Sunday, March 15, 2015

सोचता हूं क्या उसे नींद आती होगी
या मेरी तरह सिर्फ अश्क बहाती होगी
वो मेरी शक्ल मेरा नाम भुलाने वाली
अपनी तस्वीर से क्या आंख मिलाती होगी




: फूल बनकर मुस्कुराना है ज़िंदगी;
मुस्कुराते हुए सब ग़म भुलाना है ज़िंदगी;
जीत का जश्न तो हर कोई मना लेता है;
हार कर खुशियां मनाना भी है ज़िंदगी।




ज़िंदगी तो सभी के लिए एक रंगीन किताब है;
फर्क बस इतना है कि कोई हर पन्ने को दिल से पढ़ रहा है;
और कोई दिल रखने के लिए पन्ने पलट रहा है।



 लबों पे ना कोई सवाल रखता था
कभी वो इतना ख्याल रखता था
खबर क्या थी की मुझे ही भूल जायगा वो
एक एक चीज़ मेरी जो संभाल के रखता था




 दुनिया का हर शौंक पाला नही जाता;
 कांच के खिलौनों को उछाला नही जाता;
 मेहनत करने से मुश्किल हो जाती है आसान;
 क्योंकि हर काम तक़दीर पर टाला नही जाता।



ज़िंदगी पल-पल ढलती है;
जैसे रेत बंद मुट्ठी से फिसलती है;
शिकवे कितने भी हो हर पल;
फिर भी हँसते रहना;
क्योंकि ये ज़न्दगी जैसी भी है,
बस एक बार ही मिलती है।


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