रचयिता कौन है पता नहीं, पर रचना है बड़ी सुंदर और सारगर्भित :--
"मन्दिर लगता आडंबर ,
और मदिरालय में खोए हैं,
भूल गए कश्मीरी पंडित ,
और अफजल पे रोए है।"
"इन्हें गोधरा नहीं दिखा ,
गुजरात दिखाई देता है ,
एक पक्ष के लोगों का ,
जज्बात दिखाई देता है।"
"हिन्दू को गाली देने का ,
मौसम बना रहे हैं ये ,
धर्म सनातन पर हँसने को ,
फैशन बना रहे हैं ये। "
"टीपू को सुल्तान मानकर ,
खुद को बेच कर फूल गए ,
और प्रताप की खुद्दारी की ,
घास की रोटी भूल गए। "
"आतंकी की फाँसी इनको ,
अक्सर बहुत रुलाती है ,
गाय माँस के बिन भोजन की ,
थाली नहीं सुहाती है ।"
"होली आई तो पानी की ,
बर्बादी पर ये रोते हैं ,
रेन डाँस के नाम पर ,
बहते पानी से मुँह धोते हैं।"
"दीवाली की जगमग से ही ,
इनकी आँखें डरती हैं ,
थर्टी फर्स्ट की आतिशबाजी ,
इनको क्यों नहीं अखरती है।"
"देश विरोधी नारों को ,
ये आजादी बतलाते हैं ,
राष्ट्रप्रेम के नायक संघी ,
इनको नहीं सुहाते हैं।"
"सात जन्म के पावन बंधन ,
इनको बहुत अखरते हैं ,
लिव इन वाले बदन के ,
आकर्षण में आहें भरते हैं।"
"आज समय की धारा कहती ,
मर्यादा का भान रखो ,
मूल्यों वाला जीवन जी कर ,
दिल में हिन्दुस्तान रखो।"
"भूल गया जो संस्कार ,
वो जीवन खरा नहीं रहता ,
जड़ से अगर जुदा हो जाए ,
तो पत्ता हरा नहीं रहता।"
"!!भारत माता की जय!!"
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