जय गोवर्धन गिरिधारी, हम आए शरण तिहारी.।
"गोवर्धनपूजा" (अन्नकूट महोत्सव) "गो संवर्द्धन" सप्ताह प्रारंभ के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ".!!
दीपवाली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपक्ष को गोवर्धन पूजा की जाती है।
इस पर्व पर गाय के गोबर से गोवर्धन की तथा श्रीकृष्ण की आकृति बना उसके चारों तरफ गाय, बछड़ों के साथ श्रद्धा पूर्वक पूजा की जाती है।
इस दिन छप्पन प्रकार की सब्जियों द्वारा निर्मित अन्नकूट एवं दही-बेसन की कढ़ी द्वारा गोवर्धन का पूजन एवं भोग लगाया जाता है।
कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले भारत में यह पर्व हमें मुख्यतः गाय, पहाड़, पेड़-पौधों, ऊर्जा के रूप में गोबर व अन्न की महत्ता बताता हैै।
गाय माता को देवी लक्ष्मी का प्रतीक मानकर लक्ष्मी पूजा के साथ गौ-पूजा की भी अपने देश में परम्परा रही है।
द्वापरकाल में अपने बाल्य काल में श्री कृष्ण ने नन्दबाबा, यशोदा मैया व अन्य ब्रजवासियों को बादलों के स्वामी इन्द्र की पूजा करते हुए देखा ताकि इंद्र देवता वर्षा करें और उनकी फसलें लहलहायें व वे सुख- समृद्धि की ओर अग्रसर हों।
श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि वर्षा का जल हमें गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होता है न कि इंद्र की कृपा से।
इससे सहमत होकर ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा आरम्भ कर दी।
श्रीकृष्ण ब्रजवासियों को इस बात का विश्वास दिलाने के लिए कि गोवर्धन जी उनकी पूजा से प्रसन्न हैं, पर्वत के अंदर प्रवेश कर गए व सारी समाग्रियों को ग्रहण कर लिया और अपने दूसरे स्वरूप में ब्रजवासियों के साथ खड़े होकर कहा:-
"देखो! गोवर्धन देवता प्रसन्न होकर भोग लगा रहे हैं, अतः उन्हें और सामाग्री लाकर चढ़ाएं"।
इंद्र को जब अपनी पूजा बंद होने की बात पता चली तो उसने अपने संवर्तक मेघों को आदेश दिया कि वे ब्रज को पूरा डुबो दें।
भारी वर्षा से घबराकर जब ब्रजवासी श्रीकृष्ण के पास पहुँचे तो उन्होंनेे उनके दुखों का निवारण करने हेतु अपनी तर्जनी पर पूरे गोवर्धन पर्वत को ही उठा लिया।
पूरे सात दिनों तक वर्षा होती रही पर ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत के नीचे सुरक्षित रहे।
सुदर्शन चक्र ने संवर्तक मेघों के जल को सुखा दिया।
अंततः पराजित होकर इंद्र श्रीकृष्ण के पास आए और क्षमा मांगी।
उस समय सुरभि गाय ने श्रीकृष्ण का दुग्धाभिषेक किया और इस अवसर पर ब्रजवासियों ने छप्पन भोग का भी आयोजन किया गया।
तब से भारतीय संस्कृति में गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की परम्परा चली आ रही है।
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अन्नकूट पूजा करो, गोवर्धन है आज,
गोरक्षा से सबल हो, पूरा देश समाज।
श्रीकृष्ण ने कर दिया, माँ का ऊँचा भाल,
सेवा करके गाय की, कहलाये गोपाल।
गौमाता से ही मिले, दूध-दही, नवनीत,
सबको होनी चाहिए, गौमाता से प्रीत।
गइया के घी-दूध से, बढ़ जाता है ज्ञान,
दुग्धपान करके बने, नौनिहाल बलवान।
कैमीकल का उर्वरक, कर देगा बरबाद,
फसलों में डालो सदा, गोबर की ही खाद।
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श्री गोवर्धन महाराज की जय।
श्रीकृष्ण महाराज की जय।
श्रीगौमाता की जय।
श्रीलक्ष्मी माता की जय।
"गोवर्धनपूजा" (अन्नकूट महोत्सव) "गो संवर्द्धन" सप्ताह प्रारंभ के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ".!!
