पायल ' हज़ारों रूपये में आती है
पर
' पैरो ' में पहनी जाती है
और..
' बिंदी ' एक रूपये में आती है
मगर
' माथे ' पर सजाई जाती है..
इसलिए कीमत मायने नहीं
रखती उसका कृत्य मायने रखता हैं.
एक ' किताबघर ' में पड़ी "
" गीता " और " कुरान " आपस में कभी नहीं लड़ते,
और
जो उनके लिए लड़ते हैं वो कभी उन दोनों को नहीं
" पढ़ते "..
' नमक ' की तरह
' कड़वा ' ज्ञान देने वाला ही
' सच्चा मित्र ' होता है..
' मीठी ' बात करने वाले तो
' चापलूस ' भी होते है..
इतिहास गवाह है की आज तक कभी ' नमक ' में ' कीड़े ' नहीं पड़े..
और ' मिठाई ' में तो अक़्सर ' कीड़े ' पड़ जाया करते है.
" अच्छे मार्ग " पर कोई व्यक्ति नही जाता पर " बुरे मार्ग "
पर सभी जाते है..
.इसीलिये " दारू " बेचने वाला कही नही जाता ,
पर " दूध बेचने "
वाले को घर ,
गली -गली ,
कोने- कोने जाना पड़ता है..
और दूध वाले से बार -बार पूछा जाता है कि " पानी तो नही डाला " ?
पर दारू मे खुद " हाथो से पानी " मिला-मिला पीते है..
वाह रे दुनियाँ और दुनियाँ की रीत ......
पर
' पैरो ' में पहनी जाती है
और..
' बिंदी ' एक रूपये में आती है
मगर
' माथे ' पर सजाई जाती है..
इसलिए कीमत मायने नहीं
रखती उसका कृत्य मायने रखता हैं.
एक ' किताबघर ' में पड़ी "
" गीता " और " कुरान " आपस में कभी नहीं लड़ते,
और
जो उनके लिए लड़ते हैं वो कभी उन दोनों को नहीं
" पढ़ते "..
' नमक ' की तरह
' कड़वा ' ज्ञान देने वाला ही
' सच्चा मित्र ' होता है..
' मीठी ' बात करने वाले तो
' चापलूस ' भी होते है..
इतिहास गवाह है की आज तक कभी ' नमक ' में ' कीड़े ' नहीं पड़े..
और ' मिठाई ' में तो अक़्सर ' कीड़े ' पड़ जाया करते है.
" अच्छे मार्ग " पर कोई व्यक्ति नही जाता पर " बुरे मार्ग "
पर सभी जाते है..
.इसीलिये " दारू " बेचने वाला कही नही जाता ,
पर " दूध बेचने "
वाले को घर ,
गली -गली ,
कोने- कोने जाना पड़ता है..
और दूध वाले से बार -बार पूछा जाता है कि " पानी तो नही डाला " ?
पर दारू मे खुद " हाथो से पानी " मिला-मिला पीते है..
वाह रे दुनियाँ और दुनियाँ की रीत ......
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