राधा ने पूछा मोहन से :- तुम्हें सब लोग चोर क्यों कहते हैं ?
मोहन जी बोले :- राधे, मैं चोर हूँ, तभी तो लोग कहते हैं I
राधा जी ने फिर पूछा :- तुम क्या - क्या चुराते हो ?
कान्हा जी बोले :- तो फिर सुनो, जब मैं छोटा था तब मैं सब
का मन चुराया करता था I फिर थोड़ा बड़ा हुआ तो मैं माखन चुराने लगा जब थोड़ा और बड़ा हुआ तो मैंने गोपिओं के वस्त्र चुराये I
उस के बाद मैं भक्तों के प्यार में ऐसा हो गया, की मैंने एक नए
तरह की चोरी शुरू कर दी I
राधा जी बोली :- कैसी चोरी ?
कान्हा जी ने बड़ा अच्छा जवाब दियi :- आज कल मैं अपने
भक्तों के पाप भी चुरा लेता हूँ I
राधा जी बोली :- कहाँ है यह भक्त ?
कान्हा जी बोले :- एक तो इस मैसेज को भेज चुका, दूसरा इसे
पढ़ रहा है
हरि बोल।
मोहन जी बोले :- राधे, मैं चोर हूँ, तभी तो लोग कहते हैं I
राधा जी ने फिर पूछा :- तुम क्या - क्या चुराते हो ?
कान्हा जी बोले :- तो फिर सुनो, जब मैं छोटा था तब मैं सब
का मन चुराया करता था I फिर थोड़ा बड़ा हुआ तो मैं माखन चुराने लगा जब थोड़ा और बड़ा हुआ तो मैंने गोपिओं के वस्त्र चुराये I
उस के बाद मैं भक्तों के प्यार में ऐसा हो गया, की मैंने एक नए
तरह की चोरी शुरू कर दी I
राधा जी बोली :- कैसी चोरी ?
कान्हा जी ने बड़ा अच्छा जवाब दियi :- आज कल मैं अपने
भक्तों के पाप भी चुरा लेता हूँ I
राधा जी बोली :- कहाँ है यह भक्त ?
कान्हा जी बोले :- एक तो इस मैसेज को भेज चुका, दूसरा इसे
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