Monday, March 30, 2015

ज़िंदगी का आखरी सफर पे कुछ शब्द. कफ़न तो हकीकत है दर्शने संसार में क्या ढूंढते हैं न जाने हम सोने के हार में. एक दिन तो इल्म होगा हर किसी को कुछ नहीं रखा है इस नकली से बाजार में. रस्म दुनिया का यही है बस जी के मर जाना मिटटी से आये थे मिटटी में मिल जाना. कौन- किसको दिल के तले याद रखता है अब बंदगी न हो तो भूल जाता है रब. अफसाने बहुत है कई वाकया मतलबे बिना चराग जलता है कब. यही सच है अब सामना करो न करो बे इम्तियाज़ या आंखे मूँद लो. बड़े जतन से जो रखे पाई-पाई वो उम्र भर की तुम्हारी -हमारी कमाई. एक अरसे से है लम्बी दौड़ते रहे हम जाग के भी सोते रहे हैं हम. अब एक इलाक़ा जो रह गया बाकि आखिरी सफ़र गुमनाम साकी. हम क्या ..तुम क्या ….कौन क्या ….? सबके जनाजे… यही अंजाम बाकि हाँ यही अंजाम बाकि … आखिरी सफ़र…….

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