Saturday, July 25, 2015

तुम्हारी शिकायत बजा है
मगर तुमसे पहले भी
दुनिया यही थी
यही आज भी है
यहीं कल भी होगी....!

तुम्हें भी
इसी ईंट-पत्थर की दुनिया में
पल-पल बिखरना है
संवरना है
जीना है
मरना है ।

फ़क़त एक तुम ही नहीं हो
यहाँ
जो भी अपनी तरह सोचता
ज़माने की बेरंगियों से ख़फ़ा है
हर एक ज़िंदगी
इक नया तज़ुर्बा है ....!

मगर......जब तलक़ ....
ये शिकायत है ज़िंदा....
ये समझो ....
ज़मीं पर ....
..... मुहब्बत, है ज़िंदा....!!




फ़ासला, चांद बना देता है...
...... हर पत्थर को
दूर की रौशनी नज़दीक तो....
....... आने से रही ।

शहर में सबको कहाँ मिलती है ...
..... रोने की जगह
अपनी इज़्ज़त भी यहाँ ....
..... हँसने - हँसाने से रही ।




दिन सलीके से उगा .....
....रात ठिकाने से रही
दोस्ती अपनी भी कुछ
  ..... रोज़ ज़माने से रही ।

चंद लम्हों को ही बनती हैं
..... मुसव्विर आँखें
ज़िन्दगी.... रोज़ .... तो
 ...... तस्वीर बनाने से रही ।


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