Saturday, January 3, 2015

हमारे शौक़ की ये इन्तेहा थी
क़दम रखा कि मंज़िल रास्ता थी ।

बिछड के डर से जंगल-जंगल फिरा वो
हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी ।

कभी जो ख़्वाब था , वो पा लिया है
मगर जो खो गई, वो चीज़ क्या थी ।




 मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मेरे अंजाम की वो इब्तदा थी ।

मुहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है
मेरे अच्छे दिनों की आशना थी ।

जिसे छूं लूं मैं वो हो जाए सोना
तुझे देखा तो जाना बद-दुआ थी ।

मरीजे-ख़्वाब को तो अब राहत है
मगर ये दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी ।




 मंज़र ही हादिसे का अजीबो-ग़रीब था ......


 वो आग से जला जो नदी के क़रीब था ।




याद आओ तो मना लें ये सहूलत भी नहीं



भूल जायें तुम्हें ऐसी कोई सूरत भी नहीं ।

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