Arz Hai... Few Good One's...
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बहुत देखा जीवन में समझदार बन कर
पर ख़ुशी हमेशा पागलपन से ही मिली है ।।
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इसे इत्तेफाक समझो
या दर्द भरी हकीकत,
आँख जब भी नम हुई,
वजह कोई अपना ही था
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"हमने अपने नसिब से ज्यादा
अपने दोस्तो पर भरोसा रखा है."
क्यु की नसिब तो बहोत बार
बदला है".
लैकिन मेरे दोस्त अभी भी वहि है".
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उम्रकैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते , जहाँ जमानत देकर भी रिहाई मुमकिन नहीं...
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दर्द को दर्द से न देखो,
दर्द को भी दर्द होता है,
दर्द को ज़रूरत है दोस्त की,
आखिर दोस्त ही दर्द में हमदर्द होता है...
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ज़ख़्म दे कर ना पुछा करो,
दर्द की शिद्दत...!
"दर्द तो दर्द" होता हैं,
थोड़ा क्या, ज्यादा क्या...!!
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"दिन बीत जाते हैं सुहानी यादें बनकर,
बातें रह जाती हैं कहानी बनकर,
पर दोस्त तो हमेशा दिल के करीब रहेंगे,
कभी मुस्कान तो कभी आखों का पानी बन कर.
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वक़्त बहुत कुछ, छीन लेता है ...
खैर मेरी तो सिर्फ़ मुस्कुराहट थी ....!!
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क्या खूब लिखा है :"कमा के इतनी दोलत भी मैं अपनी "माँ" को दे ना पाया,.:::::::
के जितने सिक्कों से "माँ" मेरी नज़र उतारा करती थी...
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गलती कबूल करने और
गुनाह छोड़ने में कभी देर ना करें......!
क्योकिं
सफर जितना लम्बा होगा
वापसी उतनी मुश्किल हो जायेगी...!!
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इंसान बिकता है ...
कितना महँगा या सस्ता ये
उसकी मजबूरी तय करती है...!
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"शब्द दील से नीकलते है
दीमाग से तो मतलब नीकलते है."..
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सब कुछ हासिल नहीं होता ज़िन्दगी में यहाँ....
.
किसी का "काश" तो किसी का "अगर" छूट ही जाता है...!!!!
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दो अक्षर की "मौत" और तीन अक्षर के "जीवन" में ढाई अक्षर का "दोस्त" बाज़ी मार जाता हैं..
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बहुत देखा जीवन में समझदार बन कर
पर ख़ुशी हमेशा पागलपन से ही मिली है ।।
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इसे इत्तेफाक समझो
या दर्द भरी हकीकत,
आँख जब भी नम हुई,
वजह कोई अपना ही था
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"हमने अपने नसिब से ज्यादा
अपने दोस्तो पर भरोसा रखा है."
क्यु की नसिब तो बहोत बार
बदला है".
लैकिन मेरे दोस्त अभी भी वहि है".
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उम्रकैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते , जहाँ जमानत देकर भी रिहाई मुमकिन नहीं...
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दर्द को दर्द से न देखो,
दर्द को भी दर्द होता है,
दर्द को ज़रूरत है दोस्त की,
आखिर दोस्त ही दर्द में हमदर्द होता है...
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ज़ख़्म दे कर ना पुछा करो,
दर्द की शिद्दत...!
"दर्द तो दर्द" होता हैं,
थोड़ा क्या, ज्यादा क्या...!!
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"दिन बीत जाते हैं सुहानी यादें बनकर,
बातें रह जाती हैं कहानी बनकर,
पर दोस्त तो हमेशा दिल के करीब रहेंगे,
कभी मुस्कान तो कभी आखों का पानी बन कर.
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वक़्त बहुत कुछ, छीन लेता है ...
खैर मेरी तो सिर्फ़ मुस्कुराहट थी ....!!
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क्या खूब लिखा है :"कमा के इतनी दोलत भी मैं अपनी "माँ" को दे ना पाया,.:::::::
के जितने सिक्कों से "माँ" मेरी नज़र उतारा करती थी...
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गलती कबूल करने और
गुनाह छोड़ने में कभी देर ना करें......!
क्योकिं
सफर जितना लम्बा होगा
वापसी उतनी मुश्किल हो जायेगी...!!
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इंसान बिकता है ...
कितना महँगा या सस्ता ये
उसकी मजबूरी तय करती है...!
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"शब्द दील से नीकलते है
दीमाग से तो मतलब नीकलते है."..
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सब कुछ हासिल नहीं होता ज़िन्दगी में यहाँ....
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किसी का "काश" तो किसी का "अगर" छूट ही जाता है...!!!!
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दो अक्षर की "मौत" और तीन अक्षर के "जीवन" में ढाई अक्षर का "दोस्त" बाज़ी मार जाता हैं..
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