दीपवाली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपक्ष को गोवर्धन पूजा की जाती है।
इस पर्व पर गाय के गोबर से गोवर्धन की तथा श्रीकृष्ण की आकृति बना उसके चारों तरफ गाय, बछड़ों के साथ श्रद्धा पूर्वक पूजा की जाती है।
इस दिन छप्पन प्रकार की सब्जियों द्वारा निर्मित अन्नकूट एवं दही-बेसन की कढ़ी द्वारा गोवर्धन का पूजन एवं भोग लगाया जाता है।
कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले भारत में यह पर्व हमें मुख्यतः गाय, पहाड़, पेड़-पौधों, ऊर्जा के रूप में गोबर व अन्न की महत्ता बताता हैै।
गाय माता को देवी लक्ष्मी का प्रतीक मानकर लक्ष्मी पूजा के साथ गौ-पूजा की भी अपने देश में परम्परा रही है।
द्वापरकाल में अपने बाल्य काल में श्री कृष्ण ने नन्दबाबा, यशोदा मैया व अन्य ब्रजवासियों को बादलों के स्वामी इन्द्र की पूजा करते हुए देखा ताकि इंद्र देवता वर्षा करें और उनकी फसलें लहलहायें व वे सुख- समृद्धि की ओर अग्रसर हों।
श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि वर्षा का जल हमें गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होता है न कि इंद्र की कृपा से।
इससे सहमत होकर ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा आरम्भ कर दी।
श्रीकृष्ण ब्रजवासियों को इस बात का विश्वास दिलाने के लिए कि गोवर्धन जी उनकी पूजा से प्रसन्न हैं, पर्वत के अंदर प्रवेश कर गए व सारी समाग्रियों को ग्रहण कर लिया और अपने दूसरे स्वरूप में ब्रजवासियों के साथ खड़े होकर कहा:-
"देखो! गोवर्धन देवता प्रसन्न होकर भोग लगा रहे हैं, अतः उन्हें और सामाग्री लाकर चढ़ाएं"।
इंद्र को जब अपनी पूजा बंद होने की बात पता चली तो उसने अपने संवर्तक मेघों को आदेश दिया कि वे ब्रज को पूरा डुबो दें।
भारी वर्षा से घबराकर जब ब्रजवासी श्रीकृष्ण के पास पहुँचे तो उन्होंनेे उनके दुखों का निवारण करने हेतु अपनी तर्जनी पर पूरे गोवर्धन पर्वत को ही उठा लिया।
पूरे सात दिनों तक वर्षा होती रही पर ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत के नीचे सुरक्षित रहे।
सुदर्शन चक्र ने संवर्तक मेघों के जल को सुखा दिया।
अंततः पराजित होकर इंद्र श्रीकृष्ण के पास आए और क्षमा मांगी।
उस समय सुरभि गाय ने श्रीकृष्ण का दुग्धाभिषेक किया और इस अवसर पर ब्रजवासियों ने छप्पन भोग का भी आयोजन किया गया।
तब से भारतीय संस्कृति में गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की परम्परा चली आ रही है।
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अन्नकूट पूजा करो, गोवर्धन है आज,
गोरक्षा से सबल हो, पूरा देश समाज।
श्रीकृष्ण ने कर दिया, माँ का ऊँचा भाल,
सेवा करके गाय की, कहलाये गोपाल।
गौमाता से ही मिले, दूध-दही, नवनीत,
सबको होनी चाहिए, गौमाता से प्रीत।
गइया के घी-दूध से, बढ़ जाता है ज्ञान,
दुग्धपान करके बने, नौनिहाल बलवान।
कैमीकल का उर्वरक, कर देगा बरबाद,
फसलों में डालो सदा, गोबर की ही खाद।
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श्री गोवर्धन महाराज की जय।
श्रीकृष्ण महाराज की जय।
श्रीगौमाता की जय।
श्रीलक्ष्मी माता की जय।
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