।।। खाली जगह ।।।
एक संन्यासी घूमते फिरते एक दुकान पर पहुंच गए दुकान में अनेक छोटे बडे डिब्बे रक्खे थे ।
एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए संन्यासी ने दुकानदार से पूछा इसमें क्या है ?
दुकानदार ने कहा इसमें नमक है ।
संन्यासी ने फिर पूछा इसके पास वाले में क्या है ?
दुकानदार ने कहा इसमें हल्दी है ।
संन्यासी इसके बाद वाले में ?
दुकानदार ने कहा जीरा है ।
संन्यासी ने फिर पूछा आगे वाले में ?
दुकानदार उसमें हींग है ।
इस प्रकार संन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा । आखिर पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया । संन्यासी ने पूछा उस अंतिम डिब्बे में क्या है ?
दुकानदार ने कहा उसमें परमात्मा हैं ।
संन्यासी चौंक पडे यह परमात्मा किस वस्तु का नाम है ।
दुकानदार ने कहा महात्मन ! और डिब्बों में तो भिन्न भिन्न वस्तुएं डाली हुई है । पर यह डिब्बा खाली है । हां खाली को खाली नहीं कहते, इसमें परमात्मा है ।
संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गई , खाली में परमात्मा ! ओह ! तो खाली में परमात्मा रहते है , भरे हुए में परमात्मा को स्थान कहां ?
लोभ, लालच, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी बातों से जब दिल दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा ? उसमें परमात्मा यानी ईश्वर तो साफ सुथरे मन में निवास करता है ।
दुकानदार की बात से संन्यासी के ज्ञान चक्षु खुल गए ।।।
क्या हमारे चक्षु अभी भी खुले है ?
🙏🙏🙏🙏🙏
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