Thursday, January 15, 2015

ये सोचकर रोक लेता हूँ कलम को,
तेरी तारीफ लिखते लिखते,
की कहीं इन लफ़्ज़ों को सबसे बेहतरीन
होने का गुमान ना हो जाये




‬: मेरी हालात पे हसने वाले,
बस ईतना याद रखना ,
लोगों के वक्त आते हैं,
पर मेरा पुरा "दौर" आयेगा--




 इलाज ना ढूंढ तू मेरे इश्क़ का..
वो होगा ही नहीं,
इलाज मर्ज का होता है, इबादत का नहीं ।
_______

 तु मिल गई है ताे मुझ पे नाराज है खुदा,
कहता है की तु अब कुछ
माँगता नहीं है..





 "कौन कहता है मुझे ठेस का एहसास नहीं,
जिंदगी एक उदासी है जो तुम पास नहीं,
मांग कर मैं न पियूं तो यह मेरी खुद्दारी है,
इसका मतलब यह तो नहीं है कि मुझे प्यास नहीं."




आ सकी तेरी जुदाई न कभी रास मुझे
तुम से बिछुड़ा तो ये होने लगा अहसास मुझे ।

अपने हाथों ही कोई ज़हर पिया हैं मैंने
तर्के -उल्फ़त का सिला पा भी लिया हैं मैंने ।

अब तो तू आजा कि याद किया है मैंने.....


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