Sunday, December 20, 2015




।।। खाली जगह ।।।

एक संन्यासी घूमते फिरते एक दुकान पर पहुंच गए दुकान में अनेक छोटे बडे डिब्बे रक्खे थे ।

एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए संन्यासी ने दुकानदार से पूछा इसमें क्या है ?

दुकानदार ने कहा इसमें नमक है ।

संन्यासी ने फिर पूछा इसके पास वाले में क्या है ?

दुकानदार ने कहा इसमें हल्दी है ।

संन्यासी इसके बाद वाले में ?

दुकानदार ने कहा जीरा है ।

संन्यासी ने फिर पूछा आगे वाले में ?

दुकानदार उसमें हींग है ।

इस प्रकार संन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा । आखिर पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया । संन्यासी ने पूछा उस अंतिम डिब्बे में क्या है ?

दुकानदार ने कहा उसमें परमात्मा हैं ।

संन्यासी चौंक पडे यह परमात्मा किस वस्तु का नाम है ।

दुकानदार ने कहा महात्मन ! और डिब्बों में तो भिन्न भिन्न वस्तुएं डाली हुई है । पर यह डिब्बा खाली है । हां खाली को खाली नहीं कहते, इसमें परमात्मा है ।

संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गई , खाली में परमात्मा ! ओह ! तो खाली में परमात्मा रहते है , भरे हुए में परमात्मा को स्थान कहां ?

लोभ, लालच, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी बातों से जब दिल दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा ? उसमें परमात्मा यानी ईश्वर तो साफ सुथरे मन में निवास करता है ।

दुकानदार की बात से संन्यासी के ज्ञान चक्षु खुल गए ।।।

क्या हमारे चक्षु अभी भी खुले है ?

🙏🙏🙏🙏🙏

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