Sunday, July 26, 2015

 जो सुलगता नहीं हो वो चिरागां कैसा
जो उजड़ता नहीं हो वो बहारां कैसा

मैंने पत्थर को भी शीशे का टुकड़ा समझा
बिना दिल के इन निगाहों का नजारा कैसा

जिंदगी थी तो तन्हा थे, ये भीड़ न थी
मेरी मैयत पे रिश्तों का ये सहारा कैसा

कितनी प्यासी थी ये लहरें रेतों के लिए
बिना रेतों के समंदर का गुजारा कैसा



गम की नजर से देखिए, दिल के असर से देखिए
है अश्क भी लाल रंग, खूने-जिगर से देखिए

तैराक भी कितने यहां प्यासे ही मर गए
संसार की नदी में भी जरा फिसल के देखिए

खुशबू से भीग जाएगी नाजुक सी उंगलियां
मेरे दिए गुलाब को आप मसल के देखिए

ये हुस्न देखकर ही तो वो चांद परेशान है
वो जल रहा है आपसे, घर से निकल के देखिए


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