Sunday, September 13, 2020

 सांझ हुई और रात जगी

ख़्वाब भी तरसे, नींद लगी

तरसने लगी है बाहें, 

ताकूँ तेरी चाहतो की राहें

पर तुम तो मुझे बुलाते नही

मेंरे ख़्वाब भी तुझे जगाते नही

अब रतियन में आते नही

हमको क्यों सताते नही

अरे बात करें पर बातें नई

हमको क्यों कुछ बताते नही!


अरे भूलों से भुला मैं भटका हुआ

अरे कब से मैं तरसा यूँ अटका हुआ

कह दो, मेरी गली में क्यों आते नही

इश्क़ है फिर भी जताते नही।

अब रतियन में आते नही

हमको क्यों सताते नही

अरे बात करें पर बातें नई

हमको क्यों कुछ बताते नही!


अरे जागो न जागो, निंदिया कितनी आई

अरे मुझसे भी पूछो क्यों दुनिया हुई पराई

यूँ छोड़ पराया जाते नही

क्यों हमको अब अपनाते नही।

अब रतियन में आते नही

हमको क्यों सताते नही

अरे बात करें पर बातें नई

हमको क्यों कुछ बताते नही!


क्यों कह दें ये तुमसे, है ताज्जुब थोड़ी थोड़ी

हो मुव्वसर या मुक्कमल, मिल जाते थोड़ी थोड़ी

मुकद्दर मेरे अब क्यों बन जाते नही

करके मुकम्मल हमको, अपना क्यों बनाते नही

अब रतियन में आते नही

हमको क्यों सताते नही

अरे बात करें पर बातें नई

हमको क्यों कुछ बताते नही!


अरे लूटो, न लूटो ऐसे चैन मेरा

अब नींद में हूँ, न छीनो ख्वाब मेरा

ख़्वाब से यादें हैं, है आगे का सब तेरा

क्यों याद मेरी तुझे आते नही

क्यों हमको अपना कह बुलाते नही

अब रतियन में आते नही

हमको क्यों सताते नही

अरे बात करें पर बातें नई

हमको क्यों कुछ बताते नही!


अभी कुछ पल में तू सब हो गया मेरा

 आज और कल में ही सब ले गया मेरा

क्यों गैर हूँ ऐसे जताते हो, जब देखूं तो मुँह फिराते हो

मुझे अपना कहने से डरते हो, या बेवजह इतना शर्माते हो

क्यों सीने से मुझको लगाते नही

क्यों अपना मुझे बुलाते नही!

अब रतियन में आते नही

हमको क्यों सताते नही

अरे बात करें पर बातें नई

हमको क्यों कुछ बताते नही!

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