Sunday, September 13, 2020

 रचयिता कौन है पता नहीं, पर रचना है बड़ी सुंदर और सारगर्भित :--


"मन्दिर लगता आडंबर , 

और मदिरालय में खोए हैं,

भूल गए कश्मीरी पंडित , 

और अफजल पे रोए है।"


"इन्हें गोधरा नहीं दिखा , 

गुजरात दिखाई देता है ,

एक पक्ष के लोगों का , 

जज्बात दिखाई देता है।"


"हिन्दू को गाली देने का , 

मौसम बना रहे हैं ये ,

धर्म सनातन पर हँसने को , 

फैशन बना रहे हैं ये। "


"टीपू को सुल्तान मानकर ,

खुद को बेच कर फूल गए ,

और प्रताप की खुद्दारी की , 

घास की रोटी भूल गए। "


"आतंकी की फाँसी इनको , 

अक्सर बहुत रुलाती है ,

गाय माँस के बिन भोजन की , 

थाली नहीं सुहाती है ।"


"होली आई तो पानी की , 

बर्बादी पर ये रोते हैं ,

रेन डाँस के नाम पर , 

बहते पानी से मुँह धोते हैं।"


"दीवाली की जगमग से ही , 

इनकी आँखें डरती हैं ,

थर्टी फर्स्ट की आतिशबाजी , 

इनको क्यों नहीं अखरती है।"


"देश विरोधी नारों को , 

ये आजादी बतलाते हैं ,

राष्ट्रप्रेम के नायक संघी , 

इनको नहीं सुहाते हैं।"


"सात जन्म के पावन बंधन , 

इनको बहुत अखरते हैं ,

लिव इन वाले बदन के , 

आकर्षण में आहें भरते हैं।"


"आज समय की धारा कहती , 

मर्यादा का भान रखो ,

मूल्यों वाला जीवन जी कर , 

दिल में हिन्दुस्तान रखो।"


"भूल गया जो संस्कार , 

वो जीवन खरा नहीं रहता ,

जड़ से अगर जुदा हो जाए , 

तो पत्ता हरा नहीं रहता।"


"!!भारत माता की जय!!"

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