Wednesday, September 17, 2014

 एक छुपी हुई पहचान रखता हूँ,
बाहर शांत हूँ, अंदर तूफान रखता हूँ,

रख के तराजू में अपने दोस्त की खुशियाँ,
दूसरे पलड़े में मैं अपनी जान रखता हूँ।

बंदों से क्या, रब से भी कुछ नहीं माँगा
मैं मुफलिसी में भी नवाबी शान रखता हूँ।

मुर्दों की बस्ती में ज़मीर को ज़िंदा रख कर,
ए जिंदगी मैं तेरे उसूलों का मान रखता हूँ।



गिरना भी अच्छा है ,
औकात का पता चलता है ....
बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को …
अपनों का पता चलता है !
जिन्हें गुस्सा आता है
वो लोग सच्चे होते हैं ,
मैंने झूठों को अक्सर
मुस्कुराते हुए देखा है …… !!!
सीख रहा हूं अब मैं भी
इंसानों को पढने का हुनर ,
सुना है चेहरे पे किताबों से
ज्यादा लिखा होता है " ~


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