Friday, March 27, 2015

एक प्यारी सी कविता वक़्त पर .
" वक़्त नहीं "

हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में ,
पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में ,
ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त नहीं .

सारे रिश्तोंको तो हम मार चुके ,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त
नहीं ..

सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर दोस्ती के लिये वक़्त नहीं .
गैरों की क्या बात करें ,
जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं .

आखों में है नींद भरी ,
पर सोने का वक़्त नहीं .
दिल है ग़मो से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं .

पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े ,
की
थकने का भी वक़्त नहीं .
पराये एहसानों की क्या कद्र करें ,
जब अपने सपनों के लिये ही वक़्त नहीं  

तू ही बता ऐ ज़िन्दगी ,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा ,
की हर पल मरने वालों को ,
जीने के लिये भी वक़्त नहीं .......

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