Sunday, November 2, 2014

एक पिता अपनी बेटी की शादी मे दामाद से
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माँ की ममता का सागर ये, मेरी आँखो का तारा है.
कैसे बतलाउ तुमको , किस लाड प्यार से पाला है
.
तुम द्वारे मेरे आए हो, मैं क्या सेवा कर सकता हूँ
ये कन्या रूपी रत्न तुम्हे, मैं आज समर्पित करता हूँ
.
मेरे हृद्य के नील गगन का ये चाँद सितारा है
मैं अब तक जान ना पाया था, इस पर अधिकार तुम्हारा है
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ये आज अमानत लो अपनी, कर बँध निवेदन करता हूँ
ये कन्या रूपी रत्न तुम्हे, मैं आज समर्पित करता हूँ '
.
इससे तो भूल होगी, ये सरला है सुकुमारी है .
इसके अपराध माफ़ करना मेरे घर की राजदुलारी है
.
मेरी कुटिया की शोभा है,जो तुमको अर्पण करता हूँ
ये कन्या रूपी रत्न तुम्हे मैं आज समर्पित करता हूँ '
.
भैया से आज बहन बिछ्ड़ी माँ से बिछ्ड़ी माँ की ममता
बहनो से आज बहन बिछ्ड़ी , लो तुम्ही इसके आज पिता
.
मैं आज पिता कहलाने का अधीकर समर्पित करता हूँ
ये कन्या रूपी रत्न तुम्हे आज समर्पित करता हूँ ' '
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था जिस दिन इसका जन्म हुआ ना गीत हुए ना शहनाई,
पर आज विदा के अवसर मेरे घर बजती शहनाई
.
ये बात समझकर मैं मन ही मन रोया करता हूँ,
ये कन्या रूपी रत्न तुम्हे आज समर्पित करता हूँ '

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