*Dedicated to all Busy People*
_ज़िन्दगी के इस कश्मकश मैं_
_वैसे तो मैं भी काफ़ी बिजी हुँ_
_लेकिन वक़्त का बहाना बना कर_
_अपनों को भूल जाना मुझे आज भी नहीं आता !_
_जहाँ यार याद न आए वो तन्हाई किस काम की_
_बिगड़े रिश्ते न बने तो खुदाई किस काम की,_
_बेशक अपनी मंज़िल तक जाना है_
_पर जहाँ से अपने ना दिखे_
_वो ऊंचाई किस काम की!!!_
_ज़िन्दगी के इस कश्मकश मैं_
_वैसे तो मैं भी काफ़ी बिजी हुँ_
_लेकिन वक़्त का बहाना बना कर_
_अपनों को भूल जाना मुझे आज भी नहीं आता !_
_जहाँ यार याद न आए वो तन्हाई किस काम की_
_बिगड़े रिश्ते न बने तो खुदाई किस काम की,_
_बेशक अपनी मंज़िल तक जाना है_
_पर जहाँ से अपने ना दिखे_
_वो ऊंचाई किस काम की!!!_
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