Saturday, November 1, 2014

जो जमीं जीती थी जीवन के लिये
नाप से ज्यादा थी दफन के लिये ।

यूं हम आपस में लड़कर थक गए
घर से तो निकले थे दुश्मन के लिये ।

घर में आए हो तो थोड़ा रो भी लो
चेहरा बन जाएगा दर्पन के लिये ।

लड़ रहें हैं जलते चूल्हे हर तरफ ...
और हम, तुम सब हैं ईंधन के लिये ।



करो सोने के सौ टुकडे तो क़ीमत कम नहीं होती l
बुज़ुर्गों की दुआ लेने से इज्ज़त कभी कम नहीं होती ll
जरूरतमंद को कभी देहलीज से ख़ाली ना लौटाओ l
Allah के नाम पर देने से दौलत कम नहीं होती ll
पकाई जाती है रोटी जो मेहनत के कमाई से l
हो जाए गर बासी तो भी लज्ज़त कम नहीं होती ll
याद करते है अपनी हर मुसीबत में जिन्हें हम l
मां और बाप के सामने झुकने से गर्दन नीचे नहीं होती ll

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