Sunday, December 13, 2015

अपने लिए भी जियें ..! थोड़ा सा वक्त निकालो वरना.......
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ज़िंदगी के 20 वर्ष.. हवा की तरह उड़ जाते हैं...! फिर शुरू होती है..... नौकरी की खोज....!
ये नहीं वो, दूर नहीं पास.
ऐसा करते 2-3 नौकरीयां छोड़ते पकड़ते....
अंत में एक तय होती है, और ज़िंदगी में थोड़ी स्थिरता की शुरूआत होती है.... !
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और हाथ में आता है... पहली तनख्वाह का चेक, वह बैंक में जमा होता है और शुरू होता है..... अकाउंट में जमा होने वाले कुछ शून्यों का अंतहीन खेल.....!
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इस तरह 2-3 वर्ष निकल जाते हैँ....!
'वो' स्थिर होता है....
बैंक में कुछ और शून्य जमा हो जाते हैं....
इतने में अपनी उम्र के पच्चीस वर्ष हो जाते हैं...!
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विवाह की चर्चा शुरू हो जाती है... एक खुद की या माता पिता की पसंद की लड़की से यथा समय विवाह होता है ... और ज़िंदगी की राम कहानी शुरू हो जाती है....!
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शादी के पहले 2-3 साल नर्म, गुलाबी, रसीले और सपनीले गुज़रते हैं.....!
हाथों में हाथ डालकर बातें और रंग बिरंगे सपने......!
पर ये दिन जल्दी ही उड़ जाते हैं...और इसी समय शायद बैंक में कुछ शून्य कम होते हैं......!
क्यों कि थोड़ी मौजमस्ती, घूमना फिरना, खरीदारी होती है.....!
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और फिर धीरे से बच्चे के आने की आहट होती है और वर्ष भर में पालना झूलने लगता है......!
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सारा ध्यान अब बच्चे पर केंद्रित हो जाता है....! उसका खाना पीना, उठना बैठना, शु-शु, पाॅटी, उसके खिलौने, कपड़े और उसका लाड़ दुलार....!
समय कैसे फटाफट निकल जाता है..... पता ही नहीं चलता.....!
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इन सब में कब इसका हाथ उसके हाथ से निकल गया, बातें करना, घूमना फिरना कब बंद हो गया, दोनों को ही पता नहीं चला......?
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इसी तरह उसकी सुबह होती गयी और बच्चा बड़ा होता गया.......
वो बच्चे में व्यस्त होती गई और ये अपने काम में......!
घर की किस्त, गाड़ी की किस्त और बच्चे की ज़िम्मेदारी, उसकी शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शून्य बढ़ाने का टेंशन.....!
उसने पूरी तरह से अपने आपको काम में झोंक दिया....!
बच्चे का स्कूल में एॅडमिशन हुआ और वह बड़ा होने लगा.....!
उसका पूरा समय बच्चे के साथ बीतने लगा....!
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इतने में वो पैंतीस का हो गया.....!
खूद का घर, गाड़ी और बैंक में कई सारे शून्य...!
फिर भी कुछ कमी है...?
पर वो क्या है... समझ में नहीं आता......!
इस तरह उसकी चिड़-चिड़ बढ़ती जाती है और ये भी उदासीन रहने लगता है......!
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दिन पर दिन बीतते गए, बच्चा बड़ा होता गया और उसका खुद का एक संसार तैयार हो गया...! उसकी दसवीं आई और चली गयी......!
तब तक दोनों ही चालीस के हो गए....!
बैंक में शून्य बढ़ता ही जा रहा है.....!
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एक नितांत एकांत क्षण में उसे वो गुज़रे दिन याद आते हैं और वो मौका देखकर उससे कहता है,
" अरे ज़रा यहां आओ,
पास बैठो....! "
चलो फिर एक बार हाथों में हाथ ले कर बातें करें, कहीं घूम के आएं......! उसने अजीब नज़रों से उसको देखा और कहती है.......
" तुम्हें कभी भी कुछ भी सूझता है... मुझे ढेर सा काम पड़ा है और तुम्हें बातों की सूझ रही है..! " कमर में पल्लू खोंस कर वो निकल जाती है....!
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और फिर आता है..... पैंतालीसवां साल,
आंखों पर चश्मा लग
गया.......
बाल अपना काला रंग छोड़ने लगे......
दिमाग में कुछ उलझनें शुरू हो जाती हैं.....
बेटा अब काॅलेज में है....
बैंक में शून्य बढ़ रहे हैं... उसने अपना नाम कीर्तन मंडली में डाल दिया और........
