हमारे शौक़ की ये इन्तेहा थी
क़दम रखा कि मंज़िल रास्ता थी ।
बिछड के डर से जंगल-जंगल फिरा वो
हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी ।
कभी जो ख़्वाब था , वो पा लिया है
मगर जो खो गई, वो चीज़ क्या थी ।
मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मेरे अंजाम की वो इब्तदा थी ।
मुहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है
मेरे अच्छे दिनों की आशना थी ।
जिसे छूं लूं मैं वो हो जाए सोना
तुझे देखा तो जाना बद-दुआ थी ।
मरीजे-ख़्वाब को तो अब राहत है
मगर ये दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी ।
मंज़र ही हादिसे का अजीबो-ग़रीब था ......
वो आग से जला जो नदी के क़रीब था ।
याद आओ तो मना लें ये सहूलत भी नहीं
भूल जायें तुम्हें ऐसी कोई सूरत भी नहीं ।
क़दम रखा कि मंज़िल रास्ता थी ।
बिछड के डर से जंगल-जंगल फिरा वो
हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी ।
कभी जो ख़्वाब था , वो पा लिया है
मगर जो खो गई, वो चीज़ क्या थी ।
मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मेरे अंजाम की वो इब्तदा थी ।
मुहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है
मेरे अच्छे दिनों की आशना थी ।
जिसे छूं लूं मैं वो हो जाए सोना
तुझे देखा तो जाना बद-दुआ थी ।
मरीजे-ख़्वाब को तो अब राहत है
मगर ये दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी ।
मंज़र ही हादिसे का अजीबो-ग़रीब था ......
वो आग से जला जो नदी के क़रीब था ।
याद आओ तो मना लें ये सहूलत भी नहीं
भूल जायें तुम्हें ऐसी कोई सूरत भी नहीं ।
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