Saturday, October 11, 2014

 सासों मे भी शामिल हो,
लहू मे भी रवा हो,
मगर मेरे हाथो की लकीरो मे कहा हो


सब मुझसे कहते हे बदल गया हु मैं.......
अब मैं किस किस को समझाऊ क़ी टूटे हुए
पत्ते का रंग अक्सर बदल जाता हें.


जो चाहा कभी पाया नहीं,
जो पाया कभी सोचा नहीं,
जो सोचा कभी मिला नहीं,
जो मिला रास आया नहीं,
जो खोया वो याद आता है
पर
जो पाया संभाला जाता नहीं ,
क्यों
अजीब सी पहेली है ज़िन्दगी
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं...


Teri palkon k aansuon se aqeedat mujhe bhi hai,
Teri tarha zindagi se shikayat mujhe bhi hai,
Tu agar nazuk hai toh main bhi nahi patthar,
Tanhayi mein ro dene ki aadat mujhe bhi hai..

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