Sunday, June 19, 2016

तो क्या गुनाह है..?
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एक पल के लिए जो मैं ये सोच लूँ
कि तुम सिर्फ़ मेरे हो, तो क्या गुनाह है?
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एक पल में जो ख़ुशी अपने दामन में छुपा लूँ
ये सोचकर कि अब वो मेरे पास रहे, तो क्या गुनाह है?
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वो तुम्हारी मुस्कान आज भी मेरे दिल में बसी है
उसे आज अपना मान लूँ, तो क्या है?
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हमारे ग़मों ने हमारेफ़ासले मिटा दिये
तुम्हें फिर एक अच्छा दोस्त कहूँ, तो क्या गुनाह है?
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हज़ारों सवालों के सारे जवाब हमने दिये
अब एक छुपा लूँ, तो क्या गुनाह है?
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वक़्त के साथ साथ हमारेफ़ासले भी बढ़ गए
आज वो तुमसे ज़्यादा क़रीब हो, तो क्या गुनाह है?
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तुम्हारे आने से रौशन होती हैं मेरी सुबह और शाम
सिर्फ़ उस रौशनी के लिए तुम्हें बुलाऊँ, तो क्या गुनाह है?
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