Friday, March 6, 2015

पिचकारी की दुकान से दूर हाथों में,
कुछ सिक्के गिनते मैंने उसे देखा.

एक गरीब बच्चे की आखों में,
मैंने होली को मरते देखा.

थी चाह उसे भी नए कपड़े पहनने की...
पर उन्हीं पुराने कपड़ों को मैंने उसे साफ करते
देखा.

तुमने देखा कभी चाँद पर बैठा पानी?
मैंने उसके रुखसार पर बैठा देखा.

हम करते हैं सदा अपने ग़मों की नुमाइश...

उसे चुपचाप ग़मों को पीते देखा.

थे नही माँ-बाप उसके..
उसे माँ का प्यार और पापा के
हाथों की कमी महसूस करते देखा.

जब मैंने कहा, "बच्चे, क्या चाहिए तुम्हे"?
तो उसे चुपचाप मुस्कुरा कर "ना" में सिर हिलाते
देखा.

थी वह उम्र बहुत छोटी अभी...
पर उसके अंदर मैंने ज़मीर को पलते देखा.

सारे शहर के लोगों के रंगे पुते चेहरे में....
मैंने उसके हँसते, मगर बेबस चेहरे को देखा.

हम तो जिंदा हैं अभी शान से यहाँ
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा.

नामाकूल रही होली मेरी...
जब मैंने ज़िन्दगी के इस दूसरे अजीब पहलू को देखा.

कोई मनाता है जश्न,
और कोई रहता है तरसता .
मैंने वो देखा..
जो हम सब ने देख कर भी नहीं देखा.

लोग कहते हैं त्यौहार होते हैं
ज़िन्दगी की ख़ुशियों के लिए,
तो क्यों मैंने उसे मन ही मन घुटते और तरसते
देखा...

आप से यही अपील करूंगा
होली पर किसी गरीब बच्चे
की जिन्दगी में खुशियों का रंग घोल कर देखें
यकीन मानिये आप का ये रंगों का त्योहार और निखर जाएगा
आप पैसे देकर या नये कपड़े दिला कर किसी गरीब
या अनाथ बच्चे की होली रंगों से सजा सकते हैं
"इस बार होली कुछ यू मनाएं
किसी गरीब की खुशियाँ रंगों
से सजाएं " —
एक प्रयास तो कीजिये
आपका त्योहार आपको खुशियों से भर देगा
👏👏👏👏👏👏👏👏

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