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बेटे का कालेज खत्म हो गया.....
अपने पैरों पर खड़ा हो गया......!
अब उसके पर फूट गये और वो एक दिन परदेस उड़ गया........!!!
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अब उसके बालों का काला रंग और कभी कभी दिमाग भी साथ छोड़ने लगा..........!
उसे भी चश्मा लग गया..!
अब वो उसे उम्र दराज़ लगने लगी क्योंकि वो खुद भी बूढ़ा हो रहा था.......!
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पचपन के बाद साठ की ओर बढ़ना शुरू हो गया.........!
बैंक में अब कितने शून्य हो गए.......
उसे कुछ खबर नहीं है... बाहर आने जाने के कार्यक्रम अपने आप बंद होने लगे.......!
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गोली-दवाइयों का दिन और समय निश्चित होने लगा......!
डाॅक्टरों की तारीखें भी तय होने लगीं.....!
बच्चे बड़े होंगे........
तब हम सब एक साथ रहेंगे... ये सोचकर लिया गया घर भी अब..... बोझ लगने लगा.......
बच्चे कब वापस आएंगे,
अब बस यही सोचते सोचते ज़िन्दगी के बाकी दिन बीतने शुरू हुवे... अब आखिर में यही बाकी रह गया था......!
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और फिर वो एक दिन आता है....!
वो सोफे पर लेटा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था....!
वो शाम की दिया-बाती कर रही थी.....!
वो देख रही थी कि वो सोफे पर लेटा है....!
इतने में फोन की घंटी बजी....
उसने लपक के फोन उठाया....
उस तरफ बेटा था...!
बेटा अपनी शादी की जानकारी देता है.. और बताता है.... कि अब वह परदेस में ही रहेगा....!
उसने बेटे से.. बैंक के.. शून्य के बारे में... क्या करना यह पूछा....?
अब चूंकि विदेश के शून्य की तुलना में.... उसके शून्य बेटे के लिये शून्य हैं इसलिए उसने पिता को सलाह दी......!"
एक काम करिये, इन पैसों का ट्रस्ट बनाकर वृद्धाश्रम को दे दीजिए... और खुद भी वहीं रहिये.....!"
कुछ औपचारिक बातें करके बेटे ने फोन रख दिया......!
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वो पुनः सोफे पर आ कर बैठ गया.... उसकी भी दिया बाती खत्म होने आई थी.....
उसने उसे आवाज़ दी,
" चलो आज फिर हाथों में हाथ ले के बातें करें....!"
वो तुरंत बोली,
" बस अभी आई....!"
उसे विश्वास नहीं हुआ...
चेहरा खुशी से चमक उठा........
आंखें भर आईं......
उसकी आंखों से गिरने लगे और गाल भीग गए...
अचानक आंखों की चमक फीकी हो गई और वो निस्तेज हो गया......!!
हमेशा के लिए.....!!!!
उसने शेष पूजा की... और उसके पास आ कर बैठ गई.... कहा....
"बोलो क्या बोल रहे थे.?"
पर उसने कुछ नहीं कहा.!
उसने उसके शरीर को छू कर देखा, शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ गया था.....और वो एकटक उसे देख रहा था.........!!!!
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क्षण भर को वो शून्य हो गई.......
"क्या करूं" उसे समझ में नहीं आया.......!!
लेकिन एक-दो मिनट में ही वो चैतन्य हो गई... धीरे से उठी और पूजाघर में गई.....!
एक अगरबत्ती जलाई और ईश्वर को प्रणाम किया और फिर से सोफे पे आकर बैठ गई.....!
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उसका ठंडा हाथ हाथों में लिया और बोली,
" चलो कहां घूमने जाना है और क्या बातें करनी हैं तम्हे.......!!"
बोलो.......!!
ऐसा कहते हुए उसकी आँखें भर आईं.....!!
वो एकटक उसे देखती रही.......
आंखों से अश्रुधारा बह निकली......!
उसका सिर उसके कंधों पर गिर गया.....!!
ठंडी हवा का धीमा झोंका अभी भी चल रहा था....!!
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क्या यही जिंदगी है.......??
नहीं........!!!
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संसाधनों का अधिक संचय न करें......
ज्यादा चिंता न करें.....
सब अपना अपना नसीब ले कर आते हैं....!
अपने लिए भी जियो...
वक्त निकालो.....!
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सुव्यवस्थित जीवन की कामना........!!
जीवन आपका है.... जीना आपने ही है...!!
अब इसे कैसे जीना है.... यह आज और अभी सोचिये.... क्यों की कल कभी नहीं आता...!!!!


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