Tuesday, December 29, 2015

"दिन को भी इतना अँधेरा है मेरे कमरे में
साया आते हुए डरता है मेरे कमरे में

ग़म थका हारा मुसाफ़िर है चला जायेगा
कुछ दिनों के लिये ठहरा है मेरे कमरे में

सुबह तक देखन अफ़साना बना डालेगा
तुझ को एक शख़्स ने देखा है मेरे कमरे में

दरबदर दिन को भटकता है तसव्वुर मेरा
हाँ मगर रात को रहता है मेरे कमरे में ...

""किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
      ये हुस्नों इश्क धोखा है सब मगर फिर भी""

मिले किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई
रहे न अपनी ख़बर तो समझो ग़ज़ल हुई

मिला के नज़रों को वालेहाना हया से फिर
झुका ले कोई नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई

इधर मचल कर उन्हें पुकारे जुनूं मेरा
धड़क उठे दिल उधर तो समझो ग़ज़ल हुई

उदास बिस्तर की सिलवटें जब तुम्हें चुभे
न सो सको रात भर तो समझो ग़ज़ल हुई

वो बदगुमा हो तो शेर सूझे न शायरी
वो मेहरबां हो ‘जफ़र’ तो समझो ग़ज़ल हुई ||
         

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