Tuesday, November 18, 2014

🌜शुभरात्रि🌛
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धन से ही तो रस हैं सारे,
धन ही सुख-दुख के सहारे ।

धन ने किये हैं रोशन बाजार,
बिन धन यहाँ न कोई मनुहार।

धन ही पहचान,यही अभिमान,
सिवा इस रस के न कोई गुणगान।

गज़ब है चाह न दिल कभी भरता,
पीने को ये रस हर कोई मचलता ।

उमर बीत जाए न होगा कभी बस,
जितना मिले ले लें "धन !

"मन में संतोष-सबसे बड़ा धन
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