Monday, July 4, 2016

जो आईने में है उसकी तरफ़दारी भी करनी है,
मगर जो हममें है उससे हमें यारी भी करनी है,

ज़माने भर में ज़ाहिर अपनी खुद्दारी भी करनी है,
मगर दरबार में जाने की तैयारी भी करनी है,

हर इक से मिलने-जुलने की क़वायद से भी बचना है,
हर इक से मिलने-जुलने की अदाकारी भी करनी है,

है मोहलत चार दिन की और हैं सौ काम करने को,
हमें जीना भी है मरने की तैयारी भी करनी है,

मिलाकर अपनी ही कमज़ोरियों से हाथ छुप-छुप कर,
ख़ुद अपने आप से थोड़ी-सी गद्दारी भी करनी है,

ख़ुद अपने आप से होते भी रहना है फ़रार अक्सर,
ख़ुद अपने आपकी अक्सर गिरफ्तारी भी करनी है,

ख़ुदा की रहमतों को रायगाँ जाने भी दें कैसे,
हमें ये पाप की गठरी ज़रा भारी भी करनी है,

हमारे पाँव थकने लग गए आसान रस्तों पर,
सफ़र में अपने पैदा थोड़ी दुश्वारी भी करनी है,

छुपाते आए हैं हम जिनसे अब तक अपने अश्कों को,
बयाँ हमको उन्हीं लफ्ज़ों में लाचारी भी करनी है...


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