Wednesday, October 22, 2014

दिवाली का दिन था ! बच्चे गली में राकेट चलाने की कोशिश कर थे ! रॉकेट की ख़ासियत थी कि इसकी तीन टाँगें थीं और इसको दागने के लिए बोतल का सहारा नहीं लेना पढता था ! दूसरा ये आसमान में बहुत ऊँचा जाता और बहुत ज़ोर से फटता था ! मगर मुश्किल ये थी इसकी एक टांग टूटी हुई थी जिसकी वजह से बच्चे इसे ठीक से खड़ा नहीं कर पा रहे थे ! तभी पप्पू खां , चौखाने की लुंगी बांधे अपने घर से बहार निकले ! बच्चों की दुविधा देख मलीहाबादी अंदाज़ में बोले ! हटो तुम लोगों से नहीं हो पायेगा ! ये कह ये कह कर पप्पू खान ने रॉकेट की टांग को जुगाड़ लगा के जोड़ा और फलीते में आग लगा दी ! मगर वाय हो पप्पू खां की क़िस्मत पर ! उड़ने से पहले राकेट की टांग फिर टूट गयी और राकेट पप्पू खां की लुंगी में घुस गया !
अब पप्पू खान मुर्ग़ा छाप चकर घिन्नी की तरह गली में नाच रहे थे ! लग रहा था लुंगी में ज्वाला मुखी बंद है और बस फटने ही वाला है ! गली में खड़ा हर इंसान ये सोच रहा था रॉकेट फटेगा तो पप्पू खां का क्या होगा ! और पप्पू खान को तीस सेकंड की राकेट की उम्र हज़रते नूह की उम्र से लम्बी लग रही थी ! राकेट था के खत्म ही नहीं हो रहा था !
अब इसे इत्तेफ़ाक़ कह लें, रॉकेट बनाने वालों का अन प्रोफ़ेश्नलिज़्म या पप्पू खान की होने वाली औलादों की क़िसमत ! रॉकेट फटा नहीं ! पप्पू खां , खान ही रहे ख़ातून न हुए !
सब की क़िस्मत पप्पू खान जैसी नहीं होती ! पटाखे चलायें मगर सुरक्षा का ध्यान रखते हुए !
- सभी को शुभ दीपावली 

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