Thursday, July 2, 2015

: तू नजीरे-हुस्न है, मैं मिसाले-इश्क हूं
तू खुदा की नूर है, मैं बुझा चराग़ हूं

है अभी मुझे यकीं, इस जनम में वस्ल हो
ये यकीं अस्ल हो, मैं अभी दुआ में हूं

सोलह दरिया पार की तब तेरा शहर मिला
तूने सुनी थी जो सदा, मैं वही आवाज़ हूं

आग में सुरुर है और दर्द भी मजबूर है
जल रहा हूं शौक से, मैं हिज्र का माहताब हूं




 इन चांद-सितारों में समा के मैं रह गया
यादों के दीये रोज जला के मैं रह गया

तू दो कदम भी साथ मेरे चल नहीं सकी
खुद को मुसाफिर ही बना के मैं रह गया

ये चंद बरस की है जो जिंदगी मेरी
सदियों की तरह इसको बिता के मैं रह गया

मुझको जुनूने-इश्क में कुछ भी खबर नहीं
दुनिया को इस कदर भुला के मैं रह गया


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