ससुराल में अपने ही घर जाने की इजाज़त लेना? यह कैसा न्याय है?
in Emotional Support

जब जन्म लिया तब कुदरत से भी इजाज़त नहीं लेनी पड़ी अपने माँ - पिता से मिलने के लिए। जब चलना सीखा तब भी इजाज़त नहीं ली । पहला शब्द बोला बिना किसी की इजाज़त के।
उस घर में खेली, उस घर में बड़ी हुई, उस घर में शिक्षा ग्रहण की, उस घर में पापा का प्यार मिला, उस घर में माँ की डॉट थी, उस घर में जीवन भर साथ रहने वाली सहेलियां मिली, उस घर में भाई की शरारत थी, उस घर में बहन की आदत थी।

उस घर ने नाज़ों से मुझे बड़ा किया, मेरे हर नखरे सहे, यहाँ तक की मैंने अपनी ज़िन्दगी का प्यार भी वहीँ पाया, फिर क्यों ???
फिर ऐसा क्या हो गया शादी के बाद की मैं अपने घर में जाने की इजाज़त लूँ ?
अपने उन माता पिता को देखने के लिए क्यों कोई मुझे रोके??
क्यों मैं अभी भी स्वतंत्र नहीं??
क्या कभी किसी ने यह सोचा है??
यह कैसा नियम है? कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता की आपकी ज़िन्दगी में यह दिन आएगा। आपने कभी सोचा भी नहीं था। जिस माँ ने बचपन से पाला, उनसे मिलने की इजाज़त??
जिस पिता ने मेरी सारी ज़रूरतें पूरी की और जिससे मैंने सारी चीज़ों की इजाज़त ली - उनसे मिलने की इजाज़त??
जब मुझे नयी साइकल चाहिए थी तब मेरे उस पिता ने अपनी ज़रूरतें को मारकर मुझे दिलाया। तब तो नहीं था यह दूसरा घर। फिर इसका क्रम ऊपर क्यों?
बयां नहीं कर सकती अपने जज़्बात जब मैं यह पूछती हूँ " 2 दिनों के लिए अपने मायके चले जाऊ"
माना मैंने ज़िन्दगी में प्यार किया किसी से, और इतना प्यार किया की उनके साथ सब पीछे छोड़कर चली आयी। लेकिन क्या इसका मतलब यह था की अब मैं उस घर का हिस्सा नहीं? मैंने नयी ज़िम्मेदारियाँ ली हैं और उसे बखूबी निभाना भी जानती हूँ पर क्या मेरे अपने माता - पिता अब मेरी ज़िम्मेदारी नहीं? यह भेदभाव क्यों? मैं अपने मायके में ससुराल जाने की इजाज़त नहीं लेती। फिर ससुराल में मायके जाने की इजाज़त क्यों?
अगर आज भी बहु-बेटी बराबर होते तो यह भेदभाव नहीं आता।
मेरे लिए दोनों घर बराबर क्यों नहीं? मैं अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटूंगी पर क्या मुझसे मेरे पुराने अधिकार छीन लिए जायेंगे?

जन्म दिया जिस माँ ने - उन्हें किसी की ज़रवत पड़े तो मैं किसी से नहीं पूछना चाहती। असल में तो मैं यह सोचना चाहती हूँ की मैं उन्हें बोलूँ की "माँ, अब आप अकेली नहीं। "अब आपके पास एक दामाद स्वरुप बेटा भी है"
मैं आज पूरी दुनिया को बताना चाहती हूँ की मेरी माँ अभी भी मेरी है , मेरे पिता अभी भी मेरे हैं। मैंने शादी की, लेकिन इनकी ज़िम्मेदारी अभी भी मेरी ही है। आज या कल, मैं अपने घर जाने की इजाज़त किसी से नहीं लेना चाहती "
कुछ ज़्यादा नहीं मांग रही समाज से - बस मेरे दोनों घर बराबर हैं - यह स्वीकार करें और मुझसे मेरे बेटी होने का अधिकार न छीनें।
No comments:
Post a Comment