों को साफ़ करना है
मुंबई से नंदोई आये हैं
दो चार दिन उनका
सत्कार करना है
साथ में शहर दर्शन भी
कराना है
कमी रह जायेगी तो
महीनों सुनना पडेगा
छोटी बहन का फ़ोन आया
ससुराल में विवाह है
शौपिंग के लिए
बाज़ार साथ जाना है
दफ्तर से पती का फ़ोन
आया है
रात को अफसर का खाना है
बढ़िया से बढ़िया
इंतजाम करना है
इज्ज़त का झंडा ऊंचा
रखना है
जेठ जी का फ़ोन आया
कल सवेरे की गाडी से आयेंगे
पतिदेव तो दफ्तर जायेंगे
इसलिए स्टेशन से लाना है
आज करवा चौथ का व्रत है
भूखे पेट भजन नहीं होता
हाउस वाइफ को घर तो
चलाना है
खुद का बदन दुखे या पेट
खाना तो बनाना ह
 ै
छोटी छोटी बात का भी
ख्याल रखना है
माँ,बहु,भाभी,पत्नी का
धर्म भी निभाना है
सब को खुश जो रखना है
मन करता थोड़ा अपने
मन का कर ले
इतने में कोई घंटी बजाता है
दरवाज़ा खोला तो सामने
पड़ोसी खडा है
पत्नी की तबियत ठीक नहीं
अस्पताल साथ जाना है
इतना कुछ करती है
फिर भी
ज़िंदगी भर सुनना
पड़ता है
दिन भर करती
क्या हो
तुम्हें कितना आराम है
काम के लिए तुम्हें
दफ्तर नहीं जाना पड़ता
कैसे समझाए किसी को?
निरंतर खटते खटते उम्र
गुजर जाती है
हर दिन दूसरों के लिए
जीती है
फिर भी ज़िन्दगी भर
केवल हाउस वाइफ
कहलाती है

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