Saturday, March 7, 2015

किसी कवि ने क्या खूब लिखा है।
👇👇👇👇👇👇👌👌
 बिक रहा है पानी,पवन बिक न जाए ,
बिक गयी है धरती, गगन बिक न जाए

 चाँद पर भी बिकने लगी है जमीं .,
डर है की सूरज की तपन बिक न जाए ,

हर जगह बिकने लगी है स्वार्थ नीति,
डर है की कहीं धर्म बिक न जाए ,

देकर दहॆज ख़रीदा गया है अब दुल्हे को ,
कही उसी के हाथों दुल्हन बिक न जाए ,

हर काम की रिश्वत ले रहे अब ये नेता ,
कही इन्ही के हाथों वतन बिक न जाए ,

सरे आम बिकने लगे अब तो सांसद ,
डर है की कहीं संसद भवन बिक न जाए ,

आदमी मरा तो भी आँखें खुली हुई हैं
 डरता है मुर्दा , कहीं कफ़न बिक न जाए।




पति पत्नी एक ही प्लेट मे
गोलगप्पे खा रहे थे
एक दूसरे की
आँख मैं आँख डाले
पत्नी ने रोमांटिक हो कर पूछा
ऐसे क्या देख रहे हो💖💖जी
पति बोला.....
थोडा आराम से खा...
मेरी बारी ही नहीं आ रही.. 😆😝😝😂😂


No comments:

Post a Comment