वो भीं दिन थे...
जब घड़ी एक आध के पास होती थी और समय सबके पास होता था।
बोलचाल में राजस्थानी का इस्तेमाल हुआ करता था और हिंदी सिर्फ शहरों तक सिमित थी और अंग्रेज़ी तो पिने के बाद ही बोली जाती थी।
हर जगह खो खो, कबड्डी खेलते थे अब केवल संसद में खेली जाती है।
लोग भूखे उठते थे पर भूखे सोते नहीं थे।
फिल्मों में हिरोइन को पैसे कम मिलते थे पर कपड़े पूरे पहनती थी।
लोग पैदल चलते थे और पदयात्रा करते थे पर पदयात्रा पद पाने के लिये नहीं होती थी।
साईकिल होती थी जो चार रोटी में चालीस का एवरेज देती थी।
चिट्ठी पत्री का जमाना था पत्रों मे व्याकरण अशुद्ध होती थी पर आचरण शुद्ध हुआ करता था।
शादी में घर की औरतें खाना बनाती थी और बाहर की औरतें नाचती थी अब घर की औरतें नाचती हैं और बाहर की औरते खाना बनाती है।
अब सोचो हमने क्या पाया और क्या खोया.....
जब घड़ी एक आध के पास होती थी और समय सबके पास होता था।
बोलचाल में राजस्थानी का इस्तेमाल हुआ करता था और हिंदी सिर्फ शहरों तक सिमित थी और अंग्रेज़ी तो पिने के बाद ही बोली जाती थी।
हर जगह खो खो, कबड्डी खेलते थे अब केवल संसद में खेली जाती है।
लोग भूखे उठते थे पर भूखे सोते नहीं थे।
फिल्मों में हिरोइन को पैसे कम मिलते थे पर कपड़े पूरे पहनती थी।
लोग पैदल चलते थे और पदयात्रा करते थे पर पदयात्रा पद पाने के लिये नहीं होती थी।
साईकिल होती थी जो चार रोटी में चालीस का एवरेज देती थी।
चिट्ठी पत्री का जमाना था पत्रों मे व्याकरण अशुद्ध होती थी पर आचरण शुद्ध हुआ करता था।
शादी में घर की औरतें खाना बनाती थी और बाहर की औरतें नाचती थी अब घर की औरतें नाचती हैं और बाहर की औरते खाना बनाती है।
अब सोचो हमने क्या पाया और क्या खोया.....
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