आज सबह सुबह घने बदलो का जमघट लगा हुआ था तो मैं तो छत पर टहलने चला गया
टहलना तो बहाना था हमे तो पड़ोसन का दीदार करना था
पर आज थोड़ा उल्टा हो गया
पड़ोसन बाद में आई पहले उनकी मम्मी आ गई
मुझे छत पर टहलता देख उन्होंने पूछ लिया मुझसे:
और बेटा कैसे हो
आज कल लोकडाउन चल रहा है फिर तुम काम क्या करते हो?
मैंने भी तपाक से कह दिया:
चाची जी
मैं उदासी के एक दफ़्तर में,
सिर्फ़ हँसाने का काम करता हूँ..
चाची जी इससे पहले कुछ कह पाती
पड़ोसन आकर चाची जी कह पड़ी:
माँ पिताजी नीचे चाय के लिए बुला रहे है
चाची जी जाते जाते मुझसे: बेटा आना कभी चाय पर तो फिर बात होगी।।
(और कह कर चली गई)
और मैं पड़ोसन को देखकर मन ही मन कहता रहा "चाय पे तो पड़ोसन से बात हो ही जाती है चाची जी" 😜
पड़ोसन भी देख कर मुझे हल्का मुस्कुराई और
उधर चाची जी और पड़ोसन दोनो फिर चले गए
आज जो भी हुआ अच्छा ही हुआ पर
आज तो न चाय मिली न पड़ोसन का ठीक से दीदार हुआ
😏
वैसे आपलोग बताओ चाची जी के invitation का क्या करूँ 🤨☺️
#आशु_बनारसी
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