यदि कबीर जिन्दा होते तो आजकल के दोहे यह होते :-
🔹पानी आँखों का मरा, मरी शर्म और लाज !
कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज !!
🔹भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास !
बहन पराई हो गयी, साली खासमखास !!
🔹मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश !
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश !!
🔹बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान !
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान !!
🔹पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग !
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग !!
🔹फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर !
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर !!
🔹पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप!
भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप !!
🔹पानी आँखों का मरा, मरी शर्म और लाज !
कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज !!
🔹भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास !
बहन पराई हो गयी, साली खासमखास !!
🔹मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश !
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश !!
🔹बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान !
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान !!
🔹पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग !
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग !!
🔹फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर !
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर !!
🔹पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप!
भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप !!
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