Sunday, September 13, 2020

 *दर्द कागज़ पर,* 

          *मेरा बिकता रहा,*


*मैं बैचैन था,* 

          *रातभर लिखता रहा..*


*छू रहे थे सब,*

          *बुलंदियाँ आसमान की,*


*मैं सितारों के बीच,*

          *चाँद की तरह छिपता रहा..*


*अकड होती तो,* 

          *कब का टूट गया होता,*


*मैं था नाज़ुक डाली,* 

          *जो सबके आगे झुकता रहा..*


*बदले यहाँ लोगों ने,*

         *रंग अपने-अपने ढंग से,*


*रंग मेरा भी निखरा पर,*

         *मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा..*


*जिनको जल्दी थी,*

         *वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*


*मैं समन्दर से राज,*

         *गहराई के सीखता रहा..!!*


*"ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट...*

*तू गुमान न कर...*


*बुलंदियाँ छू हज़ार, मगर...*

*उसके लिए कोई 'गुनाह' न कर.*


*कुछ बेतुके झगड़े*, 

*कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने*


*जहाँ गलती नही भी थी मेरी*, 

*फिर भी हाथ जोड़ दिए मैंने*

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