Saturday, July 4, 2015

थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ

ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हू

मैंने सिर्फ़ उसूलों के बारे में सोचा भर था

कितनी मुश्किल से मैं अपनी जान बचा पाया हू

कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकी-महकी यादें

जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूँ

मुझमें शायद थोड़ा-सा आकाश कहीं पर होगा

 मैं जो घर के खिड़की रोशनदान बचा पाया हूँ

इसकी कीमत क्या समझेंगे ये सब दुनिया वाले

अपने भीतर मैं जो इक इंसान बचा पाया हूँ #


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