Saturday, July 4, 2015

झूठी दुआओं मे असर कैसे हो ...
ख्वाबों की दुनिया मे बसर कैसे हो ...

बंट गयी टुकड़ों मे जिंदगी...
अब कोई भी अर्ज़-ए-हुनर कैसे हो ..

सोच सियासत से भरी है यहाँ
आग इधर है जो, उधर कैसे हो ....

उनको है डर ये, जी उठूँगा मैं फिर ...
पूछ ले वो मुझसे, अगर कैसे हो ..

मेरी तरह रोते है हमदम मेरे ...
उजली हुई उनकी, नज़र कैसे हो ...

ख्यालों मे भी ख्याल यही रह गया ..
जिस्म मे ये साँसें 'सिफ़र' कैसे हो ..

दोस्त भी दुश्मन भी पीछे चल पड़े....
इससे हंसी कोई सफ़र कैसे हो ...


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