Sunday, October 19, 2014

 हर बार मुझे जख्म-ए-दिल ना दिया कर,
तू मेरी नहीं, तो मुझे दिखाई ना दिया कर;
सच-झूठ तेरी आँखों से हो जाता हैं जाहिर,
क़समें ना खा, इतनी सफाई ना दिया कर..


हम हसरतों की ग़र्द में गुम हो के रह गए
मंज़िल का दूर-दूर तक रस्ता न मिला ।

हमने बिछड़े हुए दिल के चैन को
दर-दर की ख़ाक छान के ढूंढा , न मिला ।



 तुझे देखता हूँ तो डर जाता हूँ कहीं फिसल ना जाऊ

मौसम मुहब्बत का भी है...और बारिश का भी...
💘☔


तुझे देखता हूँ तो डर जाता हूँ कहीं फिसल ना जाऊ

मौसम मुहब्बत का भी है...और बारिश का भी...
💘☔

No comments:

Post a Comment