धर्म-पिता - मतलब असली पिता नहीं.
धर्म-माता - मतलब असली माता नहीं.
धर्म-पुत्र - मतलब असली पुत्र नहीं.
धर्म-भाई - मतलब असली भाई नहीं.
धर्म-बहिन - मतलब असली बहिन नहीं.
लेकिन
ये जबर्दस्त गलती कैसे हुई?
धर्म-पत्नी - मतलब असली पत्नी.
पता करो शास्त्रों में कहां गलती हुई?🚜
: एक मिञ ने बहुत ही सुंदर पंक्तियां भेजी है, फारवर्ड करने से खुद क रोक नहीं पाया .... "प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा।विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी।साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा।किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं ।मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती ।एक साँस भी तब आती है जब एक साँसछोड़ी जाती है..."
हरेक पल मुझको आज़माया, कभी किसी ने-कभी किसी ने
कभी हँसाया, कभी रूलाया, कभी किसी ने-कभी किसी ने
मैं किस तरह से बचाता ख़ुद को, कोई पराया भी तो नहीं था
हरेक सूरत ही ज़ुल्म ढाया, कभी किसी ने-कभी किसी ने
: छू ले
जिस जाम को
मुहब्बत से,,,
हो जाती है
ख़ास मय उस
जाम की,,,
समंदर भर
मय भी गर हो
मयस्सर फिर भी
होती नहीं है
किसी काम की
धर्म-माता - मतलब असली माता नहीं.
धर्म-पुत्र - मतलब असली पुत्र नहीं.
धर्म-भाई - मतलब असली भाई नहीं.
धर्म-बहिन - मतलब असली बहिन नहीं.
लेकिन
ये जबर्दस्त गलती कैसे हुई?
धर्म-पत्नी - मतलब असली पत्नी.
पता करो शास्त्रों में कहां गलती हुई?🚜
: एक मिञ ने बहुत ही सुंदर पंक्तियां भेजी है, फारवर्ड करने से खुद क रोक नहीं पाया .... "प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा।विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी।साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा।किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं ।मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती ।एक साँस भी तब आती है जब एक साँसछोड़ी जाती है..."
हरेक पल मुझको आज़माया, कभी किसी ने-कभी किसी ने
कभी हँसाया, कभी रूलाया, कभी किसी ने-कभी किसी ने
मैं किस तरह से बचाता ख़ुद को, कोई पराया भी तो नहीं था
हरेक सूरत ही ज़ुल्म ढाया, कभी किसी ने-कभी किसी ने
: छू ले
जिस जाम को
मुहब्बत से,,,
हो जाती है
ख़ास मय उस
जाम की,,,
समंदर भर
मय भी गर हो
मयस्सर फिर भी
होती नहीं है
किसी काम की
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