Wednesday, January 14, 2015

: चलने को चल रहा हूं मगर जी उचट गया
आधा सफ़र तो ख़ाक उड़ाने में कट गया ।

बाहर की रोशनी मेरे दिल ने न की कबूल
मैं अपनी रात ले के दरीचे से हट गया ।




लहरों का ज़ोर काट न पाया मेरा बदन
मुझको भिगो के वक़्त का दरिया पलट गया ।

फिर क्या हुआ धुएं की लकीरों से पूछिये
परवाना उड़ के शम्म की लौ से लिपट गया ।




Kismat saath na de to
Mohabbat
nafrat me badal jati hai.....
Dosto
Aksar kanta Lagne par Log
phool ko
bhi phenk diya karte hain....




दर्द इतना था ज़िंदगी में कि धड़कन साथ देने से घबरा गयी!
आंखें बंद थी किसी कि याद में ओर मौत धोखा खा गयी!




 उदास नहीं होना
क्योंकि मैं साथ हूँ
सामने न सही पर आस-पास हूॅं
पल्को को बंद कर जब भी दिल में देखोगे
मैं हर पल तुम्हारे साथ हूॅं ____♥
 

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