Thursday, September 10, 2020

 *(एक खूबसूरत कविता सभी शिक्षकों के लिये!!)*


*मत पूछिए कि शिक्षक कौन है?*

*आपके प्रश्न का सटीक उत्तर* 

         *आपका मौन है।*

*शिक्षक न पद है, न पेशा है,*

                     *न व्यवसाय है ।*

*ना ही गृहस्थी चलाने वाली*

                         *कोई आय हैं।।*

 *शिक्षक सभी धर्मों से ऊंचा धर्म है।*                                                    *गीता में  उपदेशित* 

         *"मा फलेषु "वाला कर्म है ।।*    

    

        *शिक्षक एक प्रवाह है ।*

        *मंज़िल नहीं राह  है ।।*    

          *शिक्षक      पवित्र   है।*      

        *महक फैलाने वाला इत्र है*

 *शिक्षक स्वयं जिज्ञासा है ।*

*खुद कुआं है पर प्यासा है ।।*


*वह डालता है चांद सितारों ,*

*तक को तुम्हारी झोली में।* 

*वह बोलता है बिल्कुल,* 

*तुम्हारी  बोली   में।।*

 *वह कभी मित्र,*

        *कभी मां तो ,*

             *कभी पिता का हाथ है ।*

*साथ ना रहते हुए भी,*

            

 *ताउम्र का साथ है।।*

 

*वह नायक ,खलनायक ,*

*तो कभी विदूषक बन जाता है ।*

 *तुम्हारे   लिए  न  जाने,*

 *कितने  मुखौटे   लगाता है।।*


*इतने मुखौटों के बाद भी,*

 *वह   समभाव  है ।*

*क्योंकि यही तो उसका,*

 *सहज    स्वभाव है ।।*

            

*शिक्षक कबीर के गोविंद सा,*

                   *बहुत ऊंचा है ।*

  *कहो भला कौन,* 

              *उस तक पहुंचा है ।।*

*वह न वृक्ष है ,*

      *न पत्तियां है,*

                *न फल है।*

           *वह केवल खाद है।*

 *वह खाद बनकर,*

             *हजारों को पनपाता है।*

 *और खुद मिट कर,*

             *उन सब में लहराता है।।*


 *शिक्षक एक विचार है।*

 *दर्पण है ,   संस्कार है ।।*


 *शिक्षक न दीपक है,*

                  *न बाती है,*

                         *न रोशनी है।*

 *वह स्निग्ध  तेल है।*

          *क्योंकि उसी पर,*

 *दीपक का सारा खेल है।।*


*शिक्षक तुम हो, तुम्हारे भीतर की*

               *प्रत्येक अभिव्यक्ति है।*

*कैसे कह सकते हो,*

            *कि वह केवल एक व्यक्ति है।।*

 

*शिक्षक चाणक्य, सान्दिपनी*

          *तो कभी विश्वामित्र है ।*

 *गुरु और शिष्य की*

       *प्रवाही परंपरा का चित्र है।।*


 *शिक्षक  भाषा का मर्म है ।*

*अपने शिष्यों के लिए धर्म है ।।*


*साक्षी  और    साक्ष्य है ।*

*चिर  अन्वेषित   लक्ष्य  है ।।*


*शिक्षक अनुभूत सत्य है।*

*स्वयं  एक   तथ्य है।।*


 *शिक्षक ऊसर को*

           *उर्वरा करने की हिम्मत है।*

 

*स्व की आहुतियों के द्वारा ,*

         *पर के विकास की कीमत है।।*    *वह इंद्रधनुष है ,*


*जिसमें सभी रंग है।* 

*कभी सागर है,*      

       *कभी तरंग है।।*


 *वह रोज़ छोटे - छोटे* 

             *सपनों से मिलता है ।*

*मानो उनके बहाने* 

                *स्वयं खिलता  है !*


*वह राष्ट्रपति होकर भी,*

       *पहले शिक्षक होने का गौरव है।*

 *वह पुष्प का बाह्य सौंदर्य नहीं ,*

       *कभी न मिटने वाली सौरभ है।*


*बदलते परिवेश की आंधियों में ,*

         *अपनी उड़ान को* 

  *जिंदा रखने वाली पतंग है।*

 *अनगढ़ और  बिखरे* 

        *विचारों के दौर में,*

   *मात्राओं के दायरे में बद्ध,*

*भावों को अभिव्यक्त*

        *करने वाला छंद है। ।*


*हां अगर ढूंढोगे ,तो उसमें*

 *सैकड़ों कमियां नजर आएंगी।*

*तुम्हारे आसपास जैसी ही* 

      *कोई सूरत नजर आएगी  ।।*


*लेकिन यकीन मानो जब वह,*

         *अपनी भूमिका में होता है।*

 *तब जमीन का होकर भी,*

         *वह आसमान सा होता है।।*


 *अगर चाहते हो उसे जानना ।*

 *ठीक - ठीक     पहचानना ।।*


*तो सारे पूर्वाग्रहों को ,*

          *मिट्टी में गाड़ दो।*

*अपनी आस्तीन पे लगी ,*

    *अहम् की रेत  झाड़ दो।।*

 *फाड़ दो वे पन्ने जिन में,*

           *बेतुकी शिकायतें हैं।*

 *उखाड़ दो वे जड़े ,*

    *जिनमें छुपे निजी फायदे हैं।।*


 *फिर वह धीरे-धीरे स्वतः*

              *समझ आने लगेगा*

*अपने सत्य स्वरूप के साथ,*

   *तुम में समाने लगेगा।।*


 *सभी शिक्षकों को समर्पित* 🙏🙏

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