🌜शुभरात्रि🌛
धन से ही तो रस हैं सारे,
धन ही सुख-दुख के सहारे ।
धन ने किये हैं रोशन बाजार,
बिन धन यहाँ न कोई मनुहार।
धन ही पहचान,यही अभिमान,
सिवा इस रस के न कोई गुणगान।
गज़ब है चाह न दिल कभी भरता,
पीने को ये रस हर कोई मचलता ।
उमर बीत जाए न होगा कभी बस,
जितना मिले ले लें "धन !
"मन में संतोष-सबसे बड़ा धन
धन से ही तो रस हैं सारे,
धन ही सुख-दुख के सहारे ।
धन ने किये हैं रोशन बाजार,
बिन धन यहाँ न कोई मनुहार।
धन ही पहचान,यही अभिमान,
सिवा इस रस के न कोई गुणगान।
गज़ब है चाह न दिल कभी भरता,
पीने को ये रस हर कोई मचलता ।
उमर बीत जाए न होगा कभी बस,
जितना मिले ले लें "धन !
"मन में संतोष-सबसे बड़ा धन
No comments:
Post a Comment