भूल जाएँ तो आज बेहतर है
सिलसिले करीबी के , जुदाई के
बुझ चुकीं ख़्वाहिशों की क़ंदीलें
लुट चुके शहर आशनाई के ।
ज़िंदगी से शिकायतें कैसी
अब नहीं हैं अगर थे कभी
भूल जाएँ कि जो हुआ सो हुआ
भूल जाएँ कि हम मिले थे कभी ।
अकसर -औक़ात चाहने पर भी
फ़ास्लों में कमी नहीं होती
बाज़-औक़ात जानेवालों की
वापसी से ख़ुशी नहीं होती ।
सिलसिले करीबी के , जुदाई के
बुझ चुकीं ख़्वाहिशों की क़ंदीलें
लुट चुके शहर आशनाई के ।
ज़िंदगी से शिकायतें कैसी
अब नहीं हैं अगर थे कभी
भूल जाएँ कि जो हुआ सो हुआ
भूल जाएँ कि हम मिले थे कभी ।
अकसर -औक़ात चाहने पर भी
फ़ास्लों में कमी नहीं होती
बाज़-औक़ात जानेवालों की
वापसी से ख़ुशी नहीं होती ।
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