Sunday, September 13, 2020

 *एक सबक - आत्म निर्भर रहो !*


कल दिल्ली से गोवा की उड़ान में एक बुजुर्ग जोडा मिला |


बुजुर्ग पुरूष की उम्र करीब 85 साल रही होगी। मैंने पूछा नहीं लेकिन उनकी पत्नि भी 80 पार ही रही होंगी।


 उम्र के सहज प्रभाव को छोड़ दें, तो दोनों करीब करीब फिट थे।

 

महिला खिड़की की ओर बैठी थीं, पुरूष बीच में और मैं सबसे किनारे वाली सीट पर था।


उड़ान भरने के साथ ही बुजुर्ग महिला ने कुछ खाने का सामान निकाला और पुरुष की ओर किया। बुजुर्ग भी कांपते हाथों से धीरे-धीरे खाने लगे।


 फिर फ्लाइट में जब भोजन सर्व होना शुरू हुआ तो उन लोगों ने राजमा-चावल का ऑर्डर किया।


दोनों बहुत आराम से राजमा-चावल खाते रहे। 


मैंने पता नहीं क्यों पास्ता ऑर्डर कर दिया था। 

अब बारी थी कोल्ड ड्रिंक की।

 

पीने में मैंने कोक का ऑर्डर दिया था।

अपने कैन के ढक्कन को मैंने खोला और धीरे-धीरे पीने लगा।


 बुजुर्ग पुरुष ने कोई जूस लिया था।

 

खाना खाने के बाद जब उन्होंने जूस की बोतल के ढक्कन को खोलना शुरू किया तो ढक्कन खुले ही नहीं।


 वो कांपते हाथों से उसे खोलने की कोशिश कर रहे थे। 


मैं लगातार उनकी ओर देख रहा था। 

मुझे लगा कि ढक्कन खोलने में उन्हें मुश्किल आ रही है तो मैंने शिष्टाचार हेतु

कहा कि लाइए..." मैं खोल देता हूं।"


बुजुर्ग सज्जन ने मेरी ओर देखा, फिर मुस्कुराते हुए कहने लगे कि...


"बेटा ढक्कन तो मुझे ही खोलना होगा।


मैंने कुछ पूछा नहीं,लेकिन

सवाल भरी निगाहों से उनकी ओर देखा।

 

यह देख, उन्होंने आगे कहा


बेटाजी, आज तो आप खोल देंगे।

लेकिन अगली बार कौन खोलेगा.?


 इसलिए मुझे खुद खोलना आना चाहिए।


 उनकी पत्नि भी उनकी ओर देख रही थीं।


जूस की बोतल का ढक्कन उनसे अभी भी नहीं खुला था।


पर वो लगे रहे और बहुत बार कोशिश कर के उन्होंने ढक्कन खोल ही दिया।


दोनों आराम से जूस पी रहे थे।

 

मुझे दिल्ली से गोवा की इस उड़ान में

 ज़िंदगी का एक सबक मिला है -


बुजुर्ग पुरूष ने मुझे बताया कि उन्होंने

 ये नियम बना रखा है...


 कि अपना हर काम वो खुद करेंगे।

  घर में बच्चे हैं, भरा पूरा परिवार है।

 सब साथ ही रहते हैं। 

पर अपनी रोज़ की ज़रूरत के लिये

वे सिर्फ पत्नि की मदद ही लेते हैं, बाकी किसी की नहीं।


 वो दोनों एक दूसरे की ज़रूरतों को समझते हैं


उन बुजुर्ग महिला ने मुझसे कहा कि जितना संभव हो, अपना काम खुद करना चाहिए।


  एक बार अगर काम करना छोड़ दूंगा, दूसरों पर निर्भर हुआ तो समझो बेटा कि बिस्तर पर ही पड़ जाऊंगा।


फिर मन हमेशा यही कहेगा कि ये काम इससे करा लूं, वो काम उससे।


फिर तो चलने के लिए भी दूसरों का सहारा लेना पड़ेगा।


अभी चलने में पांव कांपते हैं, खाने में भी हाथ कांपते हैं, पर जब तक आत्मनिर्भर रह सको, रहना चाहिए।


हम गोवा जा रहे हैं, दो दिन वहीं रहेंगे।


 हम महीने में एक दो बार ऐसे ही घूमने निकल जाते हैं।


 बेटे-बहू कहते हैं कि अकेले मुश्किल होगी,


पर उन्हें कौन समझाए कि

मुश्किल तो तब होगी

जब हम घूमना-फिरना बंद करके खुद को घर में कैद कर लेंगे।


पूरी ज़िंदगी खूब काम किया। अब सब बेटों को दे कर अपने लिए महीने के पैसे तय कर रखे हैं।


और हम दोनों उसी में आराम से घूमते हैं।


जहां जाना होता है एजेंट टिकट बुक करा देते हैं। घर पर टैक्सी आ जाती है। वापिसी में एयरपोर्ट पर भी टैक्सी ही आ जाती है।


 होटल में कोई तकलीफ होनी नहीं है।


स्वास्थ्य, उम्रनुसार, एकदम ठीक है।


 कभी-कभी जूस की बोतल ही नहीं खुलती।


 पर थोड़ा दम लगाओ,

 तो वो भी खुल ही जाती है।

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मेरी तो आँखे ही

 खुली की खुली रह गई।


 मैंने तय किया था कि इस बार की

 उड़ान में लैपटॉप पर एक पूरी फिल्म देख लूंगा।

 पर यहां तो मैंने जीवन की फिल्म ही देख ली।


 एक वो फिल्म जिसमें जीवन "जीने का संदेश" छिपा था .....


जब तक हो सके,आत्म-निर्भर रहो।

अपना काम,जहाँ तक संभव हो,

स्वयम् ही करो।

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