Saturday, October 18, 2014

जो जमीं जीती थी जीवन के लिये
नाप से ज्यादा थी दफन के लिये ।

यूं हम आपस में लड़कर थक गए
घर से तो निकले थे दुश्मन के लिये ।

घर में आए हो तो थोड़ा रो भी लो
चेहरा बन जाएगा दर्पन के लिये ।

लड़ रहें हैं जलते चूल्हे हर तरफ ...
और हम, तुम सब हैं ईंधन के लिये ।



बाज़ार ए इश्क़ में कोई सौदा न मिला
दिलबर से दिल लगाने का मौका न मिला ।

हालात जान के भी पूछ रहे हैं
क्या आपको हमारा लिफाफा नहीं मिला ।



 ये सोचकर रोक लेता हूँ कलम को,
तेरी तारीफ लिखते लिखते,
की कहीं इन लफ़्ज़ों को सबसे बेहतरीन
होने का गुमान ना हो जाये